पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३८४

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साधारण पुनरुत्पादन ३८३ 29 . . १०. पूंजी और प्राय : परिवर्ती पूंजी और मज़दूरी समग्र वार्पिक पुनरुत्पादन , वर्ष का समग्र उत्पाद , उस वर्प के उपयोगी श्रम का उत्पाद होता है। किंतु इस कुल उत्पाद का मूल्य उस मूल्यांश से अधिक होता है, जिसमें वार्पिक श्रम, चालू वर्ष के दौरान व्यय की गई श्रम शक्ति , सन्निहित होती है। इस वर्ष का मूल्य उत्पाद इस अवधि में मालों के रूप में नवनिर्मित मूल्य उत्पाद के मूल्य से, सारे वर्ष के दौरान निर्मित मालों की कुल राशि के समुच्चित मूल्य से कम होता है। वार्पिक उत्पाद के कुल मूल्य से उसमें चालू वर्प के श्रम द्वारा जोड़े गये मूल्य को घटा देने से जो अंतर प्राप्त होता है, वह वास्तव में पुनरुत्पादित मूल्य नहीं, वरन वह नये अस्तित्व रूप में पुनः प्रकट होनेवाला मूल्य मान है। वह वार्पिक उत्पाद को उससे पहले से विद्यमान मूल्य से स्थिर पूंजी के चालू वर्ष की सामाजिक श्रम प्रक्रिया में भाग ले चुके घटकों के टिकाऊपन के अनुसार जल्दी या देर में अंतरित हुा मूल्य है, ऐसा मूल्य है, जिसका उद्भव पिछले वर्ष अथवा उससे भी अनेक वर्ष पहले अस्तित्व में आये उत्पादन साधनों के मूल्य से हो सकता है। इस तरह यह पूर्व वर्षों के उत्पादन साधनों से चालू वर्प के उत्पाद को अंतरित मूल्य होता है। प्राइये, अपनी सारणी ले लेते हैं। अब तक I तथा II के बीच और II के भीतर तत्वों के विनिमय के विवेचन के वाद हमारे सामने यह स्थिति है : I) ४,००°स+ १,०००+१,०००( वादवाले २,००० II का उपभोग वस्तुओं में सिद्धिकरण हुआ है )=६,००० । II) २,००°स ( (प+वे ) से विनिमय द्वारा पुनरुत्पादित) + ५०°प +५००=३,०००। मूल्यों का योग=६,०००। वर्ष के दौरान नवोत्पादित मूल्य केवल प और वे में समाविष्ट है। अतः इस वर्ष के मूल्य उत्पाद का योग बरावर है प+वे के , अथवा २,००० (प+बे)+१,००० (प+वे ) =३,०००। इस वर्ष के उत्पाद के शेष सभी मूल्यांश केवल वार्षिक उत्पादन में पहले उपभुक्त उत्पादन साधनों के मूल्य से अंतरित मूल्य मात्र होते हैं। चालू वार्षिक श्रम ने ३,००० के मूल्य के अलावा और कोई मूल्य पैदा नहीं किया है। उसका सारा वार्षिक मूल्य उत्पाद यही है। अब, जैसा कि हम देख चुके हैं, वर्ग II के लिए २,००० (प+वे) उसके २,००० को उत्पादन साधनों को दैहिक रूप में प्रतिस्थापित करते हैं, तव संवर्ग I में व्ययित वार्पिक श्रम के दो तिहाई भाग ने स्थिर पूंजी II का, उसके समग्र मूल्य का और उसके दैहिक रूप का भी नवोत्पादन किया है। समाज के दृष्टिकोण से साल के दौरान व्यय किये दो तिहाई श्रम ने क्षेत्र II के उपयुक्त दैहिक रूप में सिद्धिकृत नये स्थिर पूंजी मूल्य का सृजन किया है। इस प्रकार समाज के वार्षिक श्रम का अधिकांश नई स्थिर पूंजी ( उत्पादन साधनों के रूप में विद्यमान पूंजी मूल्य ) के उत्पादन पर खर्च किया गया है, जिससे कि उपभोग वस्तुओं के उत्पादन पर खर्च किया स्थिर पूंजी मूल्य प्रतिस्थापित हो सके। यहां नो चीज़ पूंजीवादी समाज का वर्वर समाज से भेद दिखलाती है, वह सीनियर 50 के ख़याल IIA 1° यहां से आगे पाण्डुलिपि ८ से है। -फ़े० एं० 50 " जब जंगली प्रादमी धनुप बनाता है, तब वह उद्योग तो करता है, परंतु परिवर्जन