पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३१९

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33 अध्याय १६ विषय के पूर्व प्रस्तुतीकरण १. प्रकृतितंत्रवादी . केने को Tablcau Economique कुछ स्थूल रूपरेखाओं में यह दिखाती है कि राष्ट्रीय उत्पादन का एक निश्चित मूल्य का वार्षिक परिणाम परिचलन द्वारा कैसे इस तरह वितरित होता है कि और सब परिस्थितियां यथावत हों, तो साधारण पुनरुत्पादन , अर्थात उसी पैमाने पर पुनरुत्पादन हो सकता है। उत्पादन अवधि का प्रारंभ विंदु सही तौर पर पिछले साल की फ़सल होता है। परिचलन की असंव्य अलग-अलग क्रियाएं अपने विशिष्ट वृहत सामाजिक संचलन - समाज के कार्यतः निर्धारित बड़े आर्थिक वों के बीच परिचलन - में मिलकर एक हो जाती हैं। यहां हमारी निम्नलिखित वातों में दिलचस्पी है : कुल उत्पाद का एक भाग - उसके अन्य सभी भागों के समान उपयोग पदार्थ होने नाते पिछले साल के श्रम का नया परिणाम होता है- साय ही उसी दैहिक रूप में प्रकट होनेवाले पुराने पूंजी मूल्य का निधान मात्र होता है। वह परिचलन नहीं करता, वरन अपने उत्पादकों के, कृपक वर्ग के हाथ में रहता है, जिससे कि वहां पूंजी के रूप में फिर अपना काम शुरू कर सके। वर्ष के उत्पाद के इस भाग - स्थिर पूंजी-में, केने असंगत तत्व भी शामिल करते हैं, लेकिन अपने ज्ञान की सीमाओं की बदौलत वह मुख्य बात को पकड़ लेते हैं, जिसकी परिधि में कृपि ही मानव श्रम के निवेश का वेशी मूल्य पैदा करनेवाला एकमात्र क्षेत्र है , अतः पूंजीवादी दृष्टिकोण से एकमात्र वास्तविक उत्पादक क्षेत्र है। पुनरुत्पादन को आर्थिक प्रक्रिया का विशिष्ट सामाजिक स्वरूप चाहे जैसा हो, वह इस क्षेत्र (कृषि ) में हमेशा पुनरुत्पादन की नैसर्गिक प्रक्रिया से गुंथ जाती है। अंतोक्त प्रक्रिया की प्रत्यक्ष परिस्थितियां प्रथमोक्त की परिस्थितियों पर प्रकाश डालती हैं और परिचलन की मरीचिका मे उत्पन्न विचारों को उलझन को दूर करती हैं। किसी व्यवस्था का लेवल दूसरी चीजों के लेबलों से अन्य बातों के अलावा इस बात में भिन्न होता है कि वह ग्राहक ही नहीं, कभी-कभी विक्रेता को भी ठगता है। स्वयं केने तथा उनके अासन्न अनुयायी अपनी दूकान के सामंती नामपट्ट में विश्वास करते थे। यही वात प्राज और इस घड़ी भी हमारे वैयाकरणों के साय भी है। किंतु वस्तुतः प्रकृतितंत्रवादियों की व्यवस्था पूंजीवादी उत्पादन की पहली व्यवस्थित अवधारणा है। प्रौद्योगिक पूंजी का प्रतिनिधि - ग्राभोगी वर्ग-सारी आर्थिक गति का निदेशन करता है। कृपि पूंजीवादी ढंग से की जाती है, अर्थात वह पूंजीपति फ़ार्मर का बड़े पैमाने का उद्यम है ; जमीन का प्रत्यक्ष काश्तकार उजरती 5 पाण्डुलिपि ८ का प्रारंभ। -फे० एं०