पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कुल सामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन मजदूर वर्ग, जो केवल अपनी श्रम शक्ति लगाता है और पूंजीपति वर्ग, जिसके पास उत्पादन के सामाजिक साधनों और द्रव्य का इजारा है। विरोधाभास तो तब होगा, जब शुरू मजदूर वर्ग अपने ही साधनों में से वह द्रव्य पेशगी दे, जो मालों में निहित वेशी मूल्य के सिद्धिकरण के लिए आवश्यक है। किंतु वैयक्तिक पूंजीपति ग्राहक का काम करके हो, उपभोग वस्तुओं के ऋय में द्रव्य का व्यय करके अथवा अपनी उत्पादक पूंजी के तत्व ख़रीदने में -वे चाहे श्रम शक्ति हो, चाहे उत्पादन साधन - द्रव्य पेशगी देता है। वह अपने धन का समतुल्य पाये बिना कभी उसे हाथ से निकलने नहीं देता। वह परिचलन में धन वैसे ही पेशगी देता है, जैसे वह उसमें अपना माल पेशगी देता है। दोनों ही स्थितियों में वह उनके परिचलन के प्रारंभ बिंदु के रूप में काम करता है। वास्तविक प्रक्रिया दो परिस्थितियों से अस्पष्ट हो जाती है : १) एक खास तरह के पूंजीपतियों द्वारा जोड़तोड़ के विषय के रूप में प्रौद्योगिक पूंजी की परिचलन प्रक्रिया में व्यापारी पूंजी का ( जिसका पहला रूप हमेशा द्रव्य होता है, क्योंकि व्यापारी महज़ व्यापारी होने के कारण किसी " का निर्माण नहीं करता) और द्रव्य पूंजी का प्रकट होना। २) बेशी मूल्य का -जिसे हमेशा पहले प्रौद्योगिक पूंजीपति के हाथ में रहना होता है - विभिन्न संवर्गों में विभाजन , जिसके वाहकों के रूप में प्रौद्योगिक पूंजीपति के अलावा भूस्वामी (किराया ज़मीन के लिए ), महाजन (सूद के लिए), वगैरह, और इनके अलावा सरकार और उसके कर्मचारी, किरायाजीवी , वगैरह प्रकट होते हैं। ये सभो भद्रजन प्रौद्योगिक पूंजीपति के संदर्भ में याहकों की तरह और उस सीमा तक उसके मालों के द्रव्य रूप में परिवर्तनकर्ताओं की तरह प्रकट होते हैं ; वे भी pro parte [भागानुसार] द्रव्य" परिचलन में डालते हैं , और पूंजीपति उसे उन से पाता है। किंतु यह बात हमेशा भुला दी जाती है कि उन्होंने शुरू-शुरू में उसे किस स्रोत से प्राप्त किया था और नित नये सिरे से प्राप्त करते रहते हैं। 11 उत्पाद 11 माल अथवा 18a ६. क्षेत्र | की स्थिर पूंजी अव हमारे लिए क्षेत्र I की ४,००० स राशि की स्थिर पूंजी का विश्लेपण करना वाक़ी रह जाता है। यह मूल्य पण्य उत्पाद I के रूप में नये सिरे से प्रकट होनेवाले उत्पादन साधनों के मालों की इस मात्रा के निर्माण में उपभुक्त मूल्य के वरावर होता है। यह पुनः प्रकट होनेवाला मूल्य , जो I की उत्पादन प्रक्रिया में नहीं पैदा हुआ था, वरन उसमें पिठले साल स्थिर मूल्य के रूप में उसके उत्पादन साधनों के निश्चित मूल्य के रूप में प्रविष्ट हुआ था, अब माल राशि I की उस समस्त संहति में विद्यमान है, जिसे संवर्ग II ने जज़्व नहीं कर लिया है। I के पूंजीपतियों के हाथ में इस प्रकार रहे मालों की इस माना का मूल्य उनके कुल वार्पिक माल उत्पाद के दो तिहाई मूल्य के बराबर होता है। किन्हीं विशेष उत्पादन साधनों को पैदा करनेवाले अलग पूंजीपति के प्रसंग में हम कह सकते हैं : वह अपना माल उत्पाद वेचता है ; उसे द्रव्य में परिवर्तित करके उसने अपने उत्पाद के मूल्य के स्थिर अंश को भी 4ga यहां से पांडुलिपि २।-फे० एं०