पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४१३

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४१. कुल सामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन पोर २० जायेगा; . 7 मादन माधनों का उत्पादन याता है। यदि यह मान लें कि सोने का वार्पिक उत्पादन ३० के बराबर है ( सहलियत के लिए ; दरअसल हमारी सारणी के अन्य आंकड़ों की तुलना में यह पारड़ा बहुत ज्यादा है ) । मान लीजिये कि यह मूल्य २०स +५५ + ५वे में विभाज्य है ; का विनिमय - के दूसरे तत्वों से होना है और इसका अध्ययन वाद में किया किंतु ५५+५ (I) का विनिमय II के तत्वों से , अर्थात उपभोग वस्तुओं से होना है। जहां तक ५५ का संबंध है, प्रत्येक स्वर्ण उत्पादक प्रतिष्ठान शुरूआत श्रम शक्ति की गरीद से करता है। यह काम इस व्यवसाय विशेप द्वारा उत्पादित सोने के ज़रिये नहीं किया जाता , बरन देश में मुद्रा पूर्ति के एक अंश से किया जाता है। मजदूर इस ५५ से उपभोग वस्तुएं II से खरीदते हैं और II इस द्रव्य से उत्पादन साधन I से खरीदता है। अव मान लीजिये , II २ के बरावर सोना I से माल सामग्री आदि के रूप में ( उसकी स्थिर पूंजी के संघटक अंश ) खरीदता है, तब २५ द्रव्य के रूप में स्वर्ण उत्पादकों I के पास लौट आते हैं, जो पहले ही परिचलन में है। यदि II कोई और सामग्री I से नहीं खरीदता, तो I अपना सोना द्रव्य के रूप में परिचलन में डालकर II से खरीदारी करता है, क्योंकि सोने से कोई भी माल खरीदा जा सकता है। अंतर केवल इतना है कि I यहां विक्रेता की तरह नहीं, केवल ग्राहक की तरह काम करता है। स्वर्ण खनिक I अपने माल से हमेशा छुटकारा पा सकते हैं; वह हमेशा प्रत्यक्ष विनिमेय रूप में होता है। मान लीजिये, किसी सूत निर्माता ने अपने मजदूरों को ५५ दिये हैं, जो अपनी वारी में उसके लिए वेशी मूल्य के अलावा ५ के वरावर सूत उत्पाद का सृजन करते हैं। ५ से मजदूर IIस से खरीदारी करते हैं, और वह I से द्रव्य में ५ से सूत ख़रीदता है और इस प्रकार ५प द्रव्य के रूप में सूत निर्माता के पास लौट आते हैं। अव कल्पित प्रसंग में, स्व (स्वर्ण उत्पादकों को हम यही कहेंगे ) अपने मजदूरों को द्रव्य के रूप में ५५ पेशगी देता है, जो पहले परिचलन में थे। मजदूर इन्हें उपभोग वस्तुओं पर खर्च करते हैं, किंतु II से स्व के पास ५ में से केवल २ लौटकर आते हैं। फिर भी स्व सूत निर्माता की ही भांति पुनरु- त्पादन प्रक्रिया को फिर से शुरू कर सकता है। कारण यह कि उसके मजदूरों ने उसे स्वर्ण रूप में ५ दिये हैं, जिनमें २ उसने बेच दिये हैं और ३ अभी उसके हाथ में हैं, जिससे कि उसे उन्हें सिक्कों में ढालना या बैंक नोटों में बदलना भर होगा और उसकी सारी परिवर्ती पूंजी मुद्रा रूप में II के और हस्तक्षेप के विना सीधे उसके हाथ में फिर आ जायेगी। वार्पिक पुनरुत्पादन की इस पहली प्रक्रिया ने भी द्रव्य उस मात्रा में परिवर्तन कर साला है, जो ययार्थतः अथवा वस्तुतः परिचलन में आती है। हमने माना था कि II ने - 53

  • पृष्ठ ४१४ पर एंगेल्स की पादटिप्पणी देखिये । -सं०

"स्वर्ण बुलियन ( कलधीत) की काफ़ी माना. उसके मालिक सीधे सैन-फ्रांसिस्को Chising G H I" Reports of H. M. Secretaries of Embassy and Legation, 1879, भाग ३, पृष्ठ ३३७ ।