पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३२५

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र मानिस मोा पुनस्वादन तथा परिनलन

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4. 11 ने मार्ग का, जो अभोग वन्तुगों का प्रत्यक्ष उत्पादन करने ... किसी परिभात पूरी तरह मही नहीं हैं। कारण यह कि वह कहते Br जनमाने में श्रम गी कोमन सीर उलाद दोनों ही तात्कालिक उपभोग के जाने ": "शोमत" (अर्थात मजदूरी में प्राप्त धन ) "मसदूरों के inा उत्पाद दूसरे तोगों से स्टोर में, जिनके निर्वाह , सुख-सुविधा और मनोरंजन मानों में मजद अम की बोलत वृद्धि होती है।" किंतु मजदूर अपने श्रम की "फ़ीमत" मारे, सच मान नही जी गमता, जिनके रूप में उसे मजदूरी दी जाती है ; वह लगा जामीन वन्नु गरीदकर निद्धिकरण करता है। इनमें अंशतः स्वयं उसके द्वारा मालि गलगो को मिल भी हो सकती हैं। दूसरी ओर उसका अपना उत्पाद ऐसा हो माला कि जो केवल श्रम के समुपयोजकों के उपभोग में आता हो। प्रारफिनी वेग की "शुद्ध प्राय" में स्थायी पूंजी को पूरी तरह से अलग कर देने है वार पदम मिल पागे कहते हैं : रितु मपि म प्रकार स्थायी पूंजी के अनुरक्षण का सारा खर्च अनिवार्यतः समाज की जुद प्राग में निकाल दिया जाता है, फिर भी यह प्रचल पूंजी के अनुरक्षण जैसा ही मामला नती। प्रतीत पंजी जिन नार अंणों - द्रव्य , रमद , सामग्री और तैयार माल - से बनी होती, पहले ही देगा जा चुका है कि इनमें से आखिरी तीनों अंग उससे नियमित रूप से निताले जाते है, और या तो समाज की स्थायी पूंजी में या तात्कालिक उपभोग के लिए प्रारक्षित उनक स्टॉक में गये जाते हैं। उन उपभोज्य सामान के जिस भी अंश का पूर्वोक्त रे." [ग्यायी पंजी के] 'अनुरक्षण में नियोजन नहीं होता, वह सब उत्तरोक्त" [तात्कालिक उपभोग] " में चला जाता है और समाज की शुद्ध प्राय का ग्रंश बन जाता है। अतः प्रनल पंजी के उन तीनों भागों का अनुरक्षण समाज की शुद्ध प्राय से वार्पिक उत्पाद का कोई भाग नहीं निकालना , मिया उसके कि जो स्थायी पूंजी के अनुरक्षण के लिए ग्रावश्यक है।' ( गंड २, अध्याय २, पृष्ठ १९२१) पर कहना उगी बात को दूसरे शब्दों में पुनरुक्ति भर है कि प्रचल पूंजी का जो भाग उत्पादन माधनों के उत्पादन में काम नहीं पाता, वह उपभोग वस्तुओं के उत्पादन में, दूसरे गनों में, वार्षिक उत्पाद के उन भाग में चला जाता है, जो समाज की उपभोग निधि बनाने के लिए उद्दिष्ट है। फिर भी इन के तलाल वाद का यह अंश महत्वपूर्ण है : इन मामले में समाज की प्रचल पूंजी व्यक्ति की प्रचल पूंजी से भिन्न होती है। व्यक्ति की प्रनन पुंजी को उसकी शुद्ध प्राय का कोई भी भाग बनने से पूर्णतः अलग रखा जाता है, जो पूरी तरह से उसके लाभ ने ही बनती है। किंतु यद्यपि प्रत्येक व्यक्ति की प्रचल पूंजी गमाज की प्रनल पूंजी का भाग होती है, जिनका वह सदस्य होता है, फिर भी इसके कारण उसे उसी प्रकार समाज को शुद्ध प्राय का भाग बनने में पूर्णतः अलग नहीं रखा जाता। यद्यपि व्यापान की दुकान में जितना माल है, उसे उसके तात्कालिक उपभोग के लिए आरक्षित स्टॉक में किसी भी तरह नहीं गया जा सकता, फिर भी वह दूसरों के उपभोग स्टॉक में रखा जा सकता है, जो अन्य निधियों में प्राप्त प्राय से उसकी पूंजी या अपनी पूंजी के किसी भी तरह घंटे बिना उगो मूल्य का मुनाफे महित नियमित रूप में प्रतिस्थापन कर सकते हैं।" ( वही। ) म प्रकार हमें पता चलता है कि: 1) जिन प्रकार त्याची पंजी ग्रां. उसके पुनन्त्पादन ( वह कार्य की बात भूल जाते हैं) "