पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३८५

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कुल नामाजिक पूंजी का पुनन्यादन तथा परिचलन - . 1 के मुताविक जंगली आदमी को अपने श्रम को कभी-कभी इस तरह खर्च करने की सुविधा और बिगेपता नहीं है, जिनसे उसे प्राय में, अर्थात उपभोग वस्तुओं में वियोज्य (विनिमेय ) उत्पादों की प्रप्ति होती है। नहीं, भेद निम्नलिखित है: क) पंजीवादी नमाज अपने उपलभ्य वार्पिक श्रम का अधिक भाग उन उत्पादन साधनों ( यानी स्थिर पूंजी) के उत्पादन पर खर्च करता है, जो मजदूरी अथवा वेशी मूल्य के रूप में प्राय में वियोज्य नहीं हैं, वरन जो केवल पूंजी की तरह कार्य कर सकते हैं। ब) जब जंगली अादमी धनुष, वाण, पत्थर के हथौड़े, कुल्हाड़ियां, टोकरियां, वगैरह बनाता है, तब वह बहुत अच्छी तरह जानता है कि उसने जो समय यों खर्च किया है, वह उपभोग वस्तुओं के उत्पादन में नहीं लगाया गया है, वरन यह कि उसने इस प्रकार अपने लिए अावश्यक उत्पादन साधन ही जमा किये हैं और कुछ नहीं। इसके अलावा जंगली नमय के अपव्यय के प्रति अपनी नितांत उदासीनता से एक गंभीर आर्थिक पाप करता है और जैसे कि टाइल हमें बताते हैं, कभी-कभी एक तीर वनाने में पूरा महीना लगा देता है। एक के लिए जो पूंजी है, दूसरे के लिए वह प्राय है, और इसके विलोमतः भी इन वास्तविक अंतःसंबंधों को समझने की सैद्धांतिक कठिनाई से अपने को निकालने के लिए कुछ अर्थशास्त्री जिम प्रचलित धारणा का सहारा लेते हैं, वह केवल अंशतः सही है और उसे साविक स्वरूप प्रदान करने के साथ वह पूर्णतः ग़लत हो जाती है ( अतः उसमें वार्षिक पुनरुत्पादन में होनेवाली समूची विनिमय प्रक्रिया की एकदम ग़लत समझ होती है, और इसलिए जो कुछ अंशतः सही है, उसके वास्तविक आधार की भी ग़लत समझ होती है)। अब हम उन वास्तविक संबंधों का समाहार करते हैं, जिन पर इस धारणा की अांशिक यथातथ्यता आधारित है और ऐसा करने में इन संबंधों के बारे में भ्रांत धारणाएं उभरकर सामने या जायेंगी। १) परिवर्ती पूंजी पूंजीपति के हाथ में पूंजी का और उजरती मजदूर के हाथ में प्राय का कार्य करती है। परिवर्ती पूंजी पहले द्रव्य पूंजी के रूप में पूंजीपति के हाथ में होती है; और वह द्रव्य पूंजी का कार्य पूंजीपति द्वारा उससे श्रम शक्ति का क्रय करने के जरिये करती है। जब तक वह उसके हाथ में द्रव्य रूप में बनी रहती है, तब तक वह द्रव्य रूप में विद्यमान एक दिये हुए मूल्य के अलावा और कुछ नहीं होती ; अतः वह एक स्थिर परिमाण है, परिवर्ती नहीं। वह केवल संभाव्य रूप में परिवर्ती पूंजी है, अपनी इस क्षमता के कारण कि वह श्रम शक्ति में परिवर्तनीय है। वह वास्तविक परिवर्ती पूंजी तभी बनती है कि जब अपना द्रव्य रूप उतार देती है, वह पूंजीवादी प्रक्रिया में उत्पादक पूंजी के संघटक अंश की तरह कार्यरत श्रम शक्ति में परि- वर्तित हो जाती है। द्रव्य , जो पहले परिवर्ती पूंजी के द्रव्य रूप की तरह पूंजीपति के लिए कार्य करता था, जब 11 &% नहीं करता ( Senior, Principes fondamentaux de l'Economie Politique, trad. Arrivabene, Paris, 1836, pp. 342-343). समाज जितना विकास करता है, परिवर्जन की मांग उतनी ही बढ़ती जाती है" (वही, पृष्ठ ३४२)। ( तुलना करें, Kapi- tal, Buch I, Kap. XXII, S. 19.) [हिंदी संस्करण : अध्याय २४, ३, पृष्ठ ६६६- ६७०]] 51 E. B. Tylor, Researches into the Early History of Mankind, etc. London, 1865, pp. 198-199.