पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३८३

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३८२ कुल सामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन हो सकता। इसलिए हमारे पास ४,००० राशि के मूल्य हैं, जिनका आधा हिस्सा विनिमय के पहले और उसके बाद केवल स्थिर पूंजी को प्रतिस्थापित करता है, जब कि दूसरा हिस्सा केवल प्राय होता है। दूसरी बात यह है कि क्षेत्र I की स्थिर पूंजी वस्तुरूप में प्रतिस्थापित होती है और ऐसा अंशतः I पूंजीपतियों के बीच विनिमय द्वारा और अंशतः प्रत्येक अलग-अलग व्यवसाय में वस्तुरूप में प्रतिस्थापन द्वारा होता है। यह शब्दावली कि सारे वार्पिक उत्पाद का मूल्य अंततोगत्वा उपभोक्ता को चुकाना होगा, तभी सही होगी कि जब उपभोक्ता शब्द से दो नितांत भिन्न प्रकार के उपभोक्ताओं का आशय ग्रहण किया जाये : व्यक्तिगत उपभोक्ता और उत्पादक उपभोक्ता। किंतु अगर उत्पाद के एक अंश का उपभोग उत्पादक ढंग से करना होगा, तो उसका अर्थ इसके सिवा और कुछ नहीं है कि उसे पूंजी का कार्य करना होगा और उसका प्राय के रूप में उपभोग नहीं हो सकता। यदि हम ६,००० के बरावर समुच्चित उत्पाद के मूल्य को ६,०००स+ १,५००+ १,५००वे में विभाजित कर दें और ३,००० (प+वे) पर केवल उसके आय के गुण के विचार से दृष्टिपात करें, तो इसके विपरीत परिवर्ती पूंजी लुप्त होती और पूंजी में सामाजिक विचार से केवल स्थिर पूंजी शेष रहती प्रतीत होती है। कारण यह कि जो कुछ पहले पहल १,५००प के रूप में प्रकट हुअा था, उसने अपने को सामाजिक प्राय के एक अंश , मजदूर वर्ग की आय , मजदूरी में वियोजित कर लिया है और इस तरह उसका पूंजी का स्वरूप लुप्त हो गया है। रैमजे दरअसल यही निष्कर्ष निकालते हैं। उनके अनुसार सामाजिक दृष्टि से पूंजी केवल स्थायी पूंजी होती है, किंतु स्थायी पूंजी से उनका मतलव मूल्यों की उस मात्रा से होता है, जिसमें उत्पादन साधन समाहित होते हैं, ये उत्पादन साधन चाहे श्रम उपकरण हों, चाहे श्रम सामग्री हों, जैसे कच्चा माल , अघनिर्मित उत्पाद, सहायक सामग्री, वगैरह । वह परिवर्ती पूंजी को प्रचल पूंजी कहते हैं : 'प्रचल पूंजी में केवल श्रमिक जनों को उनके श्रम के उत्पाद के पूर्ण होने से पहले उन्हें पेशगी दी गई निर्वाह तथा अन्य जीवनावश्यक वस्तुएं होती हैं ... यथार्थतः स्थायी पूंजी ही राष्ट्रीय संपदा का स्रोत है, न कि प्रचल पूंजी ... प्रचल पूंजी उत्पादन में प्रत्यक्ष साधक नहीं होती, न उसके लिए तत्वतः अावश्यक ही होती है ; वह एक सुविधा मान है, जो जनसाधारण की दयनीय निर्धनता के कारण आवश्यक बन जाती है... राष्ट्रीय दृष्टिकोण से केवल स्थायी पूंजी उत्पादन की लागत का एक तत्व होती है" (रैमजे , l. c., pp. 23-26, passim)। रैमजे स्थायी पूंजी की , जिससे उनका आशय स्थिर पूंजी है, परिभाषा इन शब्दों में अधिक सूक्ष्मतापूर्वक करते हैं : वह कालावधि, जिसमें इस श्रम (अर्थात किसी माल पर व्यय किये हुए श्रम) “के उत्पाद का कोई अंश स्थायी पूंजी के रूप में, यानी ऐसे रूप में विद्यमान रहा हो, जिसमें वह भावी माल के उद्भव में सहायता तो करता है, किंतु श्रमिकों का भरण-पोषण नहीं करता ( वही, पृष्ठ ५६) ऐडम स्मिथ स्थिर और परिवर्ती पूंजी के भेद को स्थायी पूंजी और प्रचल पूंजी के भेद में विलुप्त करके जो तवाही करते हैं, वह यहां फिर हमारे देखने में आती है। रैमजे की स्थिर पूंजी में श्रम उपकरण हैं, उनकी प्रचल पूंजी में निर्वाह साधन हैं। ये दोनों ही एक नियत मूल्य के माल हैं। इनमें न यह वेशी मूल्य पैदा कर सकता है, न वह । - 11 1 11