पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४१४

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साधारण पुनरुत्पादन ४१३ २५ (स्व) सामग्री के रूप में खरीदा था और स्व -अपनी परिवर्ती पूंजी के द्रव्य रूप के नाते II के अंतर्गत -३ को पुनः व्यय किया है। अत: नये स्वर्ण उत्पादन द्वारा पूरित द्रव्य राशि के ३ II के भीतर ही बने रहे और I को नहीं लौटे। हमारी कल्पना के अनुसार II ने अपनी स्वर्ण सामग्री की आवश्यकता की तुष्टि कर ली है। उसके हाथ में ३ स्वर्ण अपसंचय के रूप में रह जाते हैं। चूंकि ये उसकी स्थिर पूंजी का कोई तत्व नहीं बनाते और चूंकि श्रम शक्ति खरीदने के लिए II के पास पहले से काफ़ी द्रव्य पूंजी थी ; इसके अलावा , चूंकि मूल्य ह्रास तत्व को छोड़कर इन अतिरिक्त ३स्व को IIस के अंतर्गत कोई कार्य नहीं करना है, जिसके एक अंश से उनका विनिमय हुआ था ( वे मूल्य ह्रास तत्व की pro tanto क्षतिपूर्ति तभी कर सकते हैं कि IIस (१) अगर IIस (२) की अपेक्षा छोटा हो, जो वात आकस्मिक होगी); किंतु दूसरी ओर, यानी मूल्य ह्रास तत्व को छोड़कर II का समस्त माल उत्पाद (प+बे) उत्पादन साधन से विनिमय करना होता है - इसलिए इस द्रव्य को IIस से II को अंतरित करना होता है, वह चाहे जीवनावश्यक वस्तुओं में हो या विलास वस्तुओं में और इसके उलटे II से IIस को तदनुरूप पण्य मूल्य अंतरित करना होता है। परिणाम : वेशी मूल्य का एक अंश द्रव्य अपसंचय के रूप में एकत्र हो जाता है। पुनरुत्पादन के दूसरे वर्ष में २ पुनः स्व के पास लौट आयेगा और ३ वस्तुरूप में प्रतिस्थापित हो जायेगा, अर्थात II में फिर अपसंचय आदि की हैसियत से विमुक्त हो जायेगा, बशर्ते कि प्रति वर्ष उत्पादित सोने का वही परिमाण सामग्री रूप में इस्तेमाल होता रहे। सामान्यतः परिवर्ती पूंजी के संदर्भ में : अन्य किसी भी पूंजीपति की तरह पूंजीपति स्व को यह पूंजी श्रम शक्ति की खरीद के लिए द्रव्य रूप में निरंतर पेशगी देनी होती है। लेकिन जहां तक इस प का संबंध है, इसे उस पूंजीपति को नहीं, वरन उसके मजदूरों को II से ख़रीदना होता है। इसलिए ऐसा कभी नहीं हो सकता कि II की पहल के विना वह ग्राहक बनकर II में सोना डाले। किंतु जहां तक II उससे सामग्री खरीदता है और जहां तक उसे स्थिर पूंजी IIA को निरंतर स्वर्ण सामग्री में बदलना होता है, वहां तक II से (स्व)प का एक अंश उसके पास वैसे ही लौट आता है, जैसे वह I के अन्य पूंजीपतियों के पास लौटता है। और जहां तक ऐसा नहीं होता, वहां तक वह अपने स्वर्ण रूप प का सीधे अपने उत्पाद से प्रतिस्थापन करता है। किंतु जिस सीमा तक द्रव्य के रूप में पेशगी दिया प II से उसके पास लौटकर नहीं आता, पहले से उपलब्ध परिचलन साधनों का एक अंश (I से प्राप्त और I को न लौटाया गया ) II में अपसंचय में परिवर्तित हो जाता है और इस कारण उसके वेशी मूल्य का एक अंश उपभोग वस्तुओं पर खर्च नहीं होता। चूंकि नई स्वर्ण खानें निरंतर खुलती रहती हैं या पुरानी खानें फिर से चालू होती रहती हैं, इसलिए स्व द्वारा प में लगाये जानेवाले द्रव्य का एक अंश हमेशा नये स्वर्ण उत्पादन के पहले से विद्यमान द्रव्य का हिस्सा होता है ; इसे स्व अपने मजदूरों के माध्यम से II में डालता है और जब तक वह II से स्व के पास न लौटे, तब तक वह वहां अपसंचय निर्माण का एक तत्व बना रहता है। किंतु जहां तक (स्व) का संबंध है, स्व हमेशा ग्राहक का काम कर सकता है। 1