पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३४८

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साधारण पुनरुत्पादन ३४७ 43 पर किसी वैयक्तिक पूंजी की प्रक्रिया के रूप में प्रकट करती है। जहां तक पूंजी के पुनरुत्पादन का संबंध था, यह मान लेना काफ़ी था कि माल के रूप में उत्पाद का जो अंश पूंजी मूल्य का प्रतीक होता है, उसे परिचलन क्षेत्र में अपने को अपने उत्पादन तत्वों में और इस प्रकार उत्पादक पूंजी के रूप में पुनःपरिवर्तित कर लेने का अवसर मिल जाता है : जैसे यह मान लेना काफ़ी था कि मजदूर और पूंजीपति दोनों को. बाज़ार में वे वस्तुएं मिल जाती हैं, जिन पर वे अपनी मजदूरी और वेशी मूल्य का व्यय करते हैं। प्रस्तुतीकरण का यह मात्र औपचारिक ढंग सामाजिक पूंजी तथा उसके उत्पाद के मूल्य के अध्ययन में अव और काम नहीं दे सकेगा। उत्पाद के मूल्य के एक भाग का पूंजी में पुनःरूपांतरण और दूसरे भाग का पूंजीपति वर्ग तथा श्रमिक वर्ग के निजी उपभोग में आना स्वयं उत्पाद के मूल्य के भीतर एक ऐसी. गति बन जाते हैं, जिसमें कुल पूंजी का परिणाम अपने को व्यंजित करता है ;. और यह गति मूल्य का प्रतिस्थापन मान नहीं है, सामग्री का प्रतिस्थापन भी है, इसलिए वह कुल सामाजिक उत्पाद के मूल्य घटकों के सापेक्ष परिमाणों से उतना ही संवद्ध है, जितना उनके उपयोग मूल्य से, उनके भौतिक रूप से। साधारण पुनरुत्पादन , उसी पैमाने पर पुनरुत्पादन , कल्पना मात्र प्रतीत होता है, क्योंकि एक अोर समस्त संचय या विस्तारित पैमाने पर पुनरुत्पादन का न होना पूंजीवादी परिस्थि- तियों में एक विचित्र परिकल्पना है, और दूसरी ओर उत्पादन की परिस्थितियां अलग-अलग वर्षों में विल्कुल एक जैसी ही नहीं रहती ( और यही कल्पित है )। माना यह गया है कि दिये हुए परिमाण की सामाजिक पूंजी माल मूल्य की इस साल भी पिछले साल जितनी मात्रा पैदा करती है और आवश्यकताओं की उतनी ही माना की पूर्ति करती है, यद्यपि मालों के रूप पुनरुत्पादन प्रक्रिया के दौरान बदल सकते हैं। किंतु जहां तक संचय होता ही है, साधारण पुनरुत्पादन सदैव उसका अंग रहता है और इसलिए उसका अलग अध्ययन किया जा सकता , वह संचय का एक वास्तविक उपादान होता । वार्षिक उत्पाद का मूल्य घट सकता है, यद्यपि उपयोग मूल्यों की मात्रा उतनी ही बनी रह सकती है ; अथवा मूल्य वही वना रह सकता है, यद्यपि उपयोग मूल्यों की मात्रा घट सकती है ; अथवा मूल्य की और पुनरुत्पादित उपयोग मूल्यों की मात्रा एकसाथ घट सकती है। यह सव कुल मिलाकर पहले से अधिक अनुकूल अथवा अधिक कठिन परिस्थितियों में होनेवाले पुनरुत्पादन जैसा होता है, जिसका परिणाम अपूर्ण- दोषपूर्ण पुनरुत्पादन - हो सकता है। इस सब · का संबंध पुनरुत्पादन के विभिन्न तत्वों के परिमाणगत पक्ष से ही हो सकता है, समूची प्रक्रिया में पुनरुत्पादक पूंजी की अथवा पुनरुत्पादित आय की हैसियत से उनकी भूमिका से नहीं। २. सामाजिक उत्पादन के दो क्षेत्र समाज के कुल उत्पाद और इसलिए कुल पैदावार को दो मुख्य क्षेत्रों में बांटा जा सकता है: 1. उत्पादन साधन ऐसे रूप में पण्य वस्तुएं, जिसमें वे उत्पादक उपभोग में पहुंचेंगी, अथवा कम से कम पहुंच सकती हैं। 43 3 पाण्डुलिपि ८ से। -फे० एं० मुख्यतः पाण्डुलिपि २ से; सारणियां पाण्डुलिपि ८ से.। -फे० एं०