पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६० पूंजी का प्रावत 1 कर तथ्य में कि उत्पाद का मूल्य अंशतः वेशी मूल्य और अंशतः मूल्य का वह भाग होता है, जो उत्साद में पुनरत्यादित परिवर्ती पूंजी और उत्पाद द्वारा खप चुकी स्थिर पूंजी से निर्मित होता है, कुल उत्पाद की मात्रा में या उसके मूल्य में कुछ भी फ़र्क नहीं पड़ता, जो मान जी के रूप में निरंतर परिचलन में आता रहता है और वैसे ही निरंतर उससे निकलता रहता है, जिससे कि उत्पादक अथवा वैयक्तिक उपभोग में पा सके , अर्थात उत्पादन या उपभोग के माधन का काम कर सके। यदि स्थिर पूंजी को अलग छोड़ दिया जाये, तो उससे श्रमिकों और पूंजीपतियों के बीच वार्षिक उत्पाद का वितरण ही प्रभावित होता है। अतः यदि साधारण पुनरुत्पादन की ही कल्पना की जाये, तो भी वेशी मूल्य के एक भाग को गदा उत्पाद के रूप में नहीं, द्रव्य रूप में विद्यमान रहना होगा, क्योंकि अन्यथा वह उपभोग हेतु द्रव्य से उत्पाद में परिवर्तित न किया जा सकेगा। वेशी मूल्य के अपने मूल माल रूप से द्रव्य में इस परिवर्तन का यहां और विश्लेपण किया जाना चाहिए। विपय को सरल बनाने के लिए हम समस्या का सरलतम रूप पूर्वानुमानित करेंगे, अर्थात केवल धातु मुद्रा के ऐसे द्रव्य परिचलन पर विचार करेंगे, जो वास्तविक समतुल्य है। साधारण माल परिचलन के नियमों के अनुसार ( जिनका विवेचन Buch I, Kap. III में है), किसी देश में धातु मुद्रा की जितनी राशि विद्यमान हो, वह माल परिचलन के लिए ही पर्याप्त न होनी चाहिए, वरन मुद्रा संबंधी उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए भी काफ़ी होनी चाहिए, जो अंशतः परिचलन वेग के उतार-चढ़ाव से , अंशतः पण्य वस्तुओं का भाव वदलने से और अंशतः उन भिन्न-भिन्न और परिवर्तनशील अनुपातों से उत्पन्न होते हैं, जिनमें द्रव्य अदायगी के माध्यम का अथवा वास्तविक परिचलन के माध्यम का कार्य करता है। द्रव्य की विद्यमान मात्रा जिस अनुपात में अपसंचय तथा परिचालित द्रव्य में विभाजित होती है, वह निरंतर बदलता रहता है, किंतु द्रव्य की कुल माना सदैव अपसंचित द्रव्य तथा परिचालित द्रव्य के योग के बराबर रहती है। द्रव्य की यह माना ( वहुमूल्य धातु की मात्रा) समाज का धीरे-धीरे संचित अपसंचय होती है। चूंकि अपसंचय के एक भाग की खपत घिसाई और छीजन में हो जाती है, इसलिए उसका वार्षिक प्रतिस्थापन वैसे ही आवश्यक होता है, जैसे अन्य किसी उत्पाद का। यथार्थ में यह किसी देश विशेप के वार्षिक उत्पाद के एक भाग के सोना-चांदी पैदा करनेवाले देशों के उत्पाद से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष विनिमय द्वारा होता है। किंतु इस लेन- देन का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप उसके साधारण क्रम को छिपा लेता है। समस्या को सरलतम और स्पष्टतम बनाने के लिए यह कल्पना करना होगा कि सोने-चांदी का उत्पादन स्वयं उस देश विशेप में होता है, और इसलिए प्रत्येक देश में सोने-चांदी का उत्पादन उसके कुल सामाजिक उत्पादन का एक भाग होता है। विलास वस्तुओं के लिए उत्पादित सोने-चांदी के अलावा उनके वार्षिक उत्पादन की अल्पतम राशि द्रव्य परिचलन से होनेवाली धातु मुद्रा की वार्षिक घिसाई के बराबर होनी चाहिए। इसके अलावा, अगर प्रति वर्ष उत्पादित और परिचालित पण्य वस्तुओं की मात्रा की मूल्य राशि बढ़ती है, तो इसी प्रकार सोने-चांदी का वार्पिक उत्पादन भी बढ़ना चाहिए, क्योंकि परिचालित पप्य वस्तुओं की बड़ी हुई मूल्य राशि और उनके परिचलन के लिए आवश्यक द्रव्य की मात्रा ( और अपसंचय के अनुरूप निर्माण ) की द्रव्य मुद्रा के और तेज़ वेग से और अदायगी 1 • हिंदी संस्करण: अध्याय ३।-सं०