पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३२७

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पर मामाजी का पुनम्त्यायन तथा परिचलन अर्थात : मा गति कोमामा भागों में अस्तित्वमान होते हैं - वस्तुतः एकसाथ इस उत्पादन में नहा मनी पारों . लिए ग्राम का, मजदूरों के लिए मजदूरी, पूंजीपतियों के लिए माम मर गिरी गनिमांक पन्ले है। किंतु समाज के लिए वे प्राय का नहीं, पूंजी का निर्माता :, सति समाज का वार्षिक उत्साद अलग-अलग पूंजीपतियों का कुल उत्पाद ही , जो उस समाज में अंग होते हैं। उनकी प्रति ही ऐसी है कि वे साधारणतः उत्पादन मायनों में ही कार्य कर माते हैं और जो भाग आवश्यकता पड़ने पर उपभोग वस्तुओं में कामं कर भी गाते हैं, वे भी नये उत्पादन के कच्चे माल या सहायक सामग्री के में काम प्राने के लिए उहिष्ट होते हैं। किंतु वे इस रूप में - अतः पूंजी के रूप में - अपने उमाकोरेगाव में नहीं, वरन अपने उपभोक्ताओं के हाथ में काम करते हैं, ३) दूनो क्षेत्र के पूंजीपतियों, उपभोग वस्तुत्रों के प्रत्यक्ष उत्पादकों के हाथ में। ये आन माधन इन पंजीपनियों के लिए उपभोग वस्तुओं के उत्पादन में उपभुक्त पूंजी का प्रनिम्नान करते है ( जहां तक कि यह पूंजी श्रम शक्ति में परिवर्तित नहीं होती, और इसलिए काग दुर्गरे क्षेत्र के मजदूरों की कुल मजदूरी नहीं होती ), जव कि यह उपमुक्त पूंजी , जो प्रब टागोग बन्नुमों के साा में उनका उत्पादन करनेवाले पूंजीपति के हाथ में होती है- गामाजिक दृष्टि में- अपनी बारी में उस उपभोग निधि का निर्माण करती है, जिसमें पहले क्षेत्र के मजदूर और पूंजीपति अपनी आय का सिद्धिकरण करते हैं। यदि ऐम स्मिय अपना विश्लेपण यहां तक ले पाते, तो सारा मसला हल करने के लिए थोड़ी नी ही कमर रह जाती। वह लगभग जड़ पर पहुंच गये थे, क्योंकि वह पहले ही कर चुके थे कि समाज के कुल वार्षिक उत्पाद की संरचक माल पूंजियों के एक प्रकार के मूल्यांग ( उत्पादन माधन ) सचमुच उनके उत्पादन में लगे अलग-अलग श्रमिकों और पूंजीपतियों की आय का निर्माण करते हैं, किंतु वे समाज की प्राय के किसी संघटक अंश का निर्माण नहीं करते ; जब कि दूसरे प्रकार का मूल्यांश ( उपभोग वस्तुएं) अपने वैयक्तिक स्वामियों , पंजी निवेश के उन क्षेत्र में लगे पूंजीपतियों के लिए पूंजी मूल्य होते हुए भी सामाजिक प्राय का फेवल एक भाग होता है। किंतु पूर्वोत में इतना तो स्पष्ट है : पहली यात : यद्यपि सामाजिक पूंजी केवल वैयक्तिक पूंजियों के योग के बराबर होती है और इस कारण समाज का वार्षिक माल उत्पाद (अथवा माल पूंजी ) इन वैयक्तिक पूंजियों के कुल पप्य उसाद के बराबर होता है; और यद्यपि इसलिए माल के मूल्य का उसके संघटक अंशों में विश्लेषण, जो प्रत्येक वैयक्तिक माल पूंजी के लिए संगत है, पूरे समाज की माल पूंजी के लिए भी मंगत होना चाहिए -- और वस्तुतः अंततोगत्वा वह संगत सिद्ध होता भी है- फिर भी पुनस्तादन की कुल नामाजिक प्रक्रिया में ये संघटक अंश प्रकट होने का जो रूप धारण करते हैं, यह भिन्न होता है। दूसरी बात : साधारण पुनरुत्पादन के आधार पर भी कंबल मजदूरी (परिवर्ती पूंजी ) और बेगी मूल्य का उत्पादन ही नहीं होता, वरन नये स्थिर पूंजी मूल्य का प्रत्यक्ष उत्पादन भी होता है, यद्यपि कार्य दिवम केवल दो भागों का होता है, एक वह , जिसमें मजदूर परि- पनी पंजी का प्रतिस्थापन करता है , वनुतः अपनी श्रम शक्ति के ऋय के लिए उसके तुल्य का अपादन करता है, और दूसरा यह , जिनमें यह बेगी मूल्य ( मुनाफ़े , किराये , वगैरह ) का उत्पादन करता है। .