पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३०६

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वेशी मूल्य का परिचलन ३०५ . किंतु इसके विपरीत द्रव्य परिचलन में तेजी आने का मतलव अनिवार्यतः पूंजी का और इसलिए द्रव्य का तीव्रतर आवर्त वेग नहीं होता, अर्थात उसका मतलव अनिवार्यतः पुनरुत्पादन प्रक्रिया का संकुचन और अधिक तीव्र नवीकरण नहीं होता। जब भी उसी एक द्रव्य राशि से अधिक संख्या में लेन-देन किये जाते हैं, तव द्रव्य का परिचलन और भी तेजी से होता है। ऐसा द्रव्य परिचलन की प्राविधिक सुविधाओं में परिवर्तनों के परिणामस्वरूप पूंजी पुनरुत्पादन की उन्हीं अवधियों के अंतर्गत भी हो सकता है। फिर, ऐसे लेन-देनों की संख्या में वृद्धि हो सकती है, जिनमें द्रव्य माल के वास्तविक विनिमय को प्रकट किये विना परिचलन करता है (शेयर बाजार में सीमांत लेन-देन , आदि)। दूसरी ओर द्रव्य के कुछ परिचलनों का पूर्णतः विलोपन भी हो सकता है, मसलन, जहां काश्तकार खुद 'भूस्वामी होता है, वहां काश्तकार और भूस्वामी के बीच कोई द्रव्य परिचलन न होता ; जहां प्रौद्योगिक पूंजीपति स्वयं पूंजी का मालिक है, वहां उसके और ऋणदाताओं के बीच कोई द्रव्य परिचलन नहीं होता। 1 . जहां तक किसी देश में द्रव्य अपसंचय आद्य निर्माण और उसके कुछ लोगों द्वारा अधिकरण का प्रश्न है, उसका यहां विस्तार से विवेचन अनावश्यक है। उत्पादन की पूंजीवादी पद्धति का आधार उजरती श्रम , मजदूर की द्रव्य रूप में अदायगी और सामान्यतः जिंस अदायगी का नक़द अदायगी में रूपांतरण है, इसलिए वह सिर्फ तव ही अधिक बड़ा आकार ग्रहण कर सकती है और अधिक पूर्णता प्राप्त कर सकती है कि अगर देश में परिचलन के लिए और उसके द्वारा संवर्धित अपसंचय (आरक्षित निधि, आदि ) के निर्माण के लिए पर्याप्त मात्रा में द्रव्य उपलभ्य हो। यह ऐतिहासिक आधारिका है, यद्यपि इसका यह अर्थ न लगाना चाहिए कि पहले पर्याप्त अपसंचय का निर्माण होता है और तब जाकर ही पूंजी- वादी उत्पादन की शुरूआत होती है। वह उसके लिए आवश्यक परिस्थितियों का विकास होने के साथ-साथ ही विकसित होता जाता है और इनमें एक परिस्थिति है वहुमूल्य धातुओं की पर्याप्त पूर्ति। इसलिए सोलहवीं सदी से मूल्यवान धातुओं की वर्धित पूर्ति पूंजीवादी उत्पादन के विकास के इतिहास का एक बुनियादी तत्व है। किंतु जहां तक पूंजीवादी उत्पादन के आधार पर द्रव्य सामग्री की अतिरिक्त आवश्यक पूर्ति का संबंध है, हम एक ओर वेशी मूल्य को उस उत्पाद में, जिसे उसे द्रव्य में बदलने के लिए आवश्यक द्रव्य के विना ही परिचलन में डाल दिया जाता है, समाविष्ट और दूसरी ओर वेशी मूल्य को उत्पाद के द्रव्य में पहले रूपांतरण के बिना सोने के रूप में देखते हैं। द्रव्य में बदली जानेवाली अतिरिक्त पण्य वस्तुओं को. आवश्यक द्रव्य राशि इसलिए मिल जाती है कि दूसरी तरफ़ पण्य वस्तुओं के रूप में परिवर्तत के लिए अतिरिक्त सोने (और चांदी) को विनिमय के द्वारा नहीं, वरन स्वयं उत्पादन द्वारा परिचलन में डाल दिया जाता है। २. संचय और विस्तारित पैमाने पर पुनरुत्पादन संचय चूंकि विस्तारित पुनरुत्पादन के रूप में होता है, इसलिए यह स्पष्ट है कि वह द्रव्य परिचलन के बारे में कोई नई समस्या नहीं पेश करता। 10-1180