पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कुल सामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन २) और इस तरह २,००० II से १,००० + १,००० वे के विनिमय में कुछ के लिए जो स्थिर पूंजी (२,००० II) है, वह दूसरों के लिए परिवर्ती पूंजी और वेशी मूल्य अतः सामान्यतः प्राय हो जाती है; और जो परिवर्ती पूंजी और वेशी मूल्य (२,००० (प+बे)) है, अतः कुछ लोगों के लिए सामान्यतः प्राय है, वह दूसरों के लिए स्थिर पूंजी बन जाती है। प्राइये , मजदूर के दृष्टिकोण से शुरूयात करके पहले 14 के II से विनिमय पर नजर डालें। I का समष्टि श्रमिक I के समष्टि पूंजीपति को अपनी श्रम शक्ति १,००० पर वेचता है; उसे यह मूल्य द्रव्य में, मजदूरी के रूप में मिलता है। इस द्रव्य से वह II से उसी मूल्य राशि की उपभोग वस्तुएं खरीदता है। II का पूंजीपति उसके सामने केवल माल विक्रेता के रूप में ही आता है, अन्य किसी रूप में नहीं, भले ही मजदूर ख़रीदारी अपने ही पूंजीपति से करे, जैसा कि वह, उदाहरणतः , ५०० II के विनिमय में करता है, जैसा कि हम ऊपर (पृष्ठ ४०० पर) देख चुके हैं। उसका माल, श्रम शक्ति , जिस परिचलन रूप से गुजरता है, वह मात्र आवश्यकताओं की तुष्टि के लिए, उपभोग के लिए मालों का साधारण परिचलन है : मा (श्रम शक्ति)-द्र-मा (उपभोग वस्तुएं, II माल )। इस परिचलन क्रिया का परिणाम यह होता है कि श्रमिक I पूंजीपति के लिए अपना श्रम शक्ति के रूप में अनुरक्षण करता है और अपना इस रूप में अनुरक्षण करते रहने के लिए उसे थ (मा)-द्र - मा क्रिया का निरंतर नवीकरण करना होता है। उसकी मजदूरी का उपभोग वस्तुओं में सिद्धिकरण होता है, वह प्राय के रूप में खर्च होती है और समूचे मजदूर वर्ग को देखते हुए आय के रूप में वार-बार ख़र्च होती है। आइये , अब स से 14 के उसी विनिमय को पूंजीपति के दृष्टिकोण से देखें। ll का समूचा माल उत्पाद में उपभोग वस्तुएं हैं, अतः ऐसी चीजें हैं, जिनका वार्षिक उपभोग में आना, अतः किसी के लिए आय के सिद्धिकरण में काम आना , वर्तमान प्रसंग में समष्टिं श्रमिक I के लिए अभीष्ट है। किंतु II के समष्टि पूंजीपति के लिए उसके पण्य उत्पाद का एक अंश , जो २,००० के वरावर है, अव उसकी माल में परिवर्तित उत्पादक पूंजी के स्थिर पूंजी मूल्य का रूप है। इस उत्पादक पूंजी को माल रूप से उसके दैहिक रूप में पुनःपरिवर्तित करना होगा, जिसमें वह . उत्पादक पूंजी के स्थिर अंश की तरह फिर काम कर सकती है। अभी तक II के पूंजीपति ने जो कुछ किया है, वह यह कि I के मजदूरों को विक्री के जरिये उसने अपने स्थिर पूंजी मूल्य का अाधा हिस्सा ( १,००० के वरावर ), जो मालों ( उपभोग वस्तुओं) के रूप में पुनरुत्पादित हुआ था, द्रव्य रूप में पुनःपरिवर्तित कर लिया है। अतः स्थिर पूंजी मूल्य. IIT के अर्धांश में परिवर्ती पूंजी I नहीं, वरन केवल वह द्रव्य परिवर्तित किया गया है, जो श्रम शक्ति से विनिमय में I के लिए द्रव्य पूंजी का कार्य कर रहा था और इस प्रकार श्रम शक्ति के विक्रेता के कब्जे में आ गया है, जिसके लिए वह पूंजी नहीं; वरन द्रव्य रूप में आय है, अर्थात वह उपभोग वस्तुएं खरीदने के साधन रूप में . प्रस्तुत पुस्तक, पृष्ठ ३५५-३५६।-सं०