पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३४०

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विषय के पूर्व प्रस्तुतीकरण पूंजीपति के दृष्टिकोण से विचार करने पर अपने को जिस तरह से पेश करती है, सामाजिक पूंजी की गति में, अर्थात वैयक्तिक पूंजियों की समग्रता की गति में वह अपने को दूसरे ढंग से पेश करती है। वैयक्तिक पूंजीपति के लिए माल का मूल्य स्वयं को १) एक स्थिर तत्व में (या, जैसा कि ऐडम स्मिथ कहते हैं- चौथे तत्व में ) और २) मजदूरी और वेशी मूल्य के योग में अथवा मजदूरी, लाभ और किराये में वियोजित करता है। किंतु समाज के दृष्टिकोण से ऐडम स्मिथ का चौथा तत्व , स्थिर पूंजी मूल्य , गायव हो जाता है 1

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५) उपसंहार यह असंगत सूत्र कि तीन तरह की प्रायें - मजदूरी, लाभ और किराया - मालों के मूल्य के तीन "संघटक अंश" हैं, ऐडम स्मिथ के यहां इस अधिक तर्कसंगत प्रतीत होनेवाले विचार से उत्पन्न होता है कि मालों का मूल्य इन तीन संघटक अंशों में "स्वयं को वियोजित कर लेता है"। यह भी उसी प्रकार ग़लत है, भले ही यह मान लिया जाये कि मालों का मूल्य केवल उपभुक्त श्रम शक्ति के समतुल्य और उसके द्वारा सृजित वेशी मूल्य में ही बांटा जा सकता है। किंतु यहां भी भ्रांति का आधार अधिक गहरा, अधिक वास्तविक है। पूंजीवादी उत्पादन इस तथ्य पर आधारित है कि उत्पादक मजदूर ख दं अपनी श्रम शक्ति पूंजीपति को अपने माल के रूप में बेचता है, जिसके हाथ में वह तव उसकी उत्पादक पूंजी के एक तत्व के रूप में ही कार्य करती है। यह लेन-देन , जो परिचलन से- श्रम शक्ति के क्रय-विक्रय से - संबंधित हैं, उत्पादन प्रक्रिया का समारंभ ही नहीं करता, वरनं अप्रत्यक्ष रूप में उसका विशिष्ट स्वरूप भी निर्धारित करता है। उपयोग मूल्य का और माल तक का उत्पादन ( क्योंकि यह स्वतंत्र उत्पादक मजदूरों द्वारा भी किया जा सकता है ) यहां पूंजीपति के लिए निरपेक्षं और सापेक्ष बेशी मूल्य पैदा करने का साधन मात्र है। इस कारण हम उत्पादन प्रक्रिया के विश्लेषण में देख चुके हैं कि निरपेक्ष और सापेक्ष वेशी मूल्य का उत्पादन १) दैनिक श्रम प्रक्रिया की अवधि को और २) पूंजीवादी उत्पादन प्रक्रिया के समस्त सामाजिक और प्राविधिक संरूप को निर्धारित करता है। इस प्रक्रिया के भीतर मूल्य (स्थिर पूंजी मूल्य ) के परिरक्षणं मान , पेशगी मूल्य (श्रम शक्ति के समतुल्य ) के वास्तविक पुनरुत्पादन और बेशी मूल्य के , अर्थात उस मूल्य के , जिसके लिए पूंजीपति ने न तो पहले कोई समतुल्य पेशगी दिया था, न post festum करेगा, उत्पादन का भेद चरितार्थ होता है। यद्यपि वेशी मूल्य - पूंजीपति द्वारा पेशगी दिये मूल्य के समतुल्य से अधिक मूल्य - के हस्तगतकरण का समारंभ श्रम शक्ति के क्रय-विक्रय से शुरू हो जाता है, फिर भी वह ऐसी क्रिया है, जो स्वयं उत्पादन प्रक्रिया के अंतर्गत संपन्न होती है और उसका अनिवार्य अंग होती है। प्रारंभिक क्रिया, जो एक परिचलन क्रिया-श्रम शक्ति की खरीद-फरोख्त-है; स्वयं उत्पादन तत्वों के सामाजिक उत्पाद के वितरण के पहले हुए और उसकी पूर्वापेक्षा करनेवाले वितरण पर, अर्थात श्रमिक के माल के रूप में श्रम शक्ति के गैरश्रमिकों की संपत्ति के रूप में उत्पादन साधनों से पृथक्करण पर आधारित है। किंतु वेशी मूल्य का यह हस्तगतकरण अथवा मूल्य के उत्पादन का पेशगी मल्य के पुनरुत्पादन, और ऐसे नये मूल्य ( वेशी मूल्य ) के उत्पादन में, जो किसी समतुल्य ,