पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४०५

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कुल सामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन है, लेकिन मागे बनकर विदेता के रूप में नहीं। इसलिए यह द्रव्य भाग १ पास लौटकर नहीं मा सरता ; वरना उसे 1 से स्थायी पूंजी के तत्व मेंटस्वरूप प्राप्त हुए होते। जहां तरः भाग १ द्वारा पेशगी दिये द्रव्य के अंतिम तीसरे भाग का संबंध है, उसने पहले अपनी स्थिर पूंजी के प्रचल घटकों के ग्राहक का काम किया। I उसी द्रव्य से अपने मान का १०० का रोपांग उससे खरीदता है। इस तरह यह द्रव्य उसके पास (क्षेत्र II के भाग १ के पास ) लोट पाता है, क्योंकि ग्राहक का काम करने के बाद वह सीधे माल विक्रेता का काम करता है। अगर यह द्रव्य वापस नहीं आता, तो II (भाग १) ने १०० राशि के मालों के लिए I को १०० पहले द्रव्य रूप में और फिर १०० मालों के रूप में फोकट में दे दिये होते, यानी II ने अपना माल I को भेंटस्वरूप दे दिया होता। दूसरी ओर भाग २, जिसने द्रव्य रूप में १०० लगाये थे, द्रव्य रूप में ३०० वापस पा जाता है : १०० इसलिए कि पहले उसने ग्राहक के नाते द्रव्य रूप में १०० परिचलन में डाले थे और वह विक्रेता के नाते उन्हें वापस पाता है; २०० इसलिए कि वह इस राशि के मालों के वियता का ही कार्य करता है, ग्राहक का नहीं। अतः द्रव्य I को लौटकर नहीं जा सकता। इस प्रकार स्थायी पूंजी के ह्रास का स्थायी पूंजी के तत्व ख़रीदने के लिए II (भाग १) द्वारा परिचलन में डाले द्रव्य द्वारा संतुलन हो जाता है। किंतु वह भाग २ के हाथ में भाग १ के द्रव्य के रूप में नहीं, वरन वर्ग I द्रव्य के रूप में पहुंचता है। ख) इस कल्पना के आधार पर II का शेषांश इस तरह वितरित होता है कि भाग १ के पास २०० द्रव्य के रूप में होते हैं और भाग २ के पास ४०० माल के रूप में। भाग १ ने अपना सारा माल बेच डाला है, किंतु द्रव्य के रूप में २०० उसकी स्थिर पूंजी के स्थायी घटक का परिवर्तित रूप है, जिसका उसे वस्तुरूप में नवीकरण करना होता है। इसलिए यहां वह केवल ग्राहक का कार्य करता है और अपने द्रव्य के बदले उसकी स्थायी पूंजी के नैसर्गिक तत्वों के रूप में उसी मूल्य का माल I पाता है। भाग २ को परिचलन में अधिकतम केवल २०० पाउंड डालना होता है (यदि I और II के वीच माल विनिमय के लिए I कोई द्रव्य पेशगी न दे, तो), क्योंकि अपने माल मूल्य के अधांश के लिए वह 1 को बेचनेवाला ही है, I से ख़रीदनेवाला नहीं। ४०० पाउंड के परिचलन से भाग २ को यह वापसी होती है : २०० इसलिए कि इन्हें उसने ग्राहक के नाते पेशगी दिया था और अब २०० के माल के रूप में विक्रेता के नाते उन्हें वापस पाता है ; २०० इसलिए कि वह २०० मूल्य का माल I के हाथ माल के रूप में - I से उनका समतुल्य पाये बिना-वेचता है। ग) भाग १ के पास २०० द्रव्य रूप में और २००स माल रूप में हैं। भाग २ के पास २०० (छ) माल रूप में हैं। इस कल्पना के धार पर भाग २ के लिए द्रव्य रूप कुछ भी पेशगी देना ज़रूरी नहीं है, क्योंकि I के संदर्भ में वह अव ग्राहक बनता ही नहीं है, केवल विक्रेता का काम करता है और इसलिए जब तक कोई उससे खरीदारी न करे, उसे इंतजार करना होता है। भाग १ द्रव्य रूप में ४०० पाउंड पेशगी देता है : २०० I से परस्पर माल विनिमय के लिए; २०० 1 से केवल खरीदारी के लिए। द्रव्य रूप में इन पाखिरी २०० पाउंड से वह स्थायी पूंजी के तत्व वरीदता है। ,