पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४२६

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साधारण पुनरुत्पादन ४२५ . से उनके पास द्रव्य रूप में लौटते १०० पाउंड न होते , क्योंकि उन्होंने यह द्रव्य राशि परि- चलन में डाली ही न होती। जिस रूप में अदायगी की राह से सारी प्रक्रिया केवल यह रही होती : २०० पाउंड के वेशी उत्पाद का अर्धांश वे अपने लिए रख लेते और दूसरा अर्धाश बदले में कोई समतुल्य पाये विना निष्क्रिय पूंजीपतियों को दे देते। देस्तु तक को यह कहने का लोभ न होता कि यह और धनी बनने का साधन है। निस्संदेह प्रौद्योगिक पूंजीपति निष्क्रिय पूंजीपतियों से जो ज़मीन और पूंजी उधार लेते हैं और जिसके लिए किराया ज़मीन , सूद , वगैरह के रूप में अपने बेशी मूल्य का एक भाग उन्हें देना होता है, वह उनके लिए लाभदायी है, क्योंकि यह सामान्य रूप में माल के और उत्पाद के उस अंश के , जो वेशी उत्पाद होता है, अथवा जिसमें वेशी मूल्य प्रकट होता है, उत्पादन की शर्तों में एक है। यह लाभ उधार ली हुई भूमि और पूंजी के उपयोग से प्रोद्भूत होता है, उनके लिए दी हुई कीमत से नहीं। बल्कि यह क़ीमत लाभ से कटौती ही है। अन्यथा यह तर्क करना होगा कि यदि औद्योगिक पूंजीपति अपने बेशी मूल्य का द्वितीय अर्धांश दूसरों को देने के बदले उसे अपने पास रख सकें, तो इससे वे धनी बनने के बदले और निर्धन हो जायेंगे। यह द्रव्य के पश्चप्रवाह जैसी परिचलन की परिघटनाओं को उत्पाद के वितरण से , जो परिचलन के इन परिघटनाओं द्वारा संवर्धित ही होता है , गडमड करने से उत्पन्न उलझन है। फिर भी इन्हीं देस्तु में इतनी चतुराई है कि कहें : “ इन निष्क्रिय भद्रजनों की आय कहां से आती है ? क्या यह आय उस किराये से नहीं होती, जो उनकी पूंजी को काम में लगानेवाले लोग अपने मुनाफ़े से उन्हें देते हैं, यानी वे लोग , जो उनकी निधि से ऐसे श्रम का भुगतान करते हैं, जो अपनी लागत से ज्यादा पैदा करता है, संक्षेप में औद्योगिक पूंजीपति । संपदा का स्रोत जानने के लिए फिर उन्हीं पर ध्यान देना सदैव आवश्यक है। यही वे लोग हैं, जो वास्तव में प्रथमोक्त द्वारा नियोजित उजरती मजदूरों का भरण-पोषण करते हैं" (पृष्ठ २४६ )। इसलिए अव इस किराये , आदि की अदायगी औद्योगिक पूंजीपतियों के मुनाफे से कटौती वन गयी है। इससे पहले वह उनका अपने को धनी बनाने का एक साधन थी। लेकिन फिर भी हमारे देस्तु को तसल्ली देने के लिए कम से कम एक चीज़ तो रह जाती है। ये भले उद्योगपति निष्क्रिय पूंजीपतियों से वैसा ही व्यवहार करते हैं, जैसा वे एक दूसरे से और मजदूरों से करते आये हैं। वे उन्हें सभी माल बहुत महंगा, मसलन , २० प्रतिशत ज्यादा दाम पर बेचते हैं। अव दो संभावनाएं हैं। या तो निष्क्रिय पूंजीपतियों के पास उन १०० पाउंड के अलावा, जो उन्हें औद्योगिक पूंजीपतियों से प्रति वर्ष मिलते हैं, धन के अन्य स्रोत हैं या फिर नहीं हैं। पहली स्थिति में औद्योगिक पूंजीपति उन्हें १०० पाउंड का माल , मसलन , १२० पाउंड पर बेचते हैं। परिणामस्वरूप अपना माल वेच लेने पर वे निष्क्रिय लोगों को दिये १०० पाउंड ही नहीं वापस पा जाते , वरन इसके अलावा २० पाउंड भी पा जाते हैं, जो उनके लिए दरअसल नया मूल्य हैं। अव हिसाव कैसा नजर आता है ? उन्होंने मालों के रूप में १०० पाउंड मुफ्त में दे दिये हैं, क्योंकि उनके मालों के आंशिक भुगतान में उन्हें द्रव्य रूप में जो १०० पाउंड दिये गये थे, वे उन्हीं का धन थे। इस तरह उनके माल का उन्हीं के धन से भुगतान किया गया है। इस तरह उन्हें १०० पाउंड का घाटा हुआ है। किंतु उन्हें अपने मालों की कीमत के रूप में उनके मूल्य के अलावा २० पाउंड अधिक भी मिले हैं, जिससे २० पाउंड की क्षतिपूर्ति हो जाती है। इसका १०० पाउंड के घाटे के साथ जोड़ बैठाइये , तो N .