पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२९२

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वेशी मूल्य का परिचलन २६१ , , के माध्यम के रूप में द्रव्य की अधिक व्यापक कार्यशीलता से, अर्थात वास्तविक द्रव्य के हस्तक्षेप के बिना क्रय-विक्रय के परस्पर अधिक संतुलन द्वारा क्षतिपूर्ति नहीं होती है। अतः सामाजिक श्रम शक्ति के एक भाग और उत्पादन के सामाजिक साधनों के एक भाग का सोने-चांदी के उत्पादन के लिए प्रति वर्ष व्यय करना आवश्यक है। जो पूंजीपति सोने-चांदी के उत्पादन में लगे हुए हैं और जो साधारण पुनरुत्पादन की हमारी कल्पना के अनुसार अपना उत्पादन केवल सालाना औसत घिसाई और उसके परिणाम- स्वरूप सोने-चांदी की सालाना औसत खपत की सीमानों के भीतर करते हैं, वे अपने बेशी मूल्य को-जिसे वे हमारी कल्पना के अनुसार उसके किसी भी भाग के पूंजीकरण के बिना वार्षिक उपभोग में लाते हैं-प्रत्यक्षतः परिचलन में द्रव्यरूपेण डाल देते हैं, जो उत्पादन की अन्य शाखाओं के विपरीत, जहां वह उत्पाद का परिवर्तित रूप होता है, यहां उसका नैसर्गिक रूप है। फिर , जहां तक मजदूरी का संबंध है - उस द्रव्य रूप, जिसमें परिवर्ती पूंजी पेशगी दी जाती है- यह मजदूरी भी उत्पाद की विक्री द्वारा, द्रव्य में उसके रूपांतरण द्वारा नहीं, वरन स्वयं उस उत्पाद द्वारा प्रतिस्थापित होती है, जिसका नैसर्गिक रूप प्रारंभ से ही द्रव्य रूप होता है। अंततः यही वात बहुमूल्य धातुओं के उत्पाद के उस भाग पर भी लागू होती है, जो नियतकालिक रूप में उपभुवत स्थिर पूंजी- वर्ष में उपभुवत स्थिर प्रचल पूंजी और स्थिर स्थायी पूंजी, दोनों के मूल्य के वरावर होता है। आइये , पहले द्र मा द्र' के रूप में बहुमूल्य धातुओं उत्पादन. में निवेशित पूंजी के परिपथ अथवा आवर्त पर विचार करें। चूंकि द्र मा के अंतर्गत मा में श्रम शक्ति और उत्पादन साधन ही नहीं होते , वरन स्थायी पूंजी भी होती है, जिसके मूल्य का केवल एक भाग उ में उपभुक्त होता है, इसलिए स्पष्ट है कि द्र'- उत्पाद - ऐसी द्रव्य राशि है, जो मजदूरी में लगाई परिवर्ती पूंजी, उत्पादन साधनों में लगाई प्रचल स्थिर पूंजी और छीजी हुई स्थायी पूंजी के तुल्य मूल्यांश तथा वेशी मूल्य - इन सब के योग के वरावर है। यदि यह राशि और कम हो, तो- सोने का सामान्य मूल्य यथावत रहने पर-खान अलाभदायी हो जायेगी अथवा , यदि यह स्थिति सामान्य हो जाये, तो मालों के अपरिवर्तित मूल्य की तुलना में सोने का मूल्य आगे चलकर वढ़ जायेगा, अर्थात मालों की कीमत गिर जायेगी, जिससे द्र-मा में लगाई हुई द्रव्य राशि आगे से कम होती जायेगी। यदि हम पहले पूंजी के केवल द्र-मा द्र' के प्रारंभ विंदु द्र में पेशगी दिये प्रचल भाग पर विचार करें, तो हम देखते हैं कि श्रम शक्ति की अदायगी और उत्पादन सामग्री को खरीद के लिए एक निश्चित द्रव्य राशि पेशगी दी जाती है, परिचलन में डाली जाती है। किंतु यह राशि इस पूंजी के परिपथ द्वारा परिचलन से निकाली नहीं जाती, जिससे कि वह उसमें फिर नये सिरे से डाली जा सके। उत्पाद अपने भौतिक रूप में भी द्रव्य है; अतः विनिमय द्वारा, परिचलन प्रक्रिया द्वारा, उसका द्रव्य में परिवर्तन आवश्यक नहीं होता। वह उत्पादन प्रक्रिया से परिचलन प्रक्रिया में पहुंच जाता है , उस माल पूंजी रूप में नहीं, जिसे द्रव्य पूंजी में पुनःपरिवर्तित करना होता है, वरन उस द्रव्य पूंजी के रूप में, जिसे उत्पादक पूंजी में पुनःपरिवर्तित करना होता है, अर्थात जिसे ताजा श्रम शक्ति और उत्पादन सामग्री . . . 19°