पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३१५

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३१४ कुल सामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन - . - जिसे वह गतिशील करता है, अपने अनुपात में, अर्थात उत्पादन के निरंतर पैमाने से अपने अनुपात में भिन्न होता है। किंतु यह अनुपात जो भी हो, प्रक्रिया के अंतर्गत पूंजी मूल्य का जो भाग उत्पादक पूंजी के रूप में लगातार कार्य कर सकता है, वह हर हालत में पेशगी पूंजी मूल्य के उस भाग द्वारा सीमित हो जाता है, जिसे उत्पादक पूंजी के साथ-साथ सदैव द्रव्य रूप में रहना होता है। यहां प्रश्न केवल सामान्य आवर्त का, निरपेक्ष औसत का है। परिचलन में आनेवाले व्यवधानों के क्षतिपूरण के लिए आवश्यक अतिरिक्त द्रव्य पूंजी विवेचन के बाहर है। पहली वात के बारे में : माल उत्पादन माल परिचलन की पूर्वकल्पना करता है और माल परिचलन माल की द्रव्य रूप में अभिव्यंजना, द्रव्य परिचलन की पूर्वकल्पना करता है ; माल का माल और द्रव्य में विघटन उत्पाद की माल रूप में अभिव्यंजना का नियम है। इसी तरह पूंजीवादी माल उत्पादन - चाहे उसे सामाजिक रूप में देखें, चाहे वैयक्तिक रूप में-हर प्रारंभी व्यवसाय के primus motor और उसके सतत प्रेरक की तरह भी द्रव्य के रूप में पूंजी अथवा द्रव्य पूंजी की पूर्वकल्पना करता है। प्रचल पूंजी विशेषकर यह दिखाती है कि द्रव्य पूंजी अल्पकालिक अंतरालों के बाद सतत आवृत्ति के साथ प्रेरक की तरह काम करती है। समस्त पेशगी पूंजी मूल्य , अर्थात पूंजी के सभी तत्व, जिनमें पण्य वस्तुएं, श्रम शक्ति , श्रम उपकरण और उत्पादन सामग्री समाहित होते हैं, द्रव्य से वार-बार खरीदने होते हैं। जो बात यहां वैयक्तिक पूंजी के लिए सही है, वह सामाजिक पूंजी के लिए भी सही है, जो केवल. अनेक वैयक्तिक पूंजियों के रूप में ही कार्य करती है। किंतु जैसा हम खंड. १ में दिखा चुके हैं , इससे यह नतीजा कभी नहीं निकलता कि पूंजी का कार्य क्षेत्र , उत्पादन का पैमाना-पूंजीवादी आधार पर भी - अपनी निरपेक्ष सीमानों के लिए कार्यरत द्रव्य पूंजी की राशि पर निर्भर करता है। पूंजी में उत्पादन के वे तत्व समाविष्ट होते हैं, जिनका प्रसार किन्हों सीमानों के भीतर पेशगी द्रव्य पूंजी के परिमाण से स्वतंत्र होता है। श्रम शक्ति के लिए अदा की जानेवाली रकम चाहे उतनी ही रहे, तो भी उसका न्यूनाधिक विस्तृत अथवा गहन समुपयोजन किया जा सकता है। यदि इस बढ़े हुए समुपयोजन से द्रव्य पूंजी बढ़ती है ( यानी यदि मजदूरी बढ़ा दी जाये), तो वह यथानुपात नहीं बढ़ती, अतः pro tanto विल्कुल नहीं बढ़ती। उत्पादक रूप में समुपयुक्त प्रकृतिदत्त सामग्रियों-धरती, समुद्र , खनिज , वन , इत्यादि - का, जो पूंजी मूल्य के तत्व नहीं हैं, द्रव्य पूंजी की पेशगी में बढ़ती किये विना श्रम शक्ति की उसी माना के और अधिक प्रयास से अधिक विस्तृत या गहन समुपयोजन किया जाता है। इस प्रकार उत्पादक पूंजी के वास्तविक तत्व अतिरिक्त द्रव्य पूंजी की मांग किये विना बढ़ जाते हैं। किंतु जहां तक ऐसी अनुपूर्ति अतिरिक्त सहायक सामग्री के लिए आवश्यक होती है, जिस द्रव्य पूंजी में यह पूंजी मूल्य पेशगी दिया जाता है, वह उत्पादक पूंजी की परिवर्धित प्रभाविता के यथानु- पात नहीं बढ़ती, अतः pro tanto क़तई नहीं बढ़ती। उन्हीं श्रम उपकरणों और इस प्रकार उसी स्थायी पूंजी को नित्य प्रयोग किये जाने के समय को और बढ़ाकर और उनके नियोजन की गहनता को बढ़ाकर स्थायी पूंजी के लिए अति- रिक्त द्रव्य ख़र्च किये बिना ज्यादा कारगर ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है। उस हालत में स्थायी पूंजी का केवल आवर्त ही अधिक तीव्र हो जाता है, किंतु साथ ही उसके पुनरुत्पादन तत्वों की पूर्ति और शीघ्रता से होती है। प्राकृतिक पदार्थों के अलावा उत्पादक प्रक्रिया में ऐसी प्राकृतिक शक्तियों का, जिनके लिए कुछ ख़र्च नहीं करना होता, न्यूनाधिक प्रभाविता के साथ काम करनेवाले कारकों की तरह .