पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३८२

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साधारण पुनरुत्पादन ३८१ - प्राविर में उत्पादन स्थल से कताईघर तक सन की ढुलाई का खर्च - अदा करना होता है। फिर बुनकर को लिनन सूत कातनेवाले को न केवल सन का दाम , वरन मशीनों, इमारतों, वगैरह के मूल्य , संक्षेप में स्थायी पूंजी के उस अंश का दाम भी, जो सन को अंतरित होता है। इसके अलावा कताई की प्रक्रिया में उपभुक्त सारी सहायक सामग्री, कातनेवालों की मज़दूरी, वेशी मूल्य, इत्यादि का भी दाम भरना होता है और इसी तरह रंगरेज़ , तैयार लिनन की ढुलाई लागत और अंत में क़मीज़ निर्माता तक यही सिलसिला चलता है, जिसे मभी पूर्ववर्ती उत्पादकों को सारा दाम चुकाना होता है, जिन्होंने उसके लिए केवल कच्चा माल जुटाया था। उसके हाथ में मूल्य में और वृद्धि होती है, अंशतः स्थायी पूंजी के उस मूल्य द्वारा, जो क़मीज़ों के निर्माण में श्रम उपकरणों, सहायक सामग्री, वगैरह की शक्ल में खपता है, और ग्रंशतः उस व्यय किये श्रम के द्वारा, जो क़मीज़ बनाने- वालों की मजदूरी का मूल्य तथा क़मीज़ निर्माता का वेशी मूल्य उसमें जोड़ता है। मान लीजिये , क़मीज़ों के रूप में इस सारे उत्पाद की लागत अंततः १०० पाउंड बैठती है और मान लीजिये कि यह समाज द्वारा क़मीज़ों पर व्ययित कुल वार्षिक उत्पाद के मूल्य का समभाग है। क़मीज़ों के उपभोक्ता ये १०० पाउंड , अर्थात क़मीज़ों में समाहित उत्पादन साधनों तथा सन उगानेवाले , कातनेवाले , बुनकर , रंगरेज़, क़मीज़ निर्माता और सभी माल ढोनेवालों की मज़दूरी तथा वेशी मूल्य अदा करते हैं। यह बात पूरी तरह सही है। सच तो यह है कि बच्चा भी यह समझ सकता है। किंतु आगे कहा जाता है : अन्य सभी मालों के मूल्य के बारे में भी यही होता है। कहना यह चाहिए : सभी उपभोग वस्तुओं के मूल्य के बारे में, सामाजिक उत्पाद के उस अंश के मूल्य के बारे में, जो उपभोग निधि में आता है, अर्थात सामाजिक उत्पाद के मूल्य के उस अंश के बारे में, जो आय के रूप में ख़र्च किया जा सकता है, यही होता है। वेशक, इन सभी मालों के मूल्यों का योग उनमें उपयुक्त सभी उत्पादन साधनों के मूल्यों ( पूंजी के स्थिर भागों) के तथा अाखिर में जोड़े हुए श्रम द्वारा रचे हुए मूल्य ( मजदूरी तथा वेशी मूल्य ) के वरावर है । अतः उपभोक्ता समष्टि मूल्यों की इस समग्र राशि के दाम दे सकती है, क्योंकि यद्यपि प्रत्येक अलग-अलग माल का मूल्य स+प+वे से निर्मित है, फिर भी उपभोग निधि में पहुंचनेवाले सभी मालों के मूल्य का अधिकतम योग भी सामाजिक उत्पाद के उस मूल्यांश के बराबर ही हो सकता है, जो प+वे में वियोजित होता है, दूसरे शब्दों में वह उस मूल्य के ही वरावर हो सकता है, जिसे वर्ष में ख़र्च किये श्रम ने विद्यमान उत्पादन साधनों में, अर्थात स्थिर पूंजी के मूल्य में जोड़ा है। जहां तक स्थिर पूंजी के मूल्य का संबंध है, हम देख चुके हैं कि उसका प्रतिस्थापन सामाजिक उत्पाद की राशि में से दोहरे ढंग से होता है। प्रथम , उपभोग वस्तुएं पैदा करनेवाले II पूंजीपतियों के उनके लिए उत्पादन साधन पैदा करनेवाले I पूंजीपतियों से विनिमय द्वारा। यहीं उस उक्ति का स्रोत है कि जो एक के लिए पूंजी है, वह दूसरे के लिए प्राय है। किंतु वास्तविक स्थिति यह नहीं है। २,००० मूल्य की उपभोग वस्तुओं की शक्ल में विद्यमान २,००० II II पूंजीपति वर्ग के लिए स्थिर पूंजी मूल्य हैं। तः वे स्वयं इस मूल्य का उपभोग नहीं कर सकते , यद्यपि उत्पाद अपने दैहिक रूप के अनुरूप उपभोग के लिए उद्दिष्ट है। दूसरी ओर २,००० (प+वे) मजदूरी और वेशी मूल्य हैं, जिनका उत्पादन I के पूंजीपति तथा मजदूर वर्ग ने किया है। वे उत्पादन साधनों के , ऐसी चीजों के दैहिक रूप में होते हैं, जिनमें उनके अपने मूल्य का उपभोग नहीं . ,