पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४२०

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४१६ साधारण पुनरुत्पादन . जा रहा, , जैसे वह - . विल्कुल उलटी है, जिसका वश्यता के हर रूप में ( इसमें भूदासत्व भी शामिल है) प्राधान्य होता है और न्यूनाधिक आदिम समुदायों में तो और भी अधिक होता है, चाहे उनके साथ वश्यता या दासत्व की परिस्थितियां हों, या न हों। दास व्यवस्था के अंतर्गत श्रम शक्ति के क्रय में निवेशित मुद्रा पूंजी स्थायी पूंजी के द्रव्य रूप की भूमिका निवाहती है, जिसका प्रतिस्थापन दास जीवन के सक्रिय काल के समाप्त होने के साथ-साथ क्रमशः ही होता है। इसलिए एथेंसवासियों में दासस्वामी द्वारा अपने दास को ग्रौद्योगिक काम में लगाकर प्रत्यक्षतः कमाये अथवा अन्य प्रौद्योगिक नियोजकों को किराये पर देकर (जैसे खनन के लिए ) अप्रत्यक्षतः कमाये मुनाफे को केवल पेशगी द्रव्य पूंजी पर व्याज (जमा मूल्य ह्रास छूट ) समझा जाता था , जैसे पूंजीवादी उत्पादन के अंतर्गत प्रौद्योगिक पूंजीपति वेशी मूल्य के एक भाग तथा स्थायी पूंजी के मूल्य ह्रास को अपनी स्थायी पूंजी के व्याज तथा प्रतिस्थापन के खाते में डालता है। यही उन पूंजीपतियों का भी कायदा है, जो स्थायी पूंजी ( इमारतें , मशीनें, वगैरह ) भाड़े पर उठाते हैं। यहां मात्र घरेलू दासों पर विचार नहीं किया वे चाहे आवश्यक सेवाएं करते हों, चाहे विलास के साधनों के रूप में प्रदर्शन मात्र के लिए हों। वे आधुनिक चाकर वर्ग के अनुरूप हैं। किंतु दास व्यवस्था भी- जब तक वह खेती, कारखानेदारी, जहाजरानी, वगैरह के उत्पादक श्रम का प्रमुख रूप रहती है, यूनान और रोम के उन्नत राज्यों में थी- नैसर्गिक अर्थव्यवस्था का एक तत्व बनाये रखती है। दास बाज़ार अपने माल श्रम शक्ति - की पूर्ति युद्ध , लूट-पाट , आदि जरिये बनाये रखता है और इस लूट-पाट का संवर्धन परिचलन प्रक्रिया से नहीं , वरन प्रत्यक्ष शारीरिक ज़ोर-ज़बरदस्ती द्वारा दूसरों की श्रम शक्ति के वास्तविक उपयोग द्वारा किया जाता है। संयुक्त राज्य अमरीका में भी उजरती श्रमवाले उत्तर के राज्यों तथा दास प्रथावाले दक्षिण के राज्यों के बीच के अंतःस्थ क्षेत्र के दक्षिण के लिए दास उत्पादक प्रदेश में, जहां बाज़ार में डाला जानेवाला दास स्वयं इस प्रकार वार्षिक पुनरुत्पादन का एक तत्व बन जाता था, बदल दिये जाने के बाद यह व्यवस्था ज्यादा समय के लिए काफ़ी सिद्ध न हुई और फलस्वरूप बाज़ार की मांग पूरा करने के लिए अफ्रीकी गुलामों के व्यापार को जब तक संभव हुआ, जारी रखा गया। ख) पूंजीवादी उत्पादन के आधार पर वार्षिक उत्पाद के विनिमय में द्रव्य के स्वतःस्फूर्त प्रवाह और पश्चप्रवाह ; स्थायी पूंजियों का उनके पूरे मूल्य तक एक बार पेशगी दिया जाना और परिचलन से इस मूल्य की अनेक वर्षों में क्रमिक निकासी , दूसरे शब्दों में अपसंचयों के वार्षिक निर्माण द्वारा उनका द्रव्य रूप में क्रमशः पुनर्गठन , जो नये सोने के वार्षिक उत्पादन पर आधारित अपसंचयों के समरूप संचय से तत्वतः भिन्न होता है; मालों की उत्पादन अवधि की दीर्घता के अनुसार द्रव्य के पेशगी दिये जाने और फलतः मालों की विक्री द्वारा उसकी परिचलन से पुनःप्राप्ति की जा सकने तक उसे हमेशा फिर से अपसंचित किये रखने की भिन्न- भिन्न कालावधियां; और कुछ नहीं, तो उत्पादन स्थलों के उनके वाजारों से अलग-अलग फ़ासलों पर होने के फलस्वरूप द्रव्य के पेशगी दिये जाने की भिन्न-भिन्न कालावधियां ; इसके अलावा व्यवसाय की विभिन्न शाखाओं में और एक ही शाखा के अलग-अलग व्यवसायों में उत्पादक पूर्ति की हालत अथवा उसके सापेक्ष आकार के अनुसार पश्चप्रवाह की अवधि और परिमाण में और इसलिए स्थिर पूंजी के तत्वों के खरीदे जाने की अवधियों में अंतर, और यह सब पुनरुत्पादन वर्ष के दौरान-उधार पद्धति के यांत्रिक साधनों के व्यवस्थित उपयोग का और उपलभ्य उधारार्थ पूंजियों के वास्तविक खोज निकालने का समारंभ करने के लिए स्वतःस्फूर्त 23.