पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३९३

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कुल सामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन में . जो चीज अपने को प्राय में वियोजित करती है, वह परिवर्ती पूंजी I अथवा द्रव्य रूप १,०००प नहीं है। यह द्रव्य श्रम शक्ति में परिवर्तित होने के साथ परिवर्ती पूंजी 1 के द्रव्य रूप की तरह कार्य करना बंद कर देता है, जैसे मालों के किसी भी विक्रेता का द्रव्य उसके द्वारा उसका किन्हीं अन्य विक्रेताओं के माल से विनिमय कर लेने के साथ उसकी किसी भी चीज़ का प्रतिनिधित्व करना बंद कर देता है। मजदूरी के रूप में प्राप्त धन मजदूर वर्ग के हाय में जिन रूपांतरणों से गुजरता है, वे परिवर्ती पूंजी के रूपांतरण नहीं, वरन द्रव्य में परिवर्तित उसकी श्रम शक्ति के मूल्य के रूपांतरण हैं, जैसे श्रमिक द्वारा सृजित ( २,००० I(प+बे )) मूल्य का रूपांतरण केवल पूंजीपति के एक माल का रूपांतरण है, जिससे मजदूर का कोई सरोकार नहीं है। फिर भी पूंजीपति , और उससे भी अधिक उसका सैद्धांतिक भाप्यकार, अर्थशास्त्री बड़ी ही कठिनाई से इस धारणा से छुटकारा पा सकता है कि मजदूर को जो धन दिया गया है, वह अब भी उसी का, पूंजीपति का धन ही है। यदि पूंजीपति स्वर्ण का उत्पादक है, तो मूल्य का परिवर्ती अंश - यानी माल के रूप में वह समतुल्य , जो उसके लिए श्रम खरीदने की कीमत को प्रतिस्थापित करता है- स्वयं सीधे द्रव्य रूप में प्रकट होता है और इसलिए पश्चप्रवाह के चक्करदार रास्ते के बिना फिर से परिवर्ती द्रव्य पूंजी की तरह कार्य कर सकता है। किंतु जहां तक II के मजदूर का संबंध है - विलास वस्तुओं का उत्पादन करने- वाले मजदूरों को छोड़कर - ५००५ मजदूर द्वारा उपभोग के लिए अभीष्ट मालों के रूप में है, जिसे समष्टि के रूप में मजदूर फिर सीधे उसी समष्टि पूंजीपति से ख़रीदता है, जिसे उसने अपनी श्रम शक्ति वेची थी। Il के पूंजी मूल्य के परिवर्ती अंश में, जहां तक उसके दैहिक रूप का संबंध है, अधिकतर मजदूर वर्ग के उपभोग के लिए उद्दिष्ट उपभोग वस्तुएं समाहित होती हैं। किंतु पूंजीपति को ५०० II की परिवर्ती पूंजी की उसके द्रव्य रूप में वहाली मजदूर द्वारा इस रूप में व्ययित परिवर्ती पूंजी नहीं, बल्कि मजदूरी- मजदूर का धन - ठीक इन उपभोग वस्तुओं में अपने सिद्धिकरण से ही करती है। परिवर्ती पूंजी II उपभोग वस्तुओं में वैसे ही पुनरुत्पादित होती है, जैसे स्थिर पूंजी २,००० IIA। इनमें से कोई भी अपने को प्राय में वियोजित नहीं करती। दोनों ही मामलों में मजदूरी ही अपने को प्राय में वियोजित करती है। फिर भी वार्षिक उत्पाद के विनिमय में यह तथ्य अत्यंत महत्वपूर्ण है कि मजदूरी के प्राय के रूप में व्यय से एक प्रसंग में १,००० II- की द्रव्य पूंजी के रूप में बहाली हो जाती है, इसी तरह इस चक्करदार रास्ते से १,००० प और पुनः ५०० IIप, अतः स्थिर और परिवर्ती पूंजी की भी (परिवर्ती पूंजी के प्रसंग में अंशतः प्रत्यक्ष और अंशतः अप्रत्यक्ष पश्च- प्रवाह द्वारा)। ११. स्थायी पूंजी का प्रतिस्थापन वार्षिक पुनरुत्पादन के विनिमयों के विश्लेषण में निम्नलिखित से बड़ी कठिनाई सामने आती है। वात सवसे सीधे-सादे ढंग से पेश की जाये, तो स्थिति यह होती है : I) ४,०००+१,००० प+१,०००+ 11 ) २,०००+ ५००+ ५०°३६,०००