पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३९२

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३६१ साधारण पुनरुत्पादन , . I की परिवर्ती पूंजी तीन रूपांतरणों से होकर गुजरती है , जो पार्पिक उत्पाद के विनिमय में विल्कुल भी प्रकट नहीं होते या प्रकट होते हैं, तो केवल सांकेतिक रूप में। १) पहला रूप द्रव्य में १,००० 14 का है, जो उतने ही मूल्य की श्रम शक्ति में परिवर्तित होता है। यह परिवर्तन खुद I और के बीच माल विनिमय में प्रकट नहीं होता, किंतु उसका परिणाम इस बात में प्रकट होता है कि I का मजदूर वर्ग द्रव्य में १,००० के साथ II के माल विक्रेता के सामने आता है, जैसे II का मज़दूर वर्ग द्रव्य में ५०० पाकर माल रूप में ५०० 114 के माल विक्रेता के सामने आता है। २) दूसरा रूप और वह एकमात्र रूप जिसमें परिवर्ती पूंजी वस्तुतः परिवर्तित होती है, परिवर्ती पूंजी का कार्य करता है, जहां दिये हुए मूल्य की जगह उससे विनिमीत मूल्य सृजक शक्ति प्रकट होती है। यह रूप केवल उस उत्पादन प्रक्रिया के अंतर्गत है, जो पीछे छूट चुकी है। ३) तीसरा रूप वार्षिक मूल्य उत्पाद का है, जिसमें परिवर्ती पूंजी ने उत्पादन प्रक्रिया के फलस्वरूप अपनी सार्थकता सिद्ध की है, जो I के प्रसंग में १,०००प तथा १,००°वे के योग के , अथवा २,००० 1(प+वे ) के वरावर है। द्रव्य रूप में अपने मूल १,००० मूल्य के बदले हमारे पास इसकी दुगनी राशि का मूल्य अथवा माल रूप में २,००० है। अतः माल रूप में १,००० का परिवर्ती पूंजी मूल्य उस नये मूल्य का अर्धाश मान है, जिसका उत्पादन परिवर्ती पूंजी उत्पादक पूंजी के एक तत्व के नाते करती है। माल रूप में १,००० II द्वारा मूलतः पेशगी दिये गये और समुच्चित पूंजी के परिवर्ती भाग के रूप में उद्दिष्ट १,०००प का द्रव्य रूप में यथार्थ समतुल्य हैं। किंतु माल रूप में वे केवल संभाव्य रूप में ही द्रव्य हैं ( जव तक वे वेचे न जायें, तब तक वे वस्तुतः द्रव्य नहीं बनते ) और वे प्रत्यक्ष रूप में तो परिवर्ती द्रव्य पूंजी और भी कम हैं। वे अंततोगत्वा IIस के हाथ १,००० 14 माल की विक्री से श्रम शक्ति के क्रेय माल के रूप में, ऐसी सामग्री के रूप में, जिसका द्रव्य में १,००० विनिमय हो सकता है, शीघ्र पुनः प्रकट होने से ही परिवर्ती द्रव्य पूंजी बनते हैं।.. इन सभी रूपांतरणों के दौरान परिवर्ती पूंजी निरंतर पूंजीपति. I के हाथ में रहती है ;. १) शुरू में द्रव्य पूंजी की तरह ; २) फिर उसकी उत्पादक पूंजी के एक तत्व की तरह ; ३) इसके बाद उसकी माल पूंजी के मूल्यांश की तरह , अतः माल मूल्य की तरह ; :४ ) अंत में फिर द्रव्य रूप में, जहां उसके सामने पुनः श्रम शक्ति होती है, जिससे उसका विनिमय. हो सकता है। श्रम प्रक्रिया के दौरान पूंजीपति के पास परिवर्ती पूंजी एक सक्रिय मूल्य सृजक श्रम शक्ति की तरह होती है, किंतु दिये हुए परिमाण के मूल्य की तरह नहीं होती। लेकिन चूंकि पूंजीपति मजदूर की अदायगी उसकी शक्ति के कुछ समय क्रियाशील रह चुकने के पहले नहीं करता, इसलिए मजदूर की अदायगी करने के पहले ही उस शक्ति द्वारा अपनी तथा वेशी मूल्य की प्रतिस्थापना करने के लिए सृजित मूल्य उसके हाथ में होता है। चूंकि परिवर्ती पूंजी किसी न किसी रूप में हमेशा पूंजीपति के में रहती है, इसलिए यह दावा किसी तरह नहीं किया जा सकता कि वह अपने को किसी के लिए आय में बदल लेती है। इसके विपरीत माल रूप में १,००० 14 II के हाथ अपनी विक्री से अपने को द्रव्य रूप में बदल लेता है, जिसकी आधी स्थिर पूंजी को वह वस्तुरूप में प्रति- स्थापित करता है। -