पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२९६

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वेशी मूल्य का परिचलन २६५ 1 . 1 इस कठिनाई को सत्याभासी वाग्छल से मिटाने से काम नहीं चलेगा। मिसाल के लिए: जहाँ तक स्थिर प्रचल पूंजी का संबंध है, स्पष्ट है कि सभी उसे एकसाथ ही निवेशित नहीं करते। जहां पूंजीपति क अपनी पण्य वस्तुएं वेचता है, जिससे उसकी पेशगी पूंजी द्रव्य रूप धारण करती है, वहां दूसरी ओर ग्राहक ख की उपलभ्य द्रव्य पूंजी होती है, जो उसके उत्पादन साधनों-ठीक वही, जो क पैदा कर रहा है- का रूप लेती है। जिस क्रिया द्वारा क अपनी उत्पादित माल पूंजी को द्रव्य रूप में बहाल करता है, उसी के द्वारा ख अपनी पूंजी को उसके उत्पादक रूप में वापस लाता है, उसे द्रव्य रूप से श्रम शक्ति और उत्पादन साधनों में रूपांतरित करता है, वही द्रव्य राशि हर साधारण क्रय मा द्र की ही तरह द्विविध प्रक्रिया में कार्य करती है। दूसरी ओर, जव क अपना द्रव्य उत्पादन साधनों में पुनःपरिवर्तित करता है, तो वह ग से खरीदारी करता है और यह व्यक्ति उससे ख की अदा- यगी करता है, इत्यादि, और इस प्रकार इस लेन-देन की व्याख्या की जा सकती है। किंतु : माल के परिचलन में प्रचल द्रव्य की मात्रा के संदर्भ में स्थापित किये गये नियमों (Buch I, Kap. III)* में से किसी को भी उत्पादन प्रक्रिया का पूंजीवादी स्वरूप किसी प्रकार भी नहीं बदलता। इसलिए जब कहा जाता है कि द्रव्य रूप में समाज की जो प्रचल पूंजी पेशगी दी जाने को है , वह ५०० पाउंड है, तो पहले ही इस बात को ध्यान में ले लिया जाता है कि एक ओर यह साथ ही पेशगी दी गयी रक़म है, और दूसरी ओर यह ५०० पाउंड से अधिक उत्पादक पूंजी को गतिशील करती है, क्योंकि वह बारी-बारी से विभिन्न उत्पादक पूंजियों की द्रव्य निधि का काम करती है। इसलिए व्याख्या का यह ढंग उस द्रव्य को, जिसके अस्तित्व की व्याख्या करनी है, पहले से ही अस्तित्वमान मान लेता है। आगे और कहा जा सकता है : पूंजीपति क ऐसी चीजों का उत्पादन करता है, जिनका पूंजीपति ख व्यक्तिगत , अनुत्पादक उपभोग करता है। अतः ख का द्रव्य क की माल पूंजी को द्रव्य में बदलता है और इस प्रकार वही द्रव्य राशि ख के वेशी मूल्य का और क की प्रचल स्थिर पूंजी का सिद्धिकरण करती है। किंतु इस हालत में जिस समस्या का हल अभी होने को है, उसे और भी प्रत्यक्षतः हल हो चुका माना जाता है, यानी : ख को वह द्रव्य कहां से मिलता है, जो उसकी आय होता है ? उसने खुद ही अपने उत्पाद के वेशी मूल्य के इस भाग का कैसे सिद्धिकरण किया ? यह भी कहा जा सकता है कि प्रचल परिवर्ती पूंजी का जो भाग क अपने मजदूरों वरावर पेशगी देता रहता है, वह उसके पास परिचलन से वरावर वापस आता रहता है, और केवल उसका एक वदलता हुआ हिस्सा मजदूरी की अदायगी के लिए उसके पास हमेशा बना रहता है। लेकिन व्यय और पश्चप्रवाह के बीच कुछ समय बीतता है और इस वीच मजदूरी के लिए व्यय किया हुआ द्रव्य अन्य उपयोगों के अलावा वेशी मूल्य के सिद्धिकरण के काम या सकता है। . • हिंदी संस्करण : अध्याय ३।-सं०