पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३०१

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पूंजी का प्रावत - . . प्रतिस्यापित करती है और कितनी माना वेशी मूत्य को व्यक्त करती है, यह केवल माव परि- नालित माल के मूल्य के मजदूरी और वेशी मूल्य के साथ क्रमिक अनुपातों पर निर्भर करता है। बेगी मूल्य वाला अंश पूंजीपति वर्ग के विभिन्न सदस्यों के बीच बंट जाता है। यद्यपि इस अंश को वे व्यक्तिगत उपभोग के लिए निरंतर खर्च करते रहते हैं और नये उत्पाद की विक्री द्वारा फिर बमूल करते रहते हैं,- यह क्रय-विक्रय ही वेशी मूल्य को द्रव्य रूप में बदलने के आवश्यक द्रव्य को उनके वीच परिचालित करता है, फिर भी सामाजिक वेशी मूल्य का एक भाग द्रव्य रूप में, भले ही बदलते अनुपात में, पूंजीपतियों की जेब में होता है, जैसे मजदूरी का एक भाग हफ़्ते के कम से कम कुछ दिन मजदूरों की जेब में द्रव्य रूप में होता है। यह भाग द्रव्य उत्पाद के उस अंश द्वारा सीमित नहीं होता, जो मूलतः स्वर्ण उत्पादक पूंजीपतियों का वेशी मूल्य होता है, बल्कि - जैसा हम कह चुके हैं - उस अनुपात द्वारा सीमित होता है, जिसमें ५०० पाउंड का उपर्युक्त उत्पाद मजदूरों और पूंजीपतियों के बीच सामान्यतः वितरित होता है और जिसमें वेशी मूल्य तथा मूल्य के दूसरे घटक परिचालित होनेवाली पण्य पूर्ति में समाविष्ट होते हैं। फिर भी वेशी मूल्य का वह अंश, जो अन्य पण्य वस्तुओं में नहीं, वरन द्रव्य रूप में उनके साथ ही साथ अस्तित्वमान होता है, केवल उसी सीमा तक प्रति वर्प उत्पादित स्वर्ण का भाग होता है कि सोने के वार्पिक उत्पादन का एक हिस्सा वेशी मूल्य का सिद्धिकरण करने के लिए परिचालित होता है। द्रव्य का दूसरा अंश , जो पूंजीपति वर्ग के हाथ में विभिन्न मात्राओं में निरंतर उसके वेशी मूल्य के द्रव्य रूप रहता है, प्रति वर्प उत्पादित स्वर्ण का अंश नहीं होता, वरन देश में पहले ही संचित द्रव्य राशि का अंश होता है। हमारी कल्पना के अनुसार सोने का वार्पिक उत्पादन ५०० पाउंड है, जो द्रव्य की सा- लाना ठोजन भर के लिए काफ़ी होता है। यदि हम केवल इन ५०० पाउंड को ही ध्यान में और प्रति वर्ष उत्पादित माल राशि के पूर्वसंचित द्रव्य द्वारा परि लत अनदेखा कर दें, तो माल रूप में उत्पादित वेशी मूल्य महज़ इसलिए द्रव्य में अपने रूपांतरण के लिए परिचलन प्रक्रिया में द्रव्य रूप प्राप्त कर लेगा कि दूसरी ओर वेशी मूल्य प्रति वर्ष सोने के रूप में उत्पादित होता है। ५०० पाउंड के स्वर्ण उत्पाद के जो अन्य भाग पेशगी द्रव्य पूंजी का प्रतिस्थापन करते हैं, उन पर भी यही वात लागू होती है। इस सिलसिले में यहां दो बातों पर ध्यान देना चाहिए। पहली बात यह कि इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि पूंजीपति द्रव्य रूप में जो वेशी मूल्य खर्च करते हैं और जो परिवर्ती तथा अन्य उत्पादक पूंजी वे द्रव्य रूप में पेशगी देते हैं, वह वास्तव में मजदूरों का उत्पाद होता है, यानी सोने के उत्पादन में लगे मजदूरों का उत्पाद । वे स्वर्ण उत्पाद के केवल उसी भाग का, जो उन्हें मजदूरी के रूप में "पेशगी" दिया जाता है, नवोत्पादन नहीं करते, वरन स्वर्ण उन्पाद के उस भाग का भी करते हैं, जिसमें स्वर्ण उत्पादक पूंजीपतियों का वेशी मूल्य प्रत्यक्षतः व्यक्त होता है। अंततः, जहां तक स्वर्ण उत्पाद के उस भाग का संबंध है, जो केवल स्वर्ण उत्पादन के लिए पेशगी स्थिर पूंजी मूल्य का प्रतिस्थापन करता है, वह केवल मजदूरों के वार्पिक श्रम द्वारा द्रव्य रूप में (अथवा सा- मान्यतः उत्पाद के रूप में) पुनः प्रकट होता है। जब व्यवसाय शुरू हुआ था, पूंजीपति द्वारा यह मूलतः उस द्रव्य के रूप में खर्च किया गया था, जो नवोत्पादित नहीं था, वरन जो सा- माजिक द्रव्य की परिचलनशील राशि का अंश था। किंतु जहां तक उसका प्रतिस्थापन नये .