पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४१०

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४०६ साधारण पुनरुत्पादन . . स्थायी पूंजी का जो भाग अभी केवल अपनी समाप्ति की राह में है और इस वीच जिसका समाप्ति का दिन आने तक द्रव्य रूप में प्रतिस्थापन ज़रूरी है, वह उसी अनुपात में घटेगा , क्योंकि यह माना गया था कि II में कार्यरत पूंजी के स्थायी भाग (और मूल्य ) की राशि एक सी बनी रहती है। किंतु इसके साथ निम्नलिखित परिस्थितियां आ जाती हैं : प्रथम, यदि माल पूंजी I के अधिकांश में IIस की स्थायी पूंजी के तत्व समाहित हों, तो उसी के अनुरूप अल्पतर भाग में II के प्रचल संघटक अंश समाहित होंगे, क्योंकि II के लिए I का कुल उत्पादन अपरिवर्तित रहता है। इनमें से अगर कोई एक भाग वढ़ता है, तो दूसरा घटता है, और कोई एक घटता है, तो दूसरा बढ़ता है। दूसरी ओर वर्ग II के कुल उत्पादन का परिमाण भी वही बना रहता है। किंतु यदि उसका कच्चा माल , अधतैयार उत्पाद और सहायक सामग्री (अर्थात स्थिर पूंजी II के प्रचल तत्व ) घट जाये , तो यह कैसे संभव होगा? द्वितीय , स्थायी पूंजी IIस का अधिकांश द्रव्य रूप में वहाल होकर अपने द्रव्य रूप से अपने दैहिक रूप में पुनःपरिवर्तित होने के लिए I के पास पहुंच जाता है। इसलिए I और II के बीच केवल उनके माल विनिमय के लिए परिचालित द्रव्य के अलावा I के पास और अधिक द्रव्य का प्रवाह होता है; यह अधिक द्रव्य परस्पर माल विनिमय कराने का साधन नहीं है, वरन क्रय साधन के रूप में एकपक्षीय ढंग से ही कार्य करता है। किंतु तव II की माल संहति में , जो छीजन के समतुल्य की वाहक है, - और इस प्रकार माल संहति II में, जिसे केवल द्रव्य I से , न कि माल I से विनिमीत किया जाना है - भी यथानुपात कमी आयेगी। केवल क्रय साधन के रूप में II से I के पास अधिक द्रव्य प्रवाहित होगा और माल II और भी कम होगा, जिसके संदर्भ में I को केवल ग्राहक रूप में कार्य करना होगा। अतः Ia का अधिक भाग माल II में परिवर्तनीय त्र होगा - क्योंकि I पहले ही माल II में परिवर्तित हो चुका है - वरन द्रव्य रूप में बना रहेगा। इसके विपरीत प्रसंग का , जिसमें किसी वर्ष स्थायी पूंजी II के समापनों का पुनरुत्पादन कम , और इसके विपरीत मूल्य ह्रास भाग अधिक होता है , अधिक विवेचन आवश्यक नहीं है। अपरिवर्तित पैमाने पर पुनरुत्पादन के चलते रहने के वावजूद संकट - अत्युत्पादन का संकट- उत्पन्न होगा। संक्षेप में, यदि साधारण पुनरुत्पादन और अन्य अपरिवर्तित परिस्थितियों के अंतर्गत - खासकर उत्पादक शक्ति , श्रम के कुल परिमाण और सघनता के अपरिवर्तित रहने पर- समाप्त प्राय स्थायी पूंजी (जिसका नवीकरण होना है ) और अब भी अपने पुराने दैहिक रूप में कार्यशील स्थायी पूंजी ( जो अपने मूल्य ह्रास की क्षतिपूर्ति में उत्पाद में ही मूल्य जोड़ती है ) के वीच कोई अस्थिर अनुपात माना जाये , तो एक प्रसंग में प्रचल संघटक अंशों की जिस राशि का पुनरुत्पादन होना है, वह यथावत रहेगी, जव कि पुनरुत्पादित होनेवाले स्थायी संघटक अंशों की राशि बढ़ जायेगी। इसलिए कुल उत्पादन I को बढ़ना होगा, वरना द्रव्य संबंधों के अलावा भी पुनरुत्पादन में न्यूनता होगी। दूसरे प्रसंग में वस्तुरूप में पुनरुत्पादित होनेवाली स्थायी पूंजी II का आकार यदि अनुपाततः घट जाये और इसलिए स्थायी पूंजी II के जिस संघटक अंश का अव द्रव्य रूप में ही प्रतिस्थापन करना है, वह उसी अनुपात में बढ़ जाये, तो I द्वारा पुनरुत्पादित स्थिर पूंजी II के प्रचल संघटक अंशों की मात्रा अपरिवर्तित बनी रहेगी, जव कि पुनरुत्पादित होनेवाले स्थायी . ,