पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२९८

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वेशी मूल्य का परिचलन २६७ मूल द्रव्य रूप होता है; वह उसे श्रम उपकरणों और उत्पादन सामग्री की खरीद या अदायगी के साधन रूप में इस्तेमाल करता है। किंतु पूंजीपति इसके आगे परिचलनगत द्रव्य की मात्रा के प्रारंभ विंदु के रूप में सामने नहीं आता है। अब केवल दो प्रस्थान विंदु हैं : पूंजीपति और श्रमिक । व्यक्तियों के अन्य सभी तीसरे संवर्गों को अपनी सेवाओं के लिए या तो इन दो वर्गों वे से धन प्राप्त करना होगा, या जहां तक वे उसे प्रतिदान में सेवा विना ही प्राप्त करते हैं, किराये , व्याज, आदि के रूप में वेशी मूल्य के सहस्वामी होते हैं। वेशी मूल्य औद्योगिक पूंजीपति की जेव में पूर्णतः ठहर ही नहीं पाता, वरन दूसरों को उसका हिस्सा देना पड़ता है, इसका प्रस्तुत समस्या से कुछ भी संबंध नहीं है। समस्या यह है कि वह अपने वेशी मूल्य को धन में कैसे बदलता है, यह नहीं कि जो कुछ मिला, उसका आगे चलकर वंटवारा कैसे होता है। हमारे उद्देश्य के लिए पूंजीपति को अब भी वेशी मूल्य का एकमात्र स्वामी माना जा सकता है। जहां तक मजदूर का संबंध है, यह पहले ही कहा जा चुका है कि वह परिचलन में मजदूर द्वारा डाले गये द्रव्य का गौण प्रारंभ विंदु है, मुख्य बिंदु पूंजीपति है। परिवर्ती पूंजी के रूप में जो द्रव्य पहले पेशगी दिया गया था, वह अव परिचलन के अपने दूसरे दौर में होता है, जिसमें उसे मजदूर अपने निर्वाह साधनों की अदायगी के लिए खर्च करता है। फलतः पूंजीपति वर्ग ही द्रव्य परिचलन का एकमात्र प्रस्थान विंदु रहता है। यदि पूंजीपतियों को ४०० पाउंड उत्पादन साधनों की अदायगी के लिए और १०० पाउंड श्रम शक्ति की अदायगी के लिए चाहिए, तो वे ५०० पाउंड परिचलन में डालते हैं। किंतु १००% वेशी मूल्य की दर से उत्पाद में समाविष्ट वेशी मूल्य १०० पाउंड के मूल्य के बराबर है। पूंजीपति लोग परिचलन से लगातार ६०० पाउंड कैसे निकाल सकते हैं, जब वे उसमें लगातार सिर्फ ५०० पाउंड ही डालते हैं ? कुछ न डालो, तो कुछ न मिलेगा। पूंजीपति वर्ग समूचे तौर पर परिचलन से वह कुछ नहीं निकाल सकता, जो उसमें पहले डाला नहीं गया था। हम यहां इस तथ्य को अनदेखा करते हैं कि ४०० पाउंड की रकम १० वार श्रावर्तित किये जाने पर ४,००० पाउंड मूल्य के उत्पादन साधन और १,००० पाउंड मूल्य की श्रम शक्ति को परिचालित करने के लिए पर्याप्त हो सकती है, और इसी प्रकार दूसरे १०० पाउंड १,००० पाउंड के वेशी मूल्य को परिचालित करने को पर्याप्त हो सकते हैं। द्रव्य राशि का परिचालित माल के मूल्य से अनुपात यहां महत्वहीन है। समस्या वही बनी रहती है। अगर द्रव्य के वही अंश अनेक वार परिचालित न हों, तो ५,००० पाउंड की पूंजी परिचलन में डालनी होगी और वेशी मूल्य को द्रव्य में बदलने के लिए १,००० पाउंड आवश्यक होंगे। प्रश्न यह है कि यह द्रव्य , चाहे वह १,००० पाउंड हो और चाहे १०० पाउंड , आता कहां से है। जो भी हो, यह परिचलन में डाली गई द्रव्य पूंजी से अधिक होता है। पहली निगाह में चाहे यह विरोधाभास प्रतीत हो, किंतु वस्तुतः स्वयं पूंजीपति वर्ग ही परिचलन में वह धन डालता है, जो पण्य वस्तुओं में समाविष्ट वेशी मूल्य के सिद्धिकरण का काम करता है। मगर nota bene [ध्यान दीजिये], वह उसे पेशगी द्रव्य के रूप में, अतः पूंजी के रूप में परिचलन में नहीं डालता। वह उसे अपने व्यक्तिगत उपभोग के लिए क्रय साधन के रूप में खर्च करता है। अतः द्रव्य पूंजीपति वर्ग द्वारा पेशगी नहीं दिया जाता, यद्यपि वह उसके परिचलन का प्रस्थान बिंदु अवश्य है। एक ऐसा अलग पूंजीपति ले लीजिये, जो व्यवसाय शुरू कर रहा है, जैसे एक फ़ार्मर । पहले साल वह , मान लीजिये , ५,००० पाउंड की द्रव्य पूंजी पेशगी लगाता है-४,००० 1 .