पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३४७

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३४६ कुल सामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन . अंश का क्या होता है। इस प्रसंग में समग्र पुनरुत्पादन प्रक्रिया में परिचलन से जनित उपभोग प्रक्रिया बिल्कुल उसी तरह शामिल होती है, कि जैसे स्वयं पूंजी की पुनरुत्पादन प्रक्रिया। अपने प्रस्तुत प्रयोजन के लिए हमें इस पुनरुत्पादन प्रक्रिया का अध्ययन मूल्य के प्रतिस्थापन के दृष्टिकोण से तथा मा' के पृथक संघटक अंशों की सारवस्तु के दृष्टिकोण से भी करना होगा। अब हम , जैसा कि वैयक्तिक पूंजी के उत्पाद के मूल्य के विश्लेषण में हमने किया था, इस कल्पना से संतोप नहीं कर पायेंगे कि -वैयक्तिक पूंजीपति माल की विक्री के ज़रिये अपनी पूंजी के संघटक अंशों को पहले द्रव्य में परिवर्तित कर सकता है और फिर जिंस बाज़ार में उत्पादन तत्वों के नये ऋय द्वारा उन्हें उत्पादक पूंजी में पुनःपरिवर्तित कर सकता है। चूंकि ये उत्पादन तत्व स्वरूप से ही सामग्री हैं इसलिए वे वैसे ही सामाजिक पूंजी के संघटक हैं, जैसे वैयक्तिक तैयार उत्पाद, जिससे उनका विनिमय होता है और जिसका वे प्रतिस्थापन करते हैं। इसके विपरीत सामाजिक पण्य उत्पाद के उस अंश की गति , जिसका उपभोग मजदूर अपनी मजदूरी के व्यय द्वारा. और पूंजीपति अपने वेशी मूल्य के व्यय द्वारा करता है, कुल उत्पाद की गति का अभिन्न अंग ही नहीं होती, वरन वैयक्तिक पूंजियों की गतियों में घुल-मिल भी जाती है और इसलिए इस प्रक्रिया की व्याख्या उसे कल्पित कर लेने मात्र से नहीं हो सकती। हमारे सामने प्रत्यक्षतः जो समस्या है, वह यह है : उत्पादन में उपभुक्त पूंजी का वार्षिक उत्पाद में से मूल्यगत प्रतिस्थापन कैसे होता है और इस प्रस्थिापन की गति पूंजीपतियों द्वारा वेशी मूल्य के और श्रमिकों द्वारा मजदूरी के उपभोग से कैसे गुंथ जाती है ? इसलिए सर्वप्रथम यह साधारण पैमाने पर पुनरुत्पादन का मामला है। आगे यह भी मान लिया जाता है कि उत्पादों का विनिमय उनके मूल्य के अनुसार होता है, और यह भी कि उत्पादक पूंजी के संघटक अंशों के मूल्यों में कोई आमूल उलट-फेर नहीं होता। लेकिन यह तथ्य सामाजिक पूंजी की गतियों पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकता कि कीमतें मूल्यों से विचलन करती हैं। कुल मिलाकर उत्पादों की उतनी ही मात्राओं का उतना ही विनिमय होता है, यद्यपि अलग-अलग पूंजीपति जिन मूल्य संबंधों में अंतर्ग्रस्त हैं, वे अव उनकी अपनी-अपनी पेशगी के और उनमें से प्रत्येक द्वारा अलग-अलग उत्पादित वेशी मूल्य की मात्राओं के यथानुपात नहीं रह गये हैं। जहां तक मूल्य में उलट- फेरों की बात है , अगर वे सर्वत्र और समान रूप में वितरित हों; तो वे कुल वार्पिक उत्पाद के मूल्य घटकों के पारस्परिक संबंधों में कोई अंतर नहीं लाते। लेकिन जहां तक वे आंशिक और असमान रूप में वितरित होते हैं, तो वे ऐसी उथल-पुथल हैं, जिन्हें पहले तो अपरिवर्तित मूल्य संबंधों से विचलन मानकर ही समझा जा सकता है, और दूसरे अगर उस नियम का प्रमाण हो; जिसके अनुसार वार्षिक उत्पाद के मूल्य का एक अंश स्थिर पूंजी को और दूसरा परिवर्ती पूंजी को प्रतिस्थापित करता है, तव स्थिर अथवा परिवर्ती पूंजी के मूल्य में उलट-फेर होने से इस नियम में कोई अंतर नहीं आयेगा। उससे केवल उन मूल्यांशों के सापेक्ष परिमाणों में अंतर आयेगा, जो इस या उस रूप में कार्य करते हैं, क्योंकि मूल मूल्यों की जगह दूसरे मूल्य ले चुके होंगे। जब तक हम मूल्य के उत्पादन को और पूंजी के उत्पाद मूल्य को अलग-अलग लेते थे, तब तक उत्पादित वस्तुओं का दैहिक रूप विश्लेषण के लिए पूर्णतः निरर्थक था, फिर चाहे वे, मशीनें हों या अनाज, या आइने। यह हमेशा केवल मिसाल देने की बात थी और उत्पादन की कोई भी शाखा समान रूप से यह काम कर सकती थी। हम जिस चीज़ का विवेचन कर रहे थे, वह स्वयं उत्पादन की प्रत्यक्ष प्रक्रिया थी, जो अपने आपको प्रत्येक स्थल 3 . + मसलन,