पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३२३

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कुन नामामि पूंजी का पुनरत्पादन तथा परिचलन 11 11 ., किंतु इन निधि के प्राकार को कार्यगील "पूंजी का अतिलंघन" नहीं करना चाहिए। इस नन्त पतित उगा और नामाजिक उत्पाद दोनों के मूल्य का एक भाग न तो मजदूरी में पोर न नाम में, न किराये में, वरन पूंजी में वियोजित होता है। २) ऐन मिस नेपाल मकल और शुद्ध प्राय" में भेद करके खुद अपने ही मिलान में भागते हैं। पृयर पूंजीपति तथा नमूचा पूंजीपति वर्ग अथवा तथाकथित राष्ट्र उत्पादन में कामत पूंजी के बदले एक माल उत्पाद पाते हैं, जिसका मूल्य - जिसे उत्पाद के समानुपातिक प्रकों द्वारा प्रस्ट किया जा सकता है - एक पोर खर्च किये हुए पूंजी मूल्य को प्रतिस्थापित करता है, और इस प्रकार प्रामदनी अथवा और भी अक्षरशः प्रागम या रेवेन्यू का निर्माण करता है (revenue revenir - प्रत्यागमन - का भूत कृदंत है), किंतु ध्यान दें, पूंजी पर आय अथवा पूंजी पर ग्रामदनी ; दूसरी ओर मूल्य के घटकों को, जो "देश के विभिन्न निवासियों के बीच या तो उन के श्रम की मजदूरी, उनकी पूंजी के लाम या उनकी जमीन के किराये के रूप में विभाजित" होते हैं, निर्माण करता है, जिस चीज़ को आम तौर से आमदनी कहा जाता है। शमनिए समग्र उत्पाद का मूल्य किमी की-या तो अलग पूंजीपति की, या सारे देश की - प्रानदनी बनता है, किंतु वह एक और पूंजी पर ग्रामदनी होता है, और दूसरी ओर उससे भिन्न आगम" ("revenue") होता है। फलतः माल मूल्य के उसके घटकों में विश्लेपण में जो चीज़ बहिष्कृत की जाती है, उसे एक वग़ली दरवाजे - "पागम शब्द के दोहरे अर्थ के द्वारा वापस ले पाया जाता है। किंतु उत्पाद के केवल वही मूल्य घटक “अंदर लाये" जा सकते हैं, जो उसमें पहले से विद्यमान हैं। अगर पूंजी को प्राय के रूप में आना है, तो पूंजी पहले मर्च की जा चुकी होती। ऐडम स्मिय इसके अलावा कहते हैं : “प्रत्येक स्टॉक नियोजन को अनियत घाटों का जो मतरा रहता है, लाभ की न्यूनतम सामान्य दर हमेशा उसकी क्षतिपूर्ति करने के लिए पर्याप्त में कुछ ज्यादा ही होनी चाहिए। यही वह वेशी भाग है, जो शुद्ध या साफ़ लाभ होता है।" [कौन पूंजीपति लाभ से पूंजी के प्रावश्यक व्यय का अर्थ लगाता है ?] “जिसे सकल लाम कहते हैं, उसमें अबसर यह वेशी ही नहीं, वरन वह भी होता है, जो ऐसे असामान्य घाटों की क्षतिपूर्ति के लिए सुरक्षित रखा जाता है। (खंड १, अध्याय ६, पृष्ट ७२)। इसका अर्थ इसके मिवा और कुछ नहीं है कि वेशी मूल्य के एक भाग को, जिसे सकल लाभ का हिस्सा माना जाता है, उत्पादन के लिए वीमा निधि बनना होगा। इस बीमा निधि का निर्माण वेशी धम के एक भाग से होता है, जो उस सीमा तक पूंजी का, अर्थात पुनरुत्पादन हेतु निधि का प्रत्यक्ष उत्पादन करता है। जहां तक स्थायी पूंजी आदि के " अनुरक्षण " से संबंधित व्यय का प्रश्न है ( ऊपरवाले उद्धरण देखें), उपमुक्त स्थायी पूंजी का नई पूंजी द्वारा प्रतिस्थापन पूंजी का नवीन व्यय नहीं है, बल्कि पुराने पूंजी मूल्य का नये रूप में नवीकरण मात्र है। और जहां तः स्थायी पूंजी के प्रतिकार का प्रश्न है, जिसे ऐडम स्मिथ उसी तरह अनुरक्षण व्यय में मामिल करते हैं, यह वचं पेशी पूंजी की कीमत का हिस्सा होता है। इस बात से कि पूंजी- पति यह मय एकबारगी निवेगित करने के बजाय उसे पूंजी के कार्यशील होने के समय क्रमशः, पावश्यकतानुसार निर्देशित करता है, और जो मुनाफ़ा उसकी जेब में पहले ही पहुंच चुका है, उती में से यह मब निवेगित कर सकता है - इस से मुनाफ़े का नोत नहीं बदल जाता। जो मूल्य घटक उसमें समाहित है, वह केवल यही मावित करता है कि मजदूर बीमा निधि के लिए तथा प्रतिकार निधि के लिए भी बेशी श्रम प्रदान करता है। . " ,