पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३७९

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कुल सामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन , बराबर है. (प+ये ) + II(प+बे) के, अतः वह प तथा वे के रूप में वर्ष भर के श्रम द्वारा उत्पादित नये मूल्यों के योग के बराबर है। दूसरी ओर उत्पादन साधनों (I) का कुल मूल्य उत्पादन साधनों (I) तया उपभोग वस्तुओं (II) के रूप में पुनः प्रकट होनेवाले स्थिर पूंजी मूल्य की राशि के बरावर, दूसरे शब्दों में समाज के कुल उत्पाद में पुनः प्रकट होनेवाले स्थिर पूंजी मूल्य की राशि के बराबर है। यह कुल मूल्य - मूल्यगत अर्थों में - बरावर है I की उत्पादन प्रक्रिया के पूर्ववर्ती कार्य दिवस के ४/३ भाग तया II की उत्पादन प्रक्रिया के पूर्ववर्ती कार्य दिवस के २/३ भाग के, कुल मिलाकर दो समुच्चित कार्य दिवसों के। अतः वार्षिक सामाजिक उत्पाद के प्रसंग में कठिनाई इस कारण पैदा होती है कि मूल्य का स्थिर अंग उत्पाद के एक ऐसे प्रकार - उत्पादन साधनों के रूप में प्रस्तुत होता है, जो मूल्य के इस स्थिर अंश में जोड़े और उपभोग वस्तुओं के रूप में प्रस्तुत प+बे के नये मूल्य से नितांत भिन्न होता है। इससे , जहां तक मूल्य का संबंध है, यह प्रतीत होता है कि उत्पाद की उपमुक्त राशि का दो तिहाई भाग नये रूप में, नये उत्पाद की शकल में समाज द्वारा उसके उत्पादन पर कोई श्रम व्यय किये बिना फिर प्राप्त हो जाता है। वैयक्तिक पूंजी के प्रसंग में ऐसा नहीं होता। प्रत्येक वैयक्तिक पूंजीपति श्रम की किसी विशेष , मूर्त कोटि का नियोजन करता है, जो अपने विशेष उत्पादन साधनों को उत्पाद में रूपांतरित करता है। उदाहरण के लिए, मान लीजिये कि पूंजीपति मशीन निर्माता है, साल में व्ययित स्थिर पूंजी ६,०००स, परिवर्ती पूंजी १,५००५, वेशी मूल्य १,५००वे, उत्पाद ६,००० और उत्पाद कहिये कि १८ मशीनें हैं, जिनमें प्रत्येक ५०० की है। यहां सारा उत्पाद एक ही रूप में, यानी मशीनों के रूप में है। ( यदि वह विभिन्न प्रकार की मशीनें बनाता है, तो प्रत्येक प्रकार का अलग परिकलन किया जाता है।) सारा पण्य उत्पाद मशीन निर्माण में साल भर में व्ययित श्रम का फल है ; वह श्रम की उसी मूर्त कोटि का उन्हीं उत्पादन साधनों से संयोग है। इसलिए उत्पाद के मूल्य के विभिन्न अंश उसी दैहिक रूप में प्रस्तुत होते हैं : १२ मशीनों में ६,००°स। ३ मशीनों में १,५००प, ३ मशीनों में १,५००वे का समावेश है। प्रस्तुत प्रसंग में स्पष्ट है कि १२ मशीनों का मूल्य ६,०००स के बरावर है, इसलिए नहीं कि इन १२ मशीनों में केवल उसी श्रम का समावेश हुअा है, जो इन मशीनों के निर्माण से पहले किया गया था और उस श्रम का नहीं है, जो उनके निर्माण पर व्यय हुआ है। १८ मशीनों के लिए उत्पादन साधनों का मूल्य अपने आप १२ मशीनों में अंतरित नहीं हो गया, वरन इन १२ मशीनों का मूल्य (जिसमें ४,०००+१,०००+ १,००°बे समाहित हैं) उस स्थिर पूंजी के समग्र मूल्य के बरावर है, जो इन १८ मशीनों में समाविष्ट है। अतः मशीन निर्माता को इन १८ मशीनों में १२ वेचनी होंगी, जिससे कि वह १८ नई मशीनों के पुनरुत्पादन के लिए आवश्यक उस स्थिर पूंजी का प्रतिस्थापन कर सके, जिसे वह व्यय कर चुका है। इसके विपरीत बात अव्याख्येय होगी, यदि इस तथ्य के बावजूद कि ख़र्च किये गये श्रम के मात्र मशीनों के निर्माण में ही लगाये जाने पर भी नतीजा यह निकले : एक ओर ६ मशीनें १,५००+ १,५००वे के बरावर हैं, दूसरी ओर ६,०००स मूल्य के लोहा, तांवा, पेंच, पट्टे, 'आदि हैं, अर्थात अपने दैहिक रूप में मशीनों के उत्पादन साधन हैं, और हमें पता है कि वैयक्तिक . . . .