पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३०८

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वेशी मूल्य का परिचलन ३०७ , परिचलन करता है, जव कि दूसरा भाग द्रव्य के रूप में अचल रहता है। वस्तुतः उस हालत में द्रव्य केवल निलंबित सिक्का होता है और सिक्कों की चालू राशि के भिन्न-भिन्न भाग लगातार कभी इस रूप में, तो कभी उस रूप में प्रकट होते और निरंतर वारी-बारी से आते रहते हैं। अतः परिचलन माध्यम का द्रव्य में यह पहला रूपांतरण स्वयं द्रव्य परिचलन के एक प्राविधिक पक्ष को ही प्रकट करता है" (कार्ल मार्क्स , Zur Kritik der Politischen Oekonomie, १८५६, पृष्ठ १०५, १०६)। (द्रव्य से भिन्न “सिक्के" का प्रयोग यहां उस द्रव्य के लिए किया गया है, जो अपने अन्य कार्यों से भिन्न केवल परिचलन के माध्यम का कार्य करता है।) जब ये सारे उपाय काफ़ी नहीं होते , तव अतिरिक्त सोना पैदा करना होता है अथवा , जो वही बात है, अतिरिक्त उत्पाद के कुछ भाग का सोने से - जिन देशों में बहुमूल्य धातुओं का खनन किया जाता है, उनके उत्पाद से- प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष विनिमय करना होता है। परिचलन उपकरण के रूप में अभीष्ट सोने और चांदी के वार्षिक उत्पादन में व्ययित श्रम शक्ति और उत्पादन के सामाजिक साधनों की समस्त राशि पूंजीवादी उत्पादन पद्धति के, सामान्यतः पण्य उत्पादन की एक भारी मद faux frais है। यह सामाजिक उपयोग से यथासंभव अधिकतम अतिरिक्त उत्पादन तथा उपभोग साधनों का , अर्थात वास्तविक धन का तुल्य अपाहरण है। परिचलन के इस ख़र्चीले तंव की लागत जिस सीमा तक कम की जाती है, उत्पादन के दिये हुए पैमाने या उसके विस्तार की दी हुई मात्रा के स्थिर रहने पर सामाजिक श्रम की उत्पादक शक्ति eo ipso बढ़ जाती है। अतः जहां तक उधार पद्धति के साथ विकसित होनेवाले साधनों का यह प्रभाव रहता है, वे या तो वास्तविक द्रव्य के किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप के विना सामाजिक उत्पादन और श्रम प्रक्रिया के काफ़ी अंश का निष्पादन करके या वस्तुतः कार्यरत द्रव्य की मात्रा की कार्य क्षमता बढ़ाकर पूंजीवादी संपदा में प्रत्यक्ष वृद्धि करते हैं। इससे इस निरर्थक सवाल का भी निपटारा हो जाता है कि उधार पद्धति के विना ( केवल इसी दृष्टि से भी देखने पर) अर्थात केवल धातु सिक्के के परिचलन से पूंजीवादी उत्पादन अपने मौजूदा परिमाण में संभव होगा या नहीं। स्पष्टत : ऐसा नहीं है। बल्कि उसने वहुमूल्य धातुओं के उत्पादन के परिमाण में ही बाधाओं का सामना किया होता। इसके विपरीत , जहां तक उधार पद्धति द्रव्य पूंजी की पूर्ति करती है या उसे गतिशील करती है, उसकी उत्पादक शक्ति के बारे में किसी को कोई हवाई कल्पनाएं न पालनी चाहिए। इस समस्या का और अधिक विश्लेषण यहां अप्रासंगिक है। अव हमें उस प्रसंग का अन्वेषण करना है, जिसमें कोई वास्तविक संचय नहीं होता, अर्थात उत्पादन के पैमाने का प्रत्यक्ष विस्तार नहीं होता, किंतु जहां सिद्धिकृत वेशी मूल्य के एक भाग को न्यूनाधिक समय तक आरक्षित द्रव्य निधि के रूप में इसलिए संचित होना होता है कि आगे चलकर उत्पादक पूंजी में रूपांतरित हो जाये। इस तरह से संचित होनेवाला द्रव्य जहां तक अतिरिक्त द्रव्य है, इस बात की और व्याच्या करना ज़रूरी नहीं है। यह द्रव्य स्वर्ण उत्पादक देशों से लाये वेशी स्वर्ण का एक भाग ही हो सकता है। इस संदर्भ में इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि जिस घरेलू उत्पाद के बदले इस सोने का आयात किया जाता है, वह अब उक्त देश में नहीं रहता। उसे सोने के बदले विदेश को निर्यात कर दिया गया है। 20.