पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कुल सामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन 14 11 04 93 द्रव्य लागू होती है, जो सामान्य जनता " के सदस्यों के नाते अर्थशास्त्रियों के यों काम पाते हैं." कि उन्होंने जो कुछ व्याख्या किये बिना छोड़ दिया था, उसकी व्याख्या कर डालते हैं। बात तब भी नहीं बनती कि अगर I और II के वीच-पूंजीपति उत्पादकों के दोनों बड़े क्षेत्रों के बीच - सीधै विनिमय के बदले सौदागर को माध्यम के रूप में घसीट लिया जाता है और वह अपने द्वारा सारी कठिनाइयों से पार पाने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, प्रस्तुत प्रसंग में २०० 14 को निश्चित रूप से II के औद्योगिक पूंजीपतियों के हिस्से में डालना होगा। यह राशि कई सौदागरों के हाथ से गुजर सकती है, किंतु प्राक्कल्पना . अनुमार उनमें से अाखिरी व्यापारी II के संदर्भ में अपने को उसी झंझट में फंसा हुआ पायेगा, जिसमें 1 के पूंजीपति उत्पादक शुरू-शुरू में थे, यानी यह कि वे II के हाथ २०० व नहीं बेच सकते। और यह रुद्ध कन्य राशि 1 के साथ उसी प्रक्रिया का नवीकरण नहीं कर मकती। . हम यहां देखते हैं कि हमारे वास्तविक उद्देश्य के अलावा पुनरुत्पादन प्रक्रिया का उसके बुनियादी रूप में- जिसमें अस्सप्टता पैदा करनेवाली छोटी-मोटी परिस्थितियों को दूर कर दिया गया है- अवलोकन करना नितांत आवश्यक है, ताकि उस फ़रेव से बचा जा सके , जो सामाजिक पुनरुत्पादन प्रक्रिया को उसके पेचीदा मूर्त रूप में तत्काल विश्लेषण का विषय बनाया जाने पर "वैज्ञानिक" विश्लेषण का आभास देता है। यह नियम कि जब पुनरुत्पादन सामान्य गति से होता रहता है ( वह चाहे साधारण पैमाने पर हो, चाहे विस्तारित पैमाने पर ), तब पूंजीपति उत्पादक द्वारा परिचलन में पेशगी दिये गये द्रव्य को अपने प्रस्थान बिंदु पर लौटकर पाना ही होता है (द्रव्य चाहे उसका अपना हो, चाहे उधार का), इस प्राक्कल्पना की सदा-सर्वदा के लिए जड़ काट देता है कि २०० II (छ) I द्वारा पेशगी द्रव्य के माध्यम से द्रव्य में परिवर्तित होते हैं। २) स्थायी पूंजी का वस्तुरूप में प्रतिस्थापन , ऊपर विवेचित प्राक्कल्पना से निपट लेने के बाद केवल ऐसी संभावनाएं ही रह जाती हैं, जिनमें द्रव्य रूप में छीजांश के प्रतिस्थापन के अलावा पूर्णतः निश्चेप्ट स्थायी पूंजी का वस्तुरूप में प्रतिस्थापन भी शामिल है। अभी तक हमने यह माना था कि क) I द्वारा मजदूरी के रूप में दिये १,००० पाउंड को मजदूर उसी राशि के अनुरूप IA पर खर्च करते हैं, यानी वे इस रकम से उपभोग वस्तुएं खरीदते हैं। यह एक वास्तविक बात ही है कि I द्वारा ये १,००० पाउंड द्रव्य रूप में पेशगी दिये जाते हैं। संबद्ध पूंजीपति उत्पादकों को द्रव्य रूप में मजदूरी देनी ही होती है। फिर मजदूर यह द्रव्य उपभोग वस्तुओं पर खर्च करते हैं और वह उपभोग वस्तु विक्रेताओं के लिए अपनी स्थिर पूंजी को माल पूंजी से उत्पादक पूंजी में बदलने में परिचलन के माध्यम का कार्य करता है। यह नत्र है कि वह बहुत से माध्यमों से गुजरता है (दूकानकार, मकान मालिक , कर समाहर्ता, अनुत्पादक श्रमिक , जैसे कि डाक्टर, वगैरह , जिनकी जरूरत स्वयं मजदूर को होती है) और इसलिए वह 1 मजदूरों के हाथ से II के पूंजीपतियों के हाथ में केवल अंशतः ही