पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३९०

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साधारण पुनरुत्पादन ३८६ दिया था, जोड़ा है। (पूंजीपति द्रव्य रूप में ५०० की वापसी से वेशी मूल्य पा जाता है, इस अर्थ में वह और धनी बनता है - इस धारणा को देस्तु द वासी ने विकसित किया है, जैसा कि इस अध्याय के परिच्छेद १३ में विस्तारपूर्वक दिखाया गया है।) II के मजदूर द्वारा ५०० को उपभोग वस्तुओं की खरीद से II का पूंजीपति ५०० II का मूल्य - जो अभी उसके पास माल रूप में था-द्रव्य रूप में, जिसमें उसने उसे मूलतः पेशगी फिर पा जाता है। मालों की और किसी विक्री की ही तरह इस लेन-देन का भी प्रत्यक्ष फल एक दिये हुए मूल्य का माल रूप से द्रव्य रूप में परिवर्तन होता है। न द्रव्य के अपने प्रस्थान बिंदु पर इस पश्चप्रवाह में ही कोई विशेष बात है। यदि II के पूंजीपति ने ५०० द्रव्य रूप से I के पूंजीपति से माल ख़रीदा होता और फिर अपनी वारी में ५०० रकम का माल I के पूंजीपति को वेचा होता, तो द्रव्य रूप में उसी प्रकार ५०० उसके पास लौट पाते। ५०० की यह द्रव्य राशि केवल मालों की एक मात्रा (१,०००) के परिचलन के काम आती और जिस सामान्य नियम की व्याख्या पहले की जा चुकी है, उसके अनुसार जिसने यह द्रव्य मालों की इस माना के विनिमय के लिए परिचलन में डाला था, उसके पास वह लौट , पाता। 1 - किंतु II पूंजीपति के पास द्रव्य रूप में जो ५०० लौटे थे, वे साथ ही द्रव्य रूप में नवीकृत संभाव्य परिवर्ती पूंजी भी हैं। ऐसा क्यों है? द्रव्य और इसलिए द्रव्य पूंजी भी वहीं तक और तभी तक संभाव्य परिवर्ती पूंजी होती है कि जब तक और जहां तक वह श्रम शक्ति में परिवर्तनीय होती है। II पूंजीपति के पास द्रव्य रूप में ५०० पाउंड की वापसी के साथ- साथ श्रम शक्ति II भी वाज़ार में वापस आती है। इन दोनों का विरोधी ध्रुवों पर प्रत्यावर्तन और इसलिए ५०० का द्रव्य रूप में न केवल द्रव्य की हैसियत से, वरन द्रव्य रूप में परिवर्ती पूंजी की हैसियत से भी पुनः प्रकट होना एक ही प्रक्रिया पर निर्भर हैं। II के पूंजीपति के पास ५०० के वरावर द्रव्य इसलिए लौट आता है कि उसने II के श्रमिक को ५०० के वरावर उपभोग वस्तुएं वेची थीं, अर्थात इसलिए कि श्रमिक ने स्वयं को, अपने परिवार को और इस प्रकार अपनी श्रम शक्ति को भी बनाये रखने के लिए अपनी मजदूरी ख़र्च की है। मालों के ग्राहक की तरह फिर काम करने और जिंदा रहने के लिए उसे अपनी श्रम शक्ति फिर वेचनी होगी। इसलिए II के पूंजीपति के पास द्रव्य रूप में इन ५०० की वापसी द्रव्य रूप में ५०० से ख़रीदे जा सकनेवाले माल की हैसियत में श्रम शक्ति का भी पूंजीपति के पास प्रत्यावर्तन अथवा वने रहना है और इस तरह ५०० की द्रव्य रूप में संभाव्य परिवर्ती पूंजी के रूप में वापसी है। जहां तक संवर्ग IIख का, जो विलास वस्तुएं पैदा करता है, संबंध है, - ( IIख ) 4-की स्थिति वही है, जो. I की है। जो द्रव्य IIख पूंजीपतियों के लिए द्रव्य रूप में उनकी परिवर्ती पूंजी का नवीकरण करता है, वह उनके पास IIक पूंजीपतियों के पास होता हुआ चक्करदार रास्ते से वापस आता है। फिर भी इस बात से वेशक फ़र्क पड़ता है कि मजदूर अपने निर्वाह साधन सीधे उन पूंजीपति उत्पादकों से ख़रीदते हैं, जिन्हें वे अपनी श्रम शक्ति वेचते हैं या किसी दूसरे संवर्ग के पूंजीपतियों से खरीदते हैं, जिनके जरिये द्रव्य चक्करदार रास्ते से ही प्रथमोक्त के पास लौटता है। चूंकि मजदूर वर्ग नित कमाता और नित खाता है, इसलिए वह तभी तक खरीदारी करता है कि जब तक उसके पास इसके साधन होते हैं। पूंजीपतियों के साथ ऐसा नहीं है, यथा १,००० ५ से १,००० II के विनिमय में। पूंजीपति