पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३२०

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विषय के पूर्व प्रस्तुतीकरण ३१६ मजदूर है। उत्पादन न केवल उपयोग सामग्री का , बल्कि उसके मूल्य का भी सृजन करता है ; उत्पादन का प्रेरक हेतु वेशी मूल्य की प्राप्ति है, जिसका जन्म स्थान उत्पादन क्षेत्र है, परिचलन क्षेत्र नहीं। परिचलन द्वारा अस्तित्व में लाई जानेवाली पुनरुत्पादन की सामाजिक प्रक्रिया के वाहकों के रूप में जो तीन वर्ग सामने आते हैं, उनमें "उत्पादक श्रम का प्रत्यक्ष शोषक, वेशी मूल्य का उत्पादक , ' पूंजीपति फ़ार्मर उनसे भिन्न होता है, जो वेशी मूल्य का विनियोग भर करते हैं। प्रकृतितांत्रिक व्यवस्था के पूंजीवादी स्वरूप ने अपने मुकुलन काल में भी विरोध पैदा किया था : एक ओर उसे लेंगे और मैब्ली ने चुनौती दी थी, दूसरी ओर छोटे उन्मुक्त भूमिघरों के हिमायतियों ने। पुनरुत्पादन प्रक्रिया के विश्लेषण में ऐडम स्मिथ का पश्चगमन 36 इसलिए और भी उल्ले- खनीय है कि वह केवल केने के सही विश्लेषणों का विशदीकरण ही नहीं, मसलन उनकी "avances primitives" और "avances annuelles" का सामान्यीकरण ही नहीं करते, और उन्हें क्रमशः "स्थायी" और "प्रचल" पूंजी” ही नहीं कहते , वरन कुछ स्थलों पर प्रकृतितंत्रवादियों की गलतियों को पूरी तरह दोहराते भी हैं। मसलन, यह दिखाने के लिए कि अन्य किसी प्रकार के पूंजीपति की अपेक्षा फ़ार्मर ज्यादा मूल्य पैदा करता है, वह कहते हैं : "और कोई समान पूंजी फ़ार्मर की पूंजी से अधिक मात्रा में उत्पादक श्रम को गतिशील नहीं करती। उसके कमकर चाकर ही नहीं, उसके कमकर मवेशी भी उत्पादक श्रमिक होते हैं।" ( कमकर चाकरों की क्या उम्दा तारीफ़ गयी है!) "कृषि में भी प्रकृति मनुष्य के साथ श्रम करती है; और यद्यपि उसके श्रम के लिए कोई खर्च नहीं करना पड़ता, फिर भी उसकी उपज का वैसे ही मूल्य होता है, जैसे सबसे ज्यादा मेहनताना पानेवाले मजदूरों की उपज का। कृषि के सबसे महत्वपूर्ण कार्य इतना प्रकृति की उर्वरता को बढ़ाने के उद्देश्य से किये जाते नहीं प्रतीत होते , यद्यपि वे वैसा भी करते हैं, जितना प्रकृति की उर्वरता को मनुष्य के लिए सबसे लाभदायी पौधों को पैदा करने की ओर निदेशित करते जान पड़ते हैं। झाड़-झंखाड़ से भरा खेत भी अक्सर साग-पात की उतनी ही बड़ी मात्रा पैदा कर सकता है, जितनी खू व बढ़िया काश्त किया हुआ अंगूरों का वाग़ या अनाज का खेत । जोतने और रोपने का काम 37 'मावर्स ने केने की Tableau Economique का 'वेशी मूल्य का सिद्धांत' में अधिक विस्तार के साथ विश्लेषण किया है (देखिये, का० मावर्स Theories of Surplus-Value [vol. IV of Capital], Part I, मास्को, १६६३, पृ० २६६ - ३३३ तथा ३६७-३६६)1-सं० BG Kapital, Band 1, 2. Ausgabe, S. 612, Note 32. [' पूंजी', खंड १, दूसरी प्रावृत्ति, मास्को, १९७५, पृष्ठ ६६३, पादटिप्पणी १] 'कुछ प्रकृतितंत्रवादियों, विशेष रूप से तुर्गों, ने यहां भी उनका मार्ग प्रशस्त कर दिया था। केने या अन्य प्रकृतितंत्रवादियों की अपेक्षा तुर्गों ने “avances" के बदले “पूंजी" शब्द का व्यवहार कहीं अधिक वार किया है और कारखानेदारों की "avances" या "capitaux" | पूंजी ) को काश्तकारों के "avances" या "capitaux" के और अधिक तद्प माना है। उदाहरण के लिए : “उनकी ( उद्यमकर्ता कारखानेदारों की) तरह उन्हें (les fermiers, अर्थात पूंजीपति काश्तकारों को ) प्रत्यावर्तित पूंजियों के अलावा प्राप्त होना चाहिए इत्यादि। (तुर्गों, Oeuures, Daire Edition, पेरिस, १८४४, खंड १, पृष्ठ ४०)। .