पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३९१

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कुल सामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन के लिए नित कमाकर नित जीने की समस्या नहीं है। उसका प्रेरक हेतु उसकी पूंजी का अधिकतम स्वप्रमार है। इसलिए यदि ll पूंजीपति को किन्हीं भी परिस्थितियों से यह लगता हो कि अपनी स्थिर पूंजी का नवीकरण तुरंत करने के बजाय अपना द्रव्य या कम से कम उसका कुछ भाग कुछ समय के लिए रोके रखने से उसे अधिक लाभ होगा, तब I के पास १,००० II (द्रव्य रूप में ) की वापसी और इसी तरह द्रव्य रूप में १,००० J4 की बहाली भी विलंबित हो जायेगी और I पूंजीपति अपना व्यवसाय उसी पैमाने पर तभी चला सकता है कि अगर वह प्रारक्षित द्रव्य से काम ले; और सामान्यतः द्रव्य रूप में प्रारक्षित पूंजी इसलिए जरूरी होती है कि किसी व्यवधान के बिना काम चलता रहे ; फिर परिवर्ती पूंजी मूल्य द्रव्य रूप में चाहे जल्दी वापस पाये, चाहे देर में। चालू वार्षिक पुनरुत्पादन के विविध तत्वों के विनिमय के अन्वेषण के लिए विगत वर्ष के श्रम के परिणामों की, अभी-अभी समाप्त हुए वर्ष के श्रम के परिणामों की भी छानवीन करना अावश्यक है। जिस उत्पादन प्रक्रिया का फल इस वर्ष का उत्पाद है, वह पीछे छूट गया है। वह अतीत की चीज़ है, जिसका समावेश उसके उत्पाद में हो गया है। परिचलन प्रक्रिया के प्रसंग में यह बात और भी लागू होती है, जो संभाव्य परिवर्ती पूंजी का वास्तविक परिवर्ती पूंजी में परिवर्तन , अर्थात श्रम शक्ति का क्रय-विक्रय है, जो उत्पादन प्रक्रिया से पहले होती है या उसके साथ-साथ चलती है। श्रम वाज़ार अव उस माल बाजार का अंग नहीं रह गया है, जो हमारे सामने यहां है। यहां मजदूर अपनी श्रम शक्ति को पहले बेच ही नहीं चुका है, वरन उसने वेशी मूल्य के अलावा माल रूप में अपनी श्रम शक्ति की कीमत के समतुल्य की भी पूर्ति की है। इसके अलावा वह अपनी मजदूरी को भी हस्तगत कर चुका है और विनिमय के समय वह माल ( उपभोग वस्तुओं) के ग्राहक' की तरह ही सामने आता है। दूसरी यह जरूरी है वार्पिक उत्पाद में पुनरुत्पादन के सारे तत्व समाहित हों, वह उत्पादक पूंजी के सारे तत्वों को , सर्वोपरि उसके सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व , परिवर्ती पूंजी को बहाल करे। और सचमुच हम देख चुके हैं कि परिवर्ती पूंजी के संदर्भ में विनिमय का परिणाम यह होता है : अपनी मजदूरी के व्यय और ख़रीदे हुए माल के उपभोग द्वारा मजदूर मालों के खरीदार के रूप में अपनी श्रम शक्ति का अनुरक्षण करता और उसका पुनरुत्पादन करता है, क्योंकि उसके पास यही एकमात्र माल है, जिसे वह बेच सकता है। जैसे इस श्रम शक्ति की खरीदारी में पूंजीपति का पेशगी द्रव्य उसके पास लोट आता है, वैसे ही श्रम शक्ति उस माल की हैसियत से श्रम बाजार में लौट आती है, जिसका विनिमय इस द्रव्य से हो सकता है। १,००० 14 के विशेष प्रसंग में नतीजा यह होता है कि I के पूंजीपतियों के पास द्रव्य रूप में १,००० होते हैं और I के मजदूर उन्हें श्रम शक्ति के रूप में १,००० पेश करते हैं, जिससे कि 1 की सारी पुनरुत्पादन प्रक्रिया का नवीकरण हो सके। यह विनिमय प्रक्रिया का एक परिणाम है। दूसरी ओर I के मजदूरों द्वारा मजदूरी के व्यय ने II की १,००० राशि के बराबर उपभोग वस्तुओं को स्थानापत्ति की और इस तरह उन्हें पण्य रूप से द्रव्य रूप में रूपांतरित किया। क्षेत्न II ने I मे १,००० के वरावर माल खरीदकर उन्हें अपनी स्थिर पूंजी के दैहिक रूप में पुनःपरिवर्तित किया और इस प्रकार I को द्रव्य रूप में उसकी परिवर्ती पूंजी का मूल्य बहाल कर दिया। प