पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४०३

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कुल नामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन , प्रतः, यदि हम यह मान लें कि I से विनिमय के लिए पूंजीपति वर्ग II परिचलन में जो ४०० पाउंड डालता है, उसका प्राधा II के उन पूंजीपतियों से आता है, जिन्हें अपने मानों द्वारा प्रचल पूंजी में संबद्ध अपने उत्पादन साधनों का ही नवीकरण नहीं, वरन अपने द्रव्य द्वारा अपने स्थायी पूंजी का भी वस्तुरूप में नवीकरण करना होता है, जब कि II के पूंजीपतियों का दूनरा अर्धाश अपने द्रव्य से अपनी स्थिर पूंजी के केवल प्रचल भाग का वस्तु- रूप में प्रतिस्थापन करता है, किंतु अपनी स्थायी पूंजी का वस्तुरूप में नवीकरण नहीं करता नो इस कयन में कोई अंतर्विरोध नहीं है कि ये लौटनेवाले ४०० पाउंड ( I द्वारा उनसे उपभोग वस्तुओं के क्रय के साथ लौटनेवाले ) II के इन दोनों भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार से विभाजित होते हैं। वे वर्ग II के पास वापस आते हैं, किंतु उन्हीं हाथों में नहीं आते , बल्कि इस वर्ग के भीतर उसके एक भाग से दूसरे में होते हुए विविध प्रकार से वितरित होते हैं। II के एक भाग अंततोगत्वा अपने मालों से उत्पादन साधनों के एक भाग की क्षतिपूर्ति कर लेने के अलावा द्रव्य में २०० पाउंड को स्थायी पूंजी के वस्तुरूप में नये तत्वों में परि- वर्तित कर लिया है। जैसे व्यवसाय शुरू करने के समय था, वैसे ही इस प्रकार खर्च किया हुअा द्रव्य इस स्थायी पूंजी द्वारा उत्पादित होनेवाले मालों के मूल्य के छीजांश के रूप में कई वर्षों के दौरान थोड़ा-थोड़ा करके ही परिचलन से इस भाग के पास वापस पाता है। किंतु II के दूसरे भाग को २०० पाउंड के वदले I से कोई माल नहीं मिला था। लेकिन I उसकी उस द्रव्य से अदायगी करता है, जिसे II के पहले भाग ने अपनी स्थायी पूंजी के तत्वों पर खर्च किया था। II के पहले भाग का स्थायी पूंजी मूल्य फिर नवीकृत दैहिक रूप में पा जाता है, जब कि दूसरा भाग अपनी स्थायी पूंजी के वस्तुरूप में भावी प्रतिस्थापन के हेतु अब भी द्रव्य रूप में उसका संचय करने में लगा होता है। पूर्ववर्ती विनिमयों के बाद हमें जिस आधार पर आगे बढ़ना है, वह दोनों पक्षों की ओर से अभी विनिमीत होनेवाले मालों का शेपांश है : I की ओर से ४००बे का , और II की अोर से ४००स का। हम मान लेते हैं कि II ८०० के इन मालों के विनिमय के लिए द्रव्य रूप में ४०० पेशगी देता है। हर हालत में IIस के उस भाग को ४०० के आधे (२०० के बरावर ) का व्यय करना ही होगा, जिसने छीजन मूल्य के रूप में २०० संचित किये हैं और जिसे यह द्रव्य अपनी स्थायी पूंजी के दैहिक रूप में पुनःपरिवर्तित करना है। जैसे स्थिर पूंजी मूल्य , परिवर्ती पूंजी मूल्य और वेशी मूल्य को- जिनमें माल पूंजी II का तथा I का भी मूल्य विभाज्य है- क्रमशः II तथा I के मालों के विशेष समानुपातिक अंशों द्वारा द्योतित किया जा सकता है, वैसे ही स्वयं स्थिर पूंजी मूल्य के अंतर्गत यह मूल्यांश भी द्योतित किया जा सकता है, जिसे अभी स्थायी पूंजी के दैहिक रूप में परिवर्तित नहीं करना है, वरन फ़िलहाल द्रव्य रूप में संचय करना है। माल II की एक मात्रा (अतः प्रस्तुत प्रसंग में शेपांश का प्राधा , यानी २००) यहां इस छीजन मूल्य का वाहक मान है, जिसका विनिमय द्वारा द्रव्य रूप में अवक्षेपण किया जाना है। ( II के पूंजीपतियों का जो पहला भाग स्थायी पूंजी का वस्तुरूप में नवीकरण करता है, हो सकता है कि वह इस प्रकार अपने छीजन 52 . N . 52 ये संख्याएं भी पहले मानी संख्याओं से मेल नहीं खातीं। किंतु यह वात महत्वहीन है, क्योंकि प्रश्न केवल अनुपातों का है। -फे० एं०