पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२९०

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वेशी मूल्य का परिचलन २८६ जब वे की राणि अपेक्षाकृत बहुत ही तुच्छ होती है। उत्पादन और उपभोग का यह चिरंतन चक्र है। वार्पिक उपभोग और उत्पादन की इस विशाल राशि से मुट्ठी भर वास्तविक संचय को कदाचित ही महसूस किया जायेगा; फिर भी ध्यान मुख्यतः इस मुट्ठी भर संचय की ओर ही, न कि उत्पादक शक्तियों की राशि की अोर दिया जाता रहा है। लेकिन चूंकि इस मुट्ठी भर संचय को थोड़े से लोग हथिया लेते हैं और उसे अपने सहप्राणियों के भारी बहुलांश के श्रम के निरंतर प्रावर्तित उत्पाद को अपने उपयोग के लिए परिवर्तित करने का साधन वना लेते हैं, इसीलिए इन थोड़े से लोगों की राय में ऐसे साधन का महत्व सर्वाधिक है इन देशों के वार्षिक उत्पाद का लगभग तिहाई हिस्सा आजकल उत्पादकों से सार्वजनिक दायित्वों के नाम पर खसोट लिया जाता है और उसका उन लोगों द्वारा अनुत्पादक ढंग से उपयोग कर लिया जाता है, जो उसका कोई समतुल्य नहीं देते , यानी उत्पादकों के लिए संतोषजनक समतुल्य नहीं देते . संचित राशियों ने मामूली आदमी की निगाह को हमेशा आकर्षित किया है, ख़ास तौर से तव , कुछ ही लोगों के हाथ में होती हैं। प्रति वर्ष उत्पादित और उपभुक्त राशियां शक्तिशाली नदी की अनंत और अगणित लहरों की ही तरह लहराती जाती हैं और उपभोग के विस्मृत सागर में विलीन हो जाती हैं। किंतु इस अनंत उपभोग पर ही सारी मानवजाति अपनी प्रायः सभी प्रकार की तुष्टि के लिए ही नहीं, वरन अपने अस्तित्व के लिए भी निर्भर है। इस वार्षिक उत्पाद की मात्रा और उसका वितरण विचार का प्रमुख विषय होना चाहिए। वास्तविक संचय नितांत गीण महत्व का है और अपना लगभग सारा महत्व वार्षिक पैदावार के वितरण पर अपने प्रभाव से प्राप्त करता है . वास्तविक संचय और वितरण को ( टॉमसन की कृतियों में ) सदा उत्पादन शक्ति के संदर्भ में और उसके अधीन लिया गया है। प्रायः अन्य सभी पद्धतियों में उत्पादन शक्ति पर वास्तविक संचय के और विद्यमान वितरण प्रणालियों को चिरस्थायी बनाने के संदर्भ में तथा उनके अधीन विचार किया गया है। इस वास्तविक वितरण के परिरक्षण की तुलना में संपूर्ण मानवजाति के शाश्वत दुख-सुख को विचार के अयोग्य समझा गया है। हिंसा, छल और आकस्मिकता के परिणामों को स्थायी बनाना सुरक्षा कहलाया है और इस मिथ्या सुरक्षा के समर्थन की खातिर मानवजाति की समस्त उत्पादक शक्तियों का निर्मम बलिदान किया गया है" (वही, पृष्ठ ४४०-४४३ )। . पुनरुत्पादन के लिए विघ्नों के सिवा, जो नियत पैमाने पर पुनरुत्पादन में भी दखल देते हैं, केवल दो सामान्य स्थितियां संभव हैं। या तो साधारण पैमाने पर पुनरुत्पादन होता है। अथवा वेशी मूल्य का पूंजीकरण, संचय होता है। १. साधारण पुनरुत्पादन साधारण पुनरुत्पादन में यदि वर्ष के भीतर कई आवर्त हों, तो वार्पिक अथवा नियतकालिक रूप में उत्पादित तथा सिद्धिकृत वेशी मूल्य का उसके स्वामी, पूंजीपति द्वारा वैयक्तिक , अर्थात अनुत्पादक उपभोग किया जाता है। 19-1150