पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३८१

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कुल नामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन होते हैं, हमें पूदों द्वारा पूंजीवादी अर्थशास्त्र से अनुकृत ढरें में नहीं पड़ जाना चाहिए और इस मामले को यों न देखना चाहिए, मानो उत्पादन की पूंजीवादी पद्धतिवाला समाज , en bloc. अपनी समग्रता में देखे जाने पर अपना विशिष्ट ऐतिहासिक और आर्थिक स्वरूप खो देगा। नहीं , वात इससे उलटी है। उस स्थिति में हमारा समष्टि रूप में पूंजीपति से सरोकार होता है। समष्टि पूंजी समस्त पृथक पूंजीपतियों का मिला-जुला पूंजी स्टॉक बनकर सामने आती है। इस संयुक्त पूंजी कंपनी में और बहुत सी अन्य पूंजी कंपनियों में यह बात सामान्य है कि हरेक यह तो जानता है कि उसने क्या लगाया है, पर यह नहीं जानता कि उससे वह पायेगा क्या। ६. ऐडम स्मिथ , श्तोत्रं और रैमजे पर पुनःदृष्टि सामाजिक उत्पाद का समुच्चित मूल्य ६,००० है, जो ६,०००स+ १,५०० + १,५०० के बराबर है, अर्थात ६,००० उत्पादन साधनों का पुनरुत्पादन करते हैं और ३,००० उपभोग वस्तुओं का। अतः सामाजिक आय का मूल्य (प+वे) समुच्चित उत्पाद के मूल्य का सिर्फ एक तिहाई है और उपभोक्ताओं- मजदूरों तथा पूंजीपतियों की भी समप्टि कुल सा- माजिक उत्पाद से केवल इस एक तिहाई राशि तक ही पण्य वस्तुएं, उत्पाद निकाल सकती है और उन्हें अपनी उपभोग निधि में समाविष्ट कर सकती है। दूसरी ओर ६,००० अथवा उत्पाद के मूल्य का दो तिहाई स्थिर पूंजी का मूल्य है, जिसका वस्तुरूप में प्रतिस्थापन करना होता है। अतः उत्पादन निधि में इस राशि के उत्पादन साधनों का फिर से समावेश करना होता है। श्तोर्ख ने इसे प्रमाणित न कर पाने पर भी यह पहचान लिया था कि वह महत्वपूर्ण है : “ यह स्पष्ट है कि वार्पिक उत्पाद का मूल्य अंशतः पूंजी और अंशत: लाभ में बंटा होता है, और वार्पिक उत्पाद के मूल्य के इन अंशों में से प्रत्येक उस उत्पाद की खरीद में नियमित रूप से लगाया जाता है, जिसकी राष्ट्र को अपनी पूंजी को बनाये रखने और अपनी उपमोग निधि का अापूरण करने दोनों के लिए ज़रूरत होती है... जो उत्पाद राष्ट्र की पूंजी है, उसका उपभोग नहीं किया जाना है" (श्तोर्ख , Considerations sur la nature du revenu national, पेरिस, १८२४, पृष्ठ १३४-१३५, १५०)। किंतु ऐडम स्मिथ ने एक अद्भुत मत चलाया है, जिस पर अाज तक विश्वास किया जाता है, उस पूर्वोक्त रूप में ही नहीं, जिसके अनुसार सामाजिक उत्पाद का समस्त मूल्य अपने को प्राय - मजदूरी तथा वेशी मूल्य - में अथवा · उनकी शब्दावली में मजदूरी जमा लाभ (व्याज) तथा किराया जमीन में वियोजित कर लेता है, वरन उस और भी लोकप्रिय रूप में , जिसके अनुसार “अंततोगत्वा" उपभोक्ताओं को उत्पाद का सारा मूल्य उत्पादकों को देना होता है। अाज दिन तक यह अर्थशास्त्र के तथाकथित विज्ञान को सर्वाधिक सुप्रतिष्ठित सामान्य धारणा, कहना चाहिए, उसका शाश्वत सत्य है। इसकी मिसाल इस तर्कसंगत प्रतीत होनेवाले तरीके से दी जा सकती है : कोई भी चीज़ ले लीजिये , जैसे कि लिनन की क़मीज़। पहले लिनन कातनेवाले को सन उगानेवाले को सन का सारा मूल्य , अर्थात वीज, उर्वरक , जांगर मवेशियों के चारे, अादि का मूल्य तथा मूल्य का वह भाग, जिसे सन उगानेवाले की स्थायी पूंजी का इमारतों, खेती के उपकरण , वगैरह जैसा भाग उत्पाद को प्रदान करता है ; सन के उत्पादन में अदा की मजदूरी ; सन में समाविष्ट वेशी मूल्य (लाभ , किराया जमीन ); . .