पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४१६

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साधारण पुनरुत्पादन ४१५ 7 व्यवसाय वेशी मूल्य वे के परिचलन के लिए अन्य द्रव्य राशि आवश्यक होती है। वैयक्तिक पूंजीपति के लिए तथा संपूर्ण पूंजीपति वर्ग के लिए भी वह द्रव्य , जिसके रूप में वे पूंजी पेशगी देते हैं, उस द्रव्य से भिन्न होता है, जिसके रूप में वे अपनी आय ख़र्च करते हैं। यह अंतोक्त द्रव्य कहां से आता है ? सीधे उसी द्रव्य राशि से , जो पूंजीपति वर्ग के हाथ में है ; अतः कुल मिला- कर उस कुल द्रव्य राशि से , जो समाज में है, जिसका एक अंश पूंजीपतियों की आय को परि- चालित करता है। हम ऊपर देख चुके हैं कि नया व्यवसाय कायम करनेवाला हर पूंजीपति अपने ढंग से चालू हो जाने के साथ अपने भरण-पोषण पर उपभोग वस्तुओं में ख़र्च किये द्रव्य को उसके वेशी मूल्य को द्रव्य में बदलने के काम आनेवाले द्रव्य के रूप में वापस पा लेता है। लेकिन मोटे तौर पर सारी कठिनाई के दो स्रोत हैं : पहले तो यदि हम केवल पूंजी के आवर्त और परिचलन का विश्लेषण करें और इस प्रकार पूंजीपति को केवल पूंजी के साकार रूप में, न कि पूंजीपति उपभोक्ता और वांके छैले की तरह देखें, तो सचमुच हम यह देखते हैं कि वह वेशी मूल्य को अपनी माल पूंजी के एक संघटक अंश के रूप में निरंतर परिचलन में डालता रहता है, लेकिन हम द्रव्य को उसके हाथ में प्राय के रूप में कभी नहीं देखते। हम उसे अपने वेशी मूल्य के उपभोग के लिए परिचलन में द्रव्य डालते कभी नहीं देखते हैं। दूसरे, यदि पूंजीपति वर्ग प्राय की शक्ल में कोई रकम परिचलन में डालता है, तो लगता है कि वह कुल वार्षिक उत्पाद के इस अंश का समतुल्य दे रहा है और इस तरह यह अंश वेशी मूल्य नहीं रह जाता। किंतु जिस बेशी उत्पाद में वेशी मूल्य विद्यमान है, उसके लिए पूंजीपति वर्ग को एक कौड़ी भी ख़र्च नहीं करनी होती। वर्ग रूप में पूंजीपति उसे मुफ्त क़ब्जे में रखते और उपभोग में लाते हैं और द्रव्य परिचलन इस तथ्य को बदल नहीं सकता। इस परिचलन से जो तवदीली आती है, वह केवल यह कि अपने वेशी उत्पाद का वस्तुरूप में उपभोग करने के बदले , जो सामान्यतः असंभव है, प्रत्येक पूंजीपति अपने द्वारा हथियाये वेशी मूल्य की राशि के बरावर भांति-भांति के माल समाज के सामान्य वार्षिक वेशी उत्पाद भंडार से निकालता है और उनको हथिया लेता है। किंतु परिचलन की क्रियाविधि से सिद्ध हो गया है कि पूंजीपति वर्ग जहां अपनी आय ख़र्च करने के लिए परिचलन में द्रव्य डालता है, वहां वह परिचलन से यह द्रव्य निकालता भी है और इस प्रक्रिया को वह बार-बार जारी रख सकता है। फलतः एक वर्ग के रूप में पूंजीपति पहले की तरह वेशी मूल्य को द्रव्य में बदलने के लिए आवश्यक राशि के मालिक बने रहते हैं। इसलिए यदि पूंजीपति न केवल माल रूप में अपना वेशी मूल्य माल बाजार से अपनी उपभोग निधि के लिए निकालता है, वरन इसके साथ ही वह द्रव्य वापस भी पा जाता है, जिससे उसने इन मालों के लिए अदायगी की है, तो उसने स्पष्टतः मालों का कोई समतुल्य दिये बिना ही उन्हें परिचलन से निकाल लिया है। यद्यपि वह उनके लिए द्रव्य देता है, फिर भी उनके लिए वह कुछ ख़र्च नहीं करता। यदि मैं एक पाउंड का माल ख़रीदूं और यदि माल विक्रेता मुझे उस बेशी उत्पाद के लिए वह पाउंड वापस कर दे, जो मुझे विला कुछ ख़र्च किये मिला था, तो यह स्पष्ट है कि मुझे माल मुफ्त प्राप्त हुआ है। इस क्रिया की निरंतर आवृत्ति इस तथ्य को नहीं बदल देती कि मैं निरंतर माल निकालता रहता हूं और निरंतर पाउंड मेरे हाथ में रहता है, यद्यपि थोड़ी देर को माल खरीदने के लिए मैं उससे जुदा हो जाता हूं। पूंजीपति यह धन उस वेशी मूल्य के द्रव्य समतुल्य के रूप में वापस पा जाता है, जिसके लिए उसने कुछ खर्च नहीं किया है।