पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३५९

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कुल सामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन वे यह ४०० II ख प्राप्त करेंगे ; फलतः जो लोग II क की स्थिर पूंजी प्रतिस्थापित करेंगे, प्राप्त करेंगे: ६००स ( II क ) से ४८० (३/५) और ४०°स ( II ख ) से ३२० (२/५), जो ८०० के बराबर है। जो लोग II ख की स्थिर पूंजी का प्रतिस्थापन करेंगे, वे यह प्राप्त करेंगे: समा- ६००स ( II क ) से १२० (३/५) और ४००स ( II ख ) से ८० (२/५), जो २०० के बराबर है। कुल योग: १,०००। यहां जो चीज़ स्वेच्छाधीन है, वह I और II दोनों की स्थिर पूंजी से परिवर्ती पूंजी का अनुपात है और वैसे ही I II तथा उनके उपविभागों के इस अनुपात की एकरूपता है। जहां तक इस एकरूपता का संबंध है, उसे यहां केवल सरलता के लिए माना गया है और हम भिन्न अनुपात मान लें, तो इससे समस्या और उसके समाधान की परिस्थितियां किसी भी प्रकार बदल नहीं जायेंगी। फिर भी साधारण पुनरुत्पादन की कल्पना के अनुसार इस सब का अनिवार्य परिणाम यह है: १) एक वर्ष के श्रम द्वारा उत्पादन साधनों के दैहिक रूप में निर्मित नया मूल्य (प+वे में विभाज्य ) स्थिर पूंजी स के वार्षिक श्रम के दूसरे भाग द्वारा सृजित उत्पाद के मूल्य में विष्ट और उपभोग वस्तुओं के रूप में पुनरुत्पादित मूल्य के बरावर होता है। यदि वह स से कम हो, तो II के लिए अपनी स्थिर पूंजी का पूर्ण प्रतिस्थापन करना असंभव हो जायेगा; यदि वह ज्यादा हो, तो कुछ अंश वेशी वच रहेगा , जिसका उपयोग न होगा। दोनों ही स्थितियों में साधारण पुनरुत्पादन की कल्पना खंडित होगी। २) उपभोग वस्तुओं के रूप में पुनरुत्पादित होनेवाले वार्षिक उत्पाद के माम में द्रव्य रूप में पेशगी परिवर्ती पूंजी प का उसके प्राप्तिकर्ताओं द्वारा, चूंकि वे विलास वस्तुएं उत्पन्न करनेवाले मजदूर हैं, जीवनावश्यक वस्तुओं के उस अंश में ही सिद्धिकरण किया जा सकता है, जिसमें उनके पूंजीपति उत्पादकों के लिए उनका वेशी मूल्य prima facie निहित होता है; इसी लिए विलास वस्तुओं के उत्पादन में खर्च किया जानेवाला प मूल्य में जीवनावश्यक वस्तुओं के रूप में उत्पादित वे के तदनुरूप अंश के वरावर होता है और इसलिए वह इस पूरे वे से , अर्थात ( II क )वे से कम होगा, और विलास वस्तुओं के पूंजीपति उत्पादकों द्वारा पेशगी दो परिवर्ती पूंजी द्रव्य रूप में उनके पास केवल वे के इस अंश में उस प के सिद्धिकरण के माध्यम से लौटती है । यह परिघटना JI स में !(प+वे ) के सिद्धिकरण के बहुत सदृश है, सिवा इसके कि दूसरे प्रसंग में ( IIख) अपना सिद्धिकरण उसी मूल्य के ( II क )वे एक अंश में करता है। ये अनुपात कुल वार्पिक उत्पाद के प्रत्येक वितरण में गुणात्मक दृष्टि से निर्धारक बने रहते हैं, क्योंकि वह परिचलन द्वारा जनित वार्षिक पुनरुत्पादन की प्रक्रिया में वस्तुतः दाखिल होता है। (प+वे) का सिद्धिकरण केवल IIस में हो सकता है, जैसे IIस का क्रिया में उत्पादक पूंजी के घटक के रूप में नवीकरण इस सिद्धिकरण के द्वारा ही हो सकता है। इसी प्रकार ( II ख ) का सिद्धिकरण केवल (II क ) के अंश में ही हो सकता है और ( II ख )प इस प्रकार केवल द्रव्य पूंजी के रूप में पुनःपरिवर्तित हो सकता . के .