पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४२२

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साधारण पुनरुत्पादन ४२१ ५०० पाउंड की द्रव्य रूप में ज़रूरत महज़ ४०० पाउंड के माल के परिचलन के लिए है और यह खुद को धनी बनाने का नहीं, वरन निर्धन बनाने का तरीक़ा लगेगा, क्योंकि यह उन्हें अपनी कुल संपदा के एक बड़े अंश को परिचलन साधन के निष्प्रयोजन रूप में अनुत्पादक ढंग से रखने के लिए मजबूर करता है। सारी बात का निचोड़ यह निकलता है कि अपने मालों की क़ीमत में सर्वतोमुखी नामिक वृद्धि के वावजूद पूंजीपति वर्ग के पास व्यक्तिगत उपभोग के लिए आपस में वितरित करने को केवल ४०० पाउंड का माल रह जाता है, लेकिन वे एक दूसरे पर ४०० पाउंड के माल को ५०० पाउंड मूल्य के माल का परिचलन करने के लिए आवश्यक द्रव्य राशि द्वारा परिचालित करने की अनुकंपा करते हैं। और यह सब इस बात से क़तई दरकिनार कि “ उनके मुनाफ़े का एक अंश" और इसलिए सामान्यतः मालों की ऐसी पूर्ति , जिसमें मुनाफ़ा अस्तित्वमान है, यहां कल्पित है। किंतु देस्तु ने तो हमें ठीक यही बताने का जिम्मा लिया था कि ये मुनाफ़े आते कहां से हैं। मुनाफ़े के परिचलन के लिए आवश्यक द्रव्य राशि अति गौण समस्या है। मालों की जिस राशि में मुनाफ़ा प्रकट होता है, उसका मूल इस तथ्य में प्रतीत होता है कि पूंजीपति इन मालों को एक दूसरे को सिर्फ बेचते ही नहीं हैं - यद्यपि यह भी काफ़ी वारीक और गहरी बात है, बल्कि एक दूसरे को बहुत ही ऊंचे दाम पर बेचते हैं। तो अब पूंजीपतियों के धनी बनने के एक स्रोत का हमें पता चल गया। यह वात "एंत्स्पेक्तोर ब्येज़िग" के रहस्य के जोड़ की है कि बेहद गरीवी का कारण वेहद pauvreté [ग़रीबी] है। २) इसके अलावा वही पूंजीपति वेचते हैं “उजरती मजदूरों को, जिन्हें वे ख द पैसा देते हैं और जिन्हें निष्क्रिय पूंजीपति पैसा देते हैं, उन्हें भी ; इन उजरती मजदूरों से वे इस प्रकार संभवतः उनकी थोड़ी सी बचत के सिवा उनकी सारी मजदूरी को खसोट लेते हैं।' इसलिए श्रीमान देस्तु के अनुसार इन पूंजीपतियों के धनी बनने का दूसरा स्रोत मुद्रा पूंजी का पश्चप्रवाह है, वह रूप है, जिसमें पूंजीपतियों ने मजदूरों को मजदूरी पेशगी दी है। इसलिए यदि पूंजीपतियों ने अपने मजदूरों को मसलन , १०० पाउंड मजदूरी के रूप में दिये और तव यदि वही मज़दूर उन्हीं पूंजीपतियों से उसी मूल्य , १०० पाउंड , के माल खरीदते हैं, जिससे कि पूंजीपतियों ने श्रम शक्ति के ग्राहकों के रूप में १०० पाउंड की जो राशि पेशगी दी थी, वह पूंजीपतियों के पास लौट आती है, जब वे मजदूरों के हाथ १०० पाउंड मूल्य का माल वेचते हैं, और इस तरह पूंजीपति अधिक धनी बन जाते हैं। थोड़ी सी सामान्य बुद्धिवाला भी समझ लेगा कि वे अपने हाथ में अपने वही १०० पाउंड फिर पाते हैं, जो प्रक्रिया के पहले उनके पास थे। प्रक्रिया के शुरू होने के समय उनके पास द्रव्य रूप में १०० पाउंड होते हैं। इन १०० पाउंड से वे श्रम शक्ति खरीदते हैं। ख़रीदा हुआ श्रम द्रव्य रूप में इन १०० पाउंड के बदले माल पैदा करता है, जिसका मूल्य , जहां तक हम अव जानते हैं , १०० पाउंड के बराबर है। १०० पाउंड का माल अपने मजदूरों को बेचकर पूंजीपति १०० पाउंड द्रव्य रूप में वापस पा लेते हैं। तव पूंजीपतियों के पास फिर द्रव्य रूप में १०० पाउंड होते हैं और मजदूरों के पास खुद मजदूरों का बनाया हुआ १०० पाउंड का माल होता है। यह समझना मुश्किल है कि इससे पूंजीपति और ज्यादा धनी कैसे बन सकते हैं। अगर द्रव्य रूप में ये १०० पाउंड उनके पास वापस न आते , तो उन्हें पहले मजदूरों को उनके श्रम के लिए द्रव्य रूप में . 1 • जर्मन व्यंग्यकार फ़ित्त रायतर ( १८१०-१८७४ ) की कई कृतियों का एक पान । - सं०