पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२९९

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पूंजी का प्रावत पाउंट उत्पादन साधनों के लिए और १,००० पाउंड श्रम शक्ति के लिए। मान लीजिये, वेशी मूल्य की दर १००% है, उसके द्वारा हस्तगत वेशी मूल्य की रकम १,००० पाउंड है। द्रव्य पूंजी के रूप में वह जितना पैसा पेणगी देता है, वह सब मिलाकर यही ५,००० पाउंड है। लेकिन आदमी को जिंदा भी रहना होता है और साल खत्म होने से पहले उसके हाय कुछ भी धन नहीं पाता। मान लीजिये , उसका उपभोग १,००० पाउंड है। यह रक़म उसके पास होनी चाहिए। वह कह सकता है कि उसे पहले साल के दौरान ये १,००० पाउंड अपने को पेशगी देने होते हैं। किंतु यह पेशगी, जो यहां केवल आत्मगत अर्य में पेशगी है, इसके अलावा और कुछ व्यक्त नहीं करती कि पहले साल के दौरान उसे अपने व्यक्तिगत उपभोग के लिए अपनी जेब से खर्च करना होगा, अपने मजदूरों को मुफ्त पैदावार से नहीं। यह धन वह पूंजी रूप में पेशगी नहीं देता। वह उसे खर्च करता है , वह जिन निर्वाह साधनों का उपभोग करता है, उनके समतुल्य के रूप में उसे दे देता है। यह मूल्य उसके द्वारा द्रव्य रूप में खर्च किया , परिचलन में डाला और माल मूल्यों के रूप में उससे निकाला गया है। उसने इन माल मूल्यों का उपभोग कर डाला है। इस तरह उनके मूल्य से अब उसका कोई संबंध नहीं रह गया है। इस मूल्य के लिए उसने जो धन दिया था, वह अव परिचालित द्रव्य के एक तत्व के रूप में विद्यमान है। किंतु उसने इस द्रव्य का मूल्य उत्पाद के रूप में परिचलन से निकाल लिया है और अव यह मूल्य उन पण्य वस्तुओं के साथ नष्ट हो जाता है, जिनमें वह अस्तित्वमान था। वह सब का सब खत्म हो जाता है। लेकिन साल ख़त्म होने पर वह ६,००० पाउंड मूल्य का माल परिचलन में डालता है और उसे बेच देता है। इस तरीके से वह १) ५,००० पाउंड की अपनी पेशगी द्रव्य पूंजी तथा २) १,००० पाउंड के सिद्धिकृत वेशी मूल्य को वसूल कर लेता है। उसने ५,००० पाउंड पूंजी रूप में पेशगी दिये , उन्हें परिचलन में डाला और अब वह उससे ६,००० पाउंड निकालता है, जिसमें ५,००० पाउंड उसकी पूंजी के हैं और १,००० पाउंड उसके बेशी मूल्य के। अंतोक्त १,००० पाउंड उस द्रव्य के साथ , जिसे उसने खुद परिचलन में डाला है, जिसे उसने पेशगी नहीं दिया था, वरन पूंजीपति की हैसियत से नहीं, उपभोक्ता की हैसियत से खर्च किया था, द्रव्य में परिवर्तित हो जाते हैं। वे उसके पास उसके द्वारा उत्पादित वेशी मूल्य के द्रव्य रूप में वापस आ जाते हैं। और अब से यह क्रिया हर साल दोहराई जायेगी। लेकिन दूसरे साल से वह जो १,००० पाउंड खर्च करता है, वे निरंतर उसके द्वारा उत्पादित वेशी मूल्य का परिवर्तित रूप, द्रव्य रूप होते हैं। वह उन्हें सालाना ख़र्च करता है, और वे सालाना उसके पास वापस आते हैं। यदि उसकी पूंजी हर साल अधिक प्रायिकता से प्रावर्तित होती , तो उससे स्थिति में कोई फ़र्क न पड़ता , किंतु समय की दीर्घता पर और इसलिए उस रकम पर प्रभाव पड़ता, जिसे उसने अपनी पेशगी द्रव्य पूंजी के अलावा अपने व्यक्तिगत उपभोग के लिए परिचलन में डाला होता। पूंजीपति द्वारा यह द्रव्य परिचलन में बतौर पूंजी नहीं डाला जाता। किंतु जब तक वेशी मूल्य वापस आना शुरू हो, तब तक उन साधनों के बल पर, जो उसके अधिकार में हैं, रह पाना पूंजीपति की निश्चित विशेपता है। प्रस्तुत प्रसंग में हमने कल्पना की थी कि अपनी पूंजी के पहले प्रतिफल के श्राने तक पूंजीपति अपने व्यक्तिगत उपभोग का दाम चुकाने के लिए जो द्रव्य राशि परिचलन में डालता है, वह उस वेशी मूल्य के विल्कुल बराबर है, जिसे उसने उत्पादित किया है और इसलिए 1