विषय के पूर्व प्रस्तुतीकरण ३३१ हम देख ही चुके हैं कि स्वयं ऐडम स्मिथ आगे चलकर अपने ही सिद्धांत का खंडन कर डालते हैं, किंतु अपने अंतर्विरोधों से अभिन हुए विना। किंतु उन अंतर्विरोधों का स्रोत यथार्थतः उनके वैज्ञानिक पूर्वाधारों में ही मिलेगा। श्रम में परिवर्तित पूंजी अपने से अधिक वड़ा मूल्य पैदा करती है। कैसे? ऐडम स्मिथ कहते हैं : श्रमिकों द्वारा उत्पादन प्रक्रिया के दौरान जिन चीज़ों पर वे काम करते हैं , उन्हें ऐसा मूल्य प्रदान करने से, जो उनके अपने क्रय मूल्य के समतुल्य का ही निर्माण नहीं करता , वरन वेशी मूल्य ( लाभ और किराये ) का भी करता है, जो मजदूरों के नहीं, उनके मालिकों के हिस्से में आता है। वे वस इतना ही हासिल करते हैं पीर इतना ही हासिल कर भी सकते हैं। जो वात एक दिन के औद्योगिक श्रम के लिए सही है, वह वर्ष के दौरान सारे पूंजीपति वर्ग द्वारा गतिशील किये श्रम के लिए भी सही है। अतः समाज द्वारा उत्पादित वार्पिक मूल्य की कुल राशि अपने को केवल प+बे में ही , ऐसे समतुल्य में , जिसके द्वारा मजदूर अपनी श्रम शक्ति के क्रय पर व्ययित पूंजी मूल्य को प्रतिस्थापित करते हैं, और उतने अतिरिक्त मूल्य में ही वियोजित कर सकती है, जिसे उन्हें इसके अलावा अपने मालिकों को देना होता है। किंतु माल मूल्य के ये दोनों तत्व साथ ही पुनरुत्पादन में निरत विभिन्न वर्गों की आय के स्रोत भी होते हैं : पहला मजदूरी का , मजदूरों की आय का स्रोत है ; दूसरा वेशी मूल्य का स्रोत है, जिसके एक भाग को औद्योगिक पूंजीपति मुनाफ़े की शक्ल में रख लेता है और दूसरे भाग को किराये की , जो भूस्वामी की आय है, शक्ल में त्याग देता है। इसलिए जब वार्पिक मूल्य उत्पाद में प+वे के अलावा और कोई तत्व नहीं है, तव मूल्य का एक और अंश आयेगा कहां से? हम यहां साधारण पुनरुत्पादन को आधार बना रहे हैं। चूंकि वार्षिक श्रम की सारी मात्रा अपने को श्रम शक्ति पर व्ययित पूंजी मूल्य के पुनरुत्पादन के लिए आवश्यक श्रम में और वेशी मूल्य के सृजन के लिए आवश्यक श्रम में वियोजित कर लेती है, तव श्रम शक्ति पर व्यय न किये गये पूंजी मूल्य के उत्पादन के लिए श्रम कहां से आयेगा? मामला इस प्रकार है: १) ऐडम स्मिथ माल का मूल्य उजरती मजदूर द्वारा अपने श्रम की वस्तु में जोड़ी श्रम की मात्रा से निर्धारित करते हैं। उसे वह · अक्षरशः "सामग्री" कहते हैं, क्योंकि वह हस्तनिर्माण की चर्चा कर रहे हैं, जो स्वयं श्रम के उत्पाद को रूप देता है। लेकिन इससे बात बदल नहीं जाती। मजदूर किसी चीज़ में जो मूल्य जोड़ता है (“जोड़ता है" शब्दावली ऐडम स्मिथ की ही है), वह इससे पूर्णतः स्वतंत्र होता है कि जिस वस्तु में मूल्य जोड़ा जाता है, खुद उसमें इस परिवर्धन से पहले कोई मूल्य था भी या नहीं। अतः मजदूर नया मूल्य माल रूप में पैदा करता है। ऐडम स्मिथ के अनुसार यह अंशतः उसकी मजदूरी का समतुल्य है और इसलिए यह अंश उसकी मजदूरी के मूल्य के परिमाण द्वारा निर्धारित होता है ; उस परिमाण के अनुसार उसे अपनी मजदूरी के वरावर मूल्य का उत्पादन या पुनरुत्पादन करने के लिए श्रम जोड़ना पड़ता है। दूसरी ओर मजदूर इस प्रकार निर्धारित सीमा के अलावा अधिक श्रम जोड़ता है और इससे उसे काम में लगानेवाले पूंजीपति के लिए वेशी मूल्य का सृजन होता है। यह वेशी मूल्य पूरा का पूरा पूंजीपति के पास रहता है या उसका कुछ हिस्सा वह और लोगों को दे देता है, इससे उजरती मज़दूर द्वारा जोड़े वेशी मूल्य के गुणात्मक (अर्थात किसी भी तरह वेशी मूल्य के) अथवा मात्रात्मक (परिमाण के ) निर्धारण में जरा भी फ़र्क नहीं पड़ता। यह उत्पाद के मूल्य के किसी भी और भाग जैसा ही मूल्य है, किंतु वह इस बात में भिन्न है कि मजदूर को इसका कुछ भी समतुल्य नहीं मिला है, न आगे 1 .