पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३६२

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साधारण पुनरुत्पादन 1 पद्धतियों के अलावा और किसी पद्धति से परिचित नहीं है, सिवा sub forma pauperis या ठगों की पद्धति के। माल अविक्रेय है, इसका यही अर्थ है कि उसके लिए कारगर ग्राहक , अर्थात उपभोक्ता नहीं मिले हैं (क्योंकि अंततोगत्वा माल उत्पादक अथवा व्यक्तिगत उपभोग के लिए ही ख़रीदे जाते हैं )। किंतु यदि कोई यह कहकर कि मजदूर वर्ग अपने ही उत्पाद का बहुत ही कम हिस्सा पाता है और इसलिए जैसे ही उसे उसका अधिक भाग मिलने लगेगा और इसके परिणामस्वरूप उसकी मजदूरी बढ़ जायेगी, वैसे ही यह दोप दूर हो जायेगा , इस पुनरा- वृत्ति को अधिक गहन औचित्य की सादृश्यता प्रदान करना चाहे , तो यही कहा जा सकता है कि संकटों की तैयारी सदा ठीक उन्हीं दिनों में होती है, जब मजदूरी में आम तौर से इज़ाफ़ा होता है और मजदूर वर्ग वास्तव में वार्षिक उत्पाद के उस भाग का ज्यादा हिस्सा णता है, जो उपभोग के लिए उद्दिष्ट होता है। गंभीर और "सरल" (! ) सहज बोध के इन पमर्थकों के दृष्टिकोण से तो ऐसे दिनों को संकट दूर करना चाहिए। तो पता चलता है कि पूंजीवादी उत्पादन में भली और बुरी नीयत से स्वतंत्र ऐसी परिस्थितियां भी होती हैं, जिनमें मजदूर वर्ग उस सापेक्ष समृद्धि का क्षणिक ही आनंद ले पाता है, और वह भी हमेशा आनेवाले संकट के पूर्वसूचक के रूप में। 47 कुछ पहले हमने देखा था कि उपभोक्ता आवश्यकताओं के उत्पादन और विलास वस्तुओं के उत्पादन के बीच का अनुपात II (प+वे ) के II क और II ख में और इस प्रकार II के ( II क )स और ( II ख ) स में विभाजन को आवश्यक बना देता है। अतः यह विभाजन उत्पादन के स्वरूप तथा गुणात्मक संबंधों पर मूलगामी प्रभाव डालता है और वह उसकी सामान्य संरचना का महत्वपूर्ण कारक है। साधारण पुनरुत्पादन का तात्विक लक्ष्य उपभोग है , यद्यपि बेशी मूल्य को हथियाना अलग- . अलग पूंजीपतियों का प्रेरक हेतु प्रतीत होता है; किंतु वेशी मूल्य का सापेक्ष परिमाण चाहे जो हो, वह तो आख़िर यहां पूंजीपति के वैयक्तिक उपभोग का साधक ही माना जाता है। चूंकि साधारण पुनरुत्पादन विस्तारित पैमाने पर समस्त वार्षिक पुनरुत्पादन का अंग, और वह भी सबसे महत्वपूर्ण अंग है, इसलिए यह प्रेरक स्वयं आत्मसंपन्नीकरण प्रेरक के सहचर और उसके व्यतिरेक के रूप में बना रहता है। दरअसल मामला ज्यादा पेचीदा है, क्योंकि लूट - पूंजीपति के वेशी मूल्य -में साझीदार उससे स्वतंत्र उपभोक्ताओं के रूप में सामने आते हैं। ५. द्रव्य परिचलन द्वारा विनिमय का साधन अभी तक हमने परिचलन का जितना विश्लेपण किया है, वह उत्पादकों के विभिन्न वर्गों के बीच निम्नलिखित सारणी के अनुसार चलता रहा है : १) वर्ग I और वर्ग II के बीच : I. ४,०००+१,०००+१,००°वे २,००० .+५००+ ५०० 11. .... " संकटों के रॉदबेर्टसीय सिद्धांत के संभाव्य माननेवालों के लिए ad notam [ध्यानव्य]- म० ए०