पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३६५

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३६४ कुल सामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तया परिचलन . - की अदायगी द्रव्य में करता है। इस तरह वह श्रम शक्ति का समावेश अपनी पूंजी में कर लेता है और अपने उजरती मजदूरों के प्रसंग में औद्योगिक पूंजीपति की भूमिका ग्रहण कर लेता है, किंतु ऐसा वह परिचलन की इस क्रिया के द्वारा ही करता है, जो उसके लिए द्रव्य पूंजी का उत्पादक पूंजी में रूपांतरण मात्र है। इससे मजदूर, जो पहले विक्रेता, अपनी ही श्रम शक्ति का विक्रेता या, अब पूंजीपति के प्रसंग में ग्राहक की, पैसेवाले की तरह सामने आता है और पूंजीपति मालों के विक्रेता का काम करता है। इस तरह पूंजीपति मजदूरी में निवेशित धन को वापस पा जाता है। चूंकि इन मालों की विक्री में धोखा, आदि सन्निहित नहीं है, बल्कि तुल्य मालों और द्रव्य में विनिमय है, इसलिए यह ऐसी प्रक्रिया नहीं है, जिससे पूंजी- पति धन बटोर ले। वह मजदूर की दो बार- पहले द्रव्य में, फिर मालों में - अदायगी नहीं करता। जैसे ही मजदूर उसके मालों से द्रव्य का विनिमय करता है, उसका द्रव्य उसके पास लौट प्राता है। फिर भी परिवर्ती पूंजी में परिवर्तित द्रव्य पूंजी, अर्थात मजदूरी के लिए पेशगी दिया द्रव्य , स्वयं द्रव्य परिचलन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है, क्योंकि मजदूर को तो नित कमाकर नित जीना होता है और इसलिए वह प्रौद्योगिक पूंजीपति को ज्यादा समय के लिए उधार दे नहीं सकता। इस कारण परिवर्ती पूंजी को द्रव्य रूप में समाज के असंख्य भिन्न-भिन्न स्थलों पर एकसाथ कुछ लघु अंतरालों पर, जैसे कि सप्ताह , आदि - ऐसी कालावधियां, जो अपनी पुनरावृत्ति जरा जल्दी ही करती हैं (और ये अवधियां जितना ही छोटी होंगी, उतना ही इस माध्यम से एकवारगी परिचलन में डाली जानेवाली कुल द्रव्य राशि भी अपेक्षाकृत कम होगी)- उद्योग की विभिन्न शाखाओं में पूंजियों की भिन्न-भिन्न आवर्त अवधियां जो भी हों, पेशगी देना होता है। पूंजीवादी उत्पादनवाले प्रत्येक देश में इस तरह पेशगी दी हुई पूंजी कुल परिचलन का अपेक्षाकृत निर्णायक भाग होती है, इसलिए और भी कि अपने प्रस्थान बिंदु पर अपने पश्चप्रवाह के पहले वही द्रव्य अत्यन्त भिन्न-भिन्न रास्तों से गुजरता है और अन्य असंख्य कार्यों के लिए परिचलन माध्यम का कार्य करता है। - आइये, अब I (प+वे) तथा IIस के बीच परिचलन पर एक अन्य दृष्टिकोण से विचार करें। I के पूंजीपति मजदूरी की अदायगी में १,००० पाउंड पेशगी लगाते हैं। इस धन से मजदूर II के पूंजीपतियों से १,००० पाउंड के निर्वाह साधन खरीदते हैं। अपनी वारी में ये उसी द्रव्य से I के पूंजीपतियों से उत्पादन साधन खरीदते हैं। इस तरह I के पूंजीपति अपनी परिवर्ती पूंजी द्रव्य रूप में वापस पा लेते हैं, जब कि II के पूंजीपति अपनी आधी स्थिर पूंजी को माल पूंजी के रूप से उत्पादक पूंजी के रूप में पुनःपरिवर्तित कर लेते हैं। II के पूंजीपति 1 से उत्पादन साधन प्राप्त करने के लिए ५०० पाउंड और द्रव्य रूप में पेशगी देते हैं। I के पूंजीपति यह धन II से प्राप्त उपभोग वस्तुओं पर खर्च करते हैं। इस तरह ये ५०० पाउंड II के पूंजीपतियों के पास लौट आते हैं। वे अपनी स्थिर पूंजी के माल में परिवर्तित आखिरी चौथाई भाग को उसके उत्पादक दैहिक रूप में पुनःल्पांतरित करने के लिए फिर पेजगी दे देते हैं। यह धन I के पास लौट पाता है और वह फिर उसी राशि की उपभोग वस्तुएं II से निकालता है। इस तरह ५०० पाउंड II के पास लौट आते हैं। अव II के