पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

साधारण पुनरुत्पादन ३५६ वे प है। कहना न होगा कि यह सब वहीं तक लागू होता है कि जहां तक यह सब वास्तव में स्वयं पुनरुत्पादन प्रक्रिया का परिणाम होता है, अर्थात जहां तक , उदाहरणतः, II ख के पूंजीपति प के लिए दूसरों से उधार लेकर द्रव्य पूंजी हासिल नहीं करते। तथापि परिमाणात्मक दृष्टि से वार्पिक उत्पाद के विभिन्न अंशों के उपर्युक्त अनुपातों में विनिमय तभी तक हो सकते हैं कि जब तक उत्पादन का पैमाना और उसके मूल्य संबंध स्थिर बने रहते हैं और जब तक ये सुनिश्चित संबंध विदेशी व्यापार से बदलते नहीं। अब यदि हम ऐडम स्मिथ के ढंग पर कहें कि I(प+वे ) स्वयं को II में वियोजित कर लेते हैं, और IIस स्वयं को I(प+वे ) में वियोजित कर लेता है अथवा जैसा कि वह और भी अवसर तथा और भी बेतुके ढंग से कहा करते थे, I(प+बे ) IIस की कीमत (अथवा उनकी शब्दावली में " विनिमय मूल्य" ) के संघटक अंश होते हैं और II I(प+बे ) के मूल्य का समग्र संघटक अंश होता है, तो इसी प्रकार यह भी कहा जा सकता है और कहना भी चाहिए कि ( II ख )प स्वयं को ( II क )बे में , अथवा ( II क) ( II ख ) में वियोजित कर लेता है, अथवा ( II ख ) 4 II क के वेशी मूल्य का संघटक अंश होता है, और vice versa, वेशी मूल्य स्वयं को इस प्रकार मजदूरी में अथवा परिवर्ती पूंजी में वियोजित करता है, और परिवर्ती पूंजी वेशी मूल्य का “संघटक अंश" होती है। यह वेतुकापन सचमुच ही ऐडम स्मिथ के यहां है, क्योंकि उनके अनुसार मजदूरी जीवनावश्यक वस्तुओं के मूल्य द्वारा निर्धारित होती है, और ये माल मूल्य अपनी वारी में उनमें निहित मजदूरी के मूल्य ( परिवतीं पूंजी) और वेशी मूल्य द्वारा निर्धारित होते हैं। पूंजीवाद के आधार पर एक कार्य दिवस का मूल्य उत्पाद जिन भिन्नांशों में - अर्थात प+वे में - विभाजित होता है, उनमें वह ऐसा मशगूल हो जाते हैं कि यह विल्कुल भूल जाते हैं कि साधारण माल विनिमय के लिए यह निरर्थक है कि विभिन्न दैहिक रूपों में विद्यमान समतुल्यों में समाहित श्रम सवेतन है या निवेतन , क्योंकि दोनों ही मामलों में उनके उत्पादन में श्रम की समान मात्रा लगती है; और यह भी निरर्थक है कि क का माल उत्पादन साधन है और ख का उपभोग वस्तु है ; और यह है कि अपनी विक्री के बाद किसी माल को पूंजी के संघटक अंश का काम करना पड़ता है, जब कि दूसरा उपभोग निधि में पहुंच जाता है, और secundum ऐडम (ऐडम के अनुसार ) प्राय के रूप में उपभुक्त होता है। वैयक्तिक ग्राहक अपने माल का जो भी उपयोग करता है, वह माल विनिमय के दायरे में या परिचलन की परिधि में नहीं आता और मालों के मूल्य को प्रभावित नहीं करता। यह वात इस तथ्य से भी किसी तरह नहीं बदलती कि कुल वार्पिक सामाजिक उत्पाद के परिचलन के विश्लेपण में उसके निश्चित उद्दिष्ट उपयोग को, उसके विविध संघटक अंशों के उपभोग की बात को ध्यान में रखना होगा। ऊपर प्रस्थापित किये ( II ख)प के उसी मूल्य के ( II क ) बे के एक अंश से विनिमय में तथा ( II क ) और ( II ख )वे के वाद वाले विनिमयों में यह कतई नहीं माना गया है कि ll क और II ख के अलग-अलग पूंजीपति अथवा उनके अपने-अपने साकल्य अपने वेशी मूल्य का आवश्यक उपभोग वस्तुओं और विलास वस्तुओं में समान अनुपात में विभाजन करते हैं। कोई इस उपभोग पर ज्यादा ख़र्च कर सकता है, तो कोई और दूसरे