पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२९७

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पूंजी का प्रावत .. . नेरिन न जानते है कि पहले तो यह समय जितना ही अधिक होगा, उस द्रव्य को प्रति भी उतना ही अधिक होगी, जो पूंजीपति क को लगातार in petto [पास में] रखनी होगी। दूसरे, मजदूर धन सनं करता है, उसने पन्य वस्तुएं भी खरीदता है और pro tanto [तत्प्रमाणे] उनमें निहिन बेगी मूल्य को द्रव्य में परिवर्तित करता है। फलतः जो द्रव्य परिवर्ती पूंजी के का में पंगगी दिया जाता है, वही pro tanto वेशी मूल्य को द्रव्य में परिवर्तित करने के काम भी प्राता है। इस समस्या में यहां और गहराई में गये विना इतना कहना काफ़ी होगा : समूचे पूंजीपति वर्ग और उनके परिचरों का उपभोग मजदूर वर्ग के उपभोग के साथ-साथ चलता है, नलिए नजदूरों द्वारा परिचलन में द्रव्य टालने के ही साथ-साथ पूंजीपतियों को भी उसमें द्रव्य दालना होगा, जिसने अपने बेशी मूल्य को प्राय की तरह खर्च कर सकें। अतः इसके लिए परिवलन ने द्रव्य निकालना होगा। यह व्याच्या आवश्यक द्रव्य की मात्रा को वस घटाने का ही काम करेगी, विलोपन करने का नहीं। अंत में यह भी कहा जा सकता है : जब स्थायी पूंजी पहली वार निवेशित की जाती है, तब परिचलन में एक बड़ी द्रव्य राशि निरंतर डाली जाती है, और उसे परिचलन में डालनेवाले को केवल क्रमशः, चंडशः, अनेक वर्ष बीत जाने पर ही परिचलन से पुनः प्राप्त होती है। वेगी मूल्य को द्रव्य में बदलने के लिए क्या यह राशि पर्याप्त नहीं हो सकती ? इसका जवाब यह होना चाहिए कि शायद ५०० पाउंड की राशि में (जिसमें आवश्यक प्रारक्षित निधियों के लिए अपसंचय निर्माण शामिल है) इसका स्थायी पूंजी के रूप में जिस व्यक्ति ने उसे परिचलन में डाला है, उसके द्वारा नहीं, तो किसी और व्यक्ति द्वारा नियोजन सन्निहित है। इसके अलावा स्थायी पूंजी का काम देनेवाले उत्पाद को जुटाने में व्ययित रकम के बारे में पहले ही यह मान लिया गया है कि उसमें अंतर्विष्ट वेशी मूल्य भी चुकाया गया है, और प्रश्न ठीक यही है कि यह धन आता कहां से है। इसका सामान्य उत्तर पहले ही दिया जा चुका है : यदि १,००० पाउंड के क गुना की माल राशि को परिचालित होना है, तो इस परिचलन के लिए आवश्यक द्रव्य की मात्रा में इससे क़तई कुछ भी तबदीली नहीं आती कि इस माल राशि के मूल्य में कुछ वेशी मूल्य है या नहीं, यह माल राशि पूंजीवादी ढंग से उत्पादित हुई है या नहीं। अतः स्वयं समस्या ही अस्तित्वमान नहीं है। और जव मुद्रा संचलन वेग, अदि जैसी सभी परिस्थितियां निश्चित हों, तो १,००० पाउंड के क गुना के माल मूल्य के परिचलन के लिए इसके लिहाज़ के विना एक निश्चित द्रव्य राशि आवश्यक है कि इन पण्य वस्तुओं के प्रत्यक्ष उत्पादकों को इस मूल्य का कितना कम या ज्यादा हिस्सा मिलता है। अगर यहां कोई समस्या है, तो वह इस सामान्य समस्या के पूर्णतः अनुरूप है : किसी देश के माल परिचलन के लिए आवश्यक धन कहां से पाता है? फिर भी पूंजीवादी उत्पादन के दृष्टिकोण से एक विशेप समस्या का प्राभास वस्तुतः विद्यमान है। प्रस्तुत प्रसंग में पूंजीपति प्रस्थान बिंदु के रूप में सामने आता है, जो परिचलन में द्रव्य दालता है। मजदूर जो धन निर्वाह साधनों को अदा करने के लिए खर्च करता है, वह पहले परिवर्ती पूंजी के द्रव्य रूप में विद्यमान था और इसलिए उसे पूंजीपति ने मूलतः श्रम गक्ति को मरीदने या उसकी अदायगी के साधन रूप में परिचलन में डाला था। इसके अलावा पूंजीति परिचलन में वह धन भी डालता है, जो उसकी स्थिर, स्थायी और प्रचल , पूंजी का ..