पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३३८

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विषय के पूर्व प्रस्तुतीकरण ३३७ " . पुनरुत्पादन के लिए आवश्यक श्रम की मात्रा द्वारा निर्धारित होता है; इस श्रम की मात्रा मजदूर के लिए आवश्यक निर्वाह साधनों के मूल्य द्वारा निर्धारित होती है, इसलिए वह उसके जीवन की परिस्थितियों के ही पुनरुत्पादन के लिए आवश्यक श्रम के वरावर होती है - यह इस माल (श्रम शक्ति ) की एक विशिष्टता है, लेकिन यह विशिष्टता इस तथ्य से कुछ अधिक नहीं कि कमकर मवेशियों का मूल्य उनके भरण-पोषण के लिए आवश्यक निर्वाह साधनों के मूल्य द्वारा, अर्थात मानव श्रम की उस मात्रा द्वारा निर्धारित होता है, जो इन निर्वाह साधनों के उत्पादन के लिए दरकार होती है। किंतु यह “प्राय का संवर्ग ही ऐडम स्मिथ के यहां सारे हानिकर उलझाव का कारण है। प्राय के विभिन्न प्रकार उनके यहां प्रति वर्ष उत्पादित नवसृजित माल मूल्य के "संघटक अंश वन जाते हैं, जव कि इसके विपरीत यह माल मूल्य पूंजीपति के लिए अपने को जिन दो भागों में वियोजित करता है, वे आय के स्रोत बन जाते हैं-श्रम की खरीद के समय द्रव्य रूप में पेशगी दी गई उसकी परिवर्ती पूंजी का समतुल्य और मूल्य का दूसरा अंश, वेशी मूल्य , जो इसी प्रकार उसी का है, लेकिन उसके लिए उसे कुछ भी ख़र्च करना नहीं पड़ा। परिवर्ती पूंजी का समतुल्य श्रम शक्ति के लिए पुनः पेशगी दिया जाता है और उस सीमा तक मजदूरी के रूप में मजदूर की आय वनता है। चूंकि दूसरा अंश-वेशी मूल्य-पूंजीपति के लिए किसी भी पेशगी पूंजी के प्रतिस्थापन के काम नहीं आता, इसलिए वह उसके द्वारा उपभोग वस्तुओं पर ( आवश्यक वस्तुओं और विलास वस्तुओं, दोनों पर ) ख़र्च किया जा सकता है अथवा किसी प्रकार का पूंजी मूल्य बनने के बदले आय की तरह खपाया जा सकता है। स्वयं माल मूल्य इस प्राय की प्राथमिक शर्त है, और उसके संघटक अंश पूंजीपति के दृष्टिकोण से केवल इस सीमा तक भिन्न होते हैं कि वे उसके द्वारा पेशगी दी परिवर्ती-पूंजी मूल्य के समतुल्य हैं अथवा उससे अधिक हैं। दोनों में माल के उत्पादन के दौरान व्ययित श्रम द्वारा गतिशील की गई श्रम शक्ति के अलावा और कुछ समाहित नहीं होता। उनमें परिव्यय , श्रम का परिव्यय समाहित है, प्राय अथवा आमदनी नहीं। उस quid pro quo के अनुसार, जिससे माल मूल्य के आय का स्रोत बनने के बजाय प्राय माल मूल्य का स्रोत बन जाती है, माल का मूल्य अव विभिन्न प्रकार की आमदनी से 'रचित" प्रतीत होता है; इन आयों का एक दूसरे से स्वतंत्र निर्धारण होता है, और माल का कुल मूल्य इन आयों के मूल्यों के योग से निर्धारित होता है। किंतु अव प्रश्न यह है कि पायों में से, जिन्हें माल मूल्य को वनानेवाली माना गया है, प्रत्येक का मूल्य कैसे निर्धारित किया जाये। मजदूरी के मामले में ऐसा किया जा सकता है, क्योंकि मजदूरी अपने माल, श्रम शक्ति का मूल्य प्रकट करती है, और यह मूल्य (अन्य सभी मालों के मूल्य की ही तरह ) उसके पुनरुत्पादन के लिए दरकार श्रम द्वारा निर्धार्य होता है। किंतु वेशी मूल्य अथवा , जैसा कि ऐडम स्मिथ कहेंगे, लाभ और किराया, उसके ये दो रूप कैसे निर्धारित होंगे? यहां ऐडम स्मिथ केवल खोखली शब्दावली पेश कर पाते हैं। कभी वह मजदूरी और वेशी मूल्य (अथवा मजदूरी और लाभ) को मालों के मूल्य या कीमत के संघटक अंशों के रूप में प्रस्तुत करते हैं, तो कभी- और लगभग उसी सांस में - उन अंशों के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिनमें मालों की कीमत "स्वयं को वियोजित कर लेती है"; किंतु इसके उलटे इसका यह मतलव है कि माल मूल्य पहले से दी हुई चीज़ है और इस दिये हुए मूल्य के विभिन्न भाग विभिन्न प्रकार की प्राय के रूप में उत्पादक प्रक्रिया लगे हुए विभिन्न व्यक्तियों के हिस्से में आते हैं। यह 11 . - 22-1180