पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३७३

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कुल सामाजिक पूंजी का पुनल्लादन तथा परिचलन 1 I के नमत्र उत्पाद में उपयोग मूल्य ही होते हैं, जो अपने दैहिक रूप के कारण-उत्पादन की पूंजीवादी पद्धति में-स्थिर पूंजी के तत्वों का ही काम कर सकते हैं। इसलिए ६,००० के इस उत्ताद का एक तिहाई भाग (२,०००) क्षेत्र II की स्थिर पूंजी को प्रतिस्थापित करता है और शेप दो तिहाई भाग क्षेत्र I की स्थिर पूंजी को। स्थिर पूंजी I में उत्पादन साधनों के उत्पादन की विविध शाखाओं में निवेशित - इतनी लोहा कारखानों में, इतनी कोयला खानों में , इत्यादि-पूंजी के बहुत से भिन्न-भिन्न समूह समाहित होते हैं। इन पूंजी समूहों में प्रत्येक अथवा इन सामाजिक समूह पूंजियों में प्रत्येक अपनी बारी में स्वतंत्र रूप से कार्यशील , न्यूनाधिक संख्य अलग-अलग पूंजियों से निर्मित होती है। प्रथमतः समाज की पूंजी , उदाहरण के लिए, ७,५०० ( जिसका मतलब करोड़, वगैरह हो सकता है ) पूंजी के विभिन्न समूहों से बनी होती है ; ७,५०० की सामाजिक पूंजी अलग़- अलग भागों में बंटी होती है और इनमें से प्रत्येक भाग उत्पादन की किसी शाखा विशेष में निवेशित होता है; उत्पादन की किसी शाखा विशेष में निवेशित सामाजिक पूंजी मूल्य के प्रत्येक अंश में, जहां तक उसके दैहिक रूप का संबंध है , अंशतः उस विशेष उत्पादन क्षेत्र में आवश्यक उत्पादन साधन , अंशतः उस व्यवसाय में आवश्यक और उसके अनुरूप प्रशिक्षित , तथा उत्पादन के प्रत्येक अलग-अलग क्षेत्र में किये जानेवाले श्रम की विशेष किस्म के अनुसार श्रम विभाजन द्वारा अनेक प्रकार से प्रापरिवर्तित श्रम शक्ति समाहित होती है। उत्पादन की किसी विशेष शाखा में निवेशित सामाजिक पूंजी के प्रत्येक अंश में अपनी वारी में उसमें निवेशित और स्वतंत्र रूप से कार्यशील सभी अलग-अलग पूंजियों का योग समाहित होता है। यह वात I तथा II दोनों क्षेत्रों पर प्रत्यक्षतः लागू होती है। जहां तक स्थिर पूंजी मूल्य के अपने पण्य उत्पाद के दैहिक रूप में I में पुनः प्रकट होने का संबंध है, वह अंशत: उत्पादन साधनों के रूप में उस उत्पादन क्षेत्र विशेप में (अथवा व्यक्तिगत व्यवसाय में भी ) पुनः प्रवेश करता है, जहां से वह उत्पाद के रूप में निकलता है : उदाहरण के लिए , अनाज के उत्पादन में अनाज , कोयले के उत्पादन में कोयला, लोहे के उत्पादन में मशीनों की शक्ल में लोहा, इत्यादि। लेकिन चूंकि स्थिर पूंजी मूल्य 1 के संरचक पृथक उत्पाद अपने विशेष या अलग उत्पादन क्षेत्र में सीधे वापस नहीं पाते , इसलिए वे केवल अपना स्थान परिवर्तन ही करते हैं। वे अपने दैहिक रूप में क्षेत्र 1 के किसी अन्य उत्पादन क्षेत्र में चले जाते हैं, जब कि क्षेत्र I के अन्य उत्पादन क्षेत्रों का उत्पाद उनका वस्तुरूप में प्रतिस्थापन करता है। यह इन उत्पादों का स्थान परिवर्तन मात्र है। वे सब 1 की स्थिर पूंजी को प्रतिस्थापित करनेवाले उपादानों के रूप में पुनः प्रवेश करते हैं, वस I के उसी समूह के वदले वे दूसरे समूह में प्रवेश करते हैं। चूंकि यहां I के अलग-अलग पूंजीपतियों के बीच विनिमय होता है, इसलिए यह स्थिर पूंजी के एक दैहिक रूप से स्थिर पूंजी के दूसरे दैहिक रूप का, एक तरह के उत्पादन साधनों से दूसरी तरह के उत्पादन साधनों का विनिमय होता है। यह स्थिर पूंजी 1 के विभिन्न पृथक भागों का परस्पर विनिमय है। जो उत्पाद खुद अपने क्षेत्र में प्रत्यक्षतः उत्पादन साधनों का काम नहीं करता, वह अपने उत्पादन स्थान से दूसरी जगह स्थानांतरित हो जाता है और इस तरह उत्पाद एक दूसरे को परस्पर प्रतिस्थापित करते हैं। दूसरे शब्दों में (हमने वेशी मूल्य II के प्रसंग में जो देखा था, उसी की तरह ) I का प्रत्येक पूंजीपति मालों की इस राशि ४,००० की स्थिर पूंजी में अपने हिस्से के यथानुपात अपने लिए आवश्यक उत्पादन साधन . .