पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४२९

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52 अध्याय २१ संचय तथा विस्तारित पैमाने पर पुनरुत्पादन प्रथम खंड में दिखाया जा चुका है कि वैयक्तिक पूंजीपति के प्रसंग में संचय कैसे कार्य करता है। माल पूंजी के द्रव्य में परिवर्तित होने से वेशी उत्पाद भी, जिसमें बेशी मूल्य व्यक्त होता है , द्रव्य में बदल जाता है। पूंजीपति इस प्रकार रूपांतरित वेशी मूल्य को अपनी उत्पादक पूंजी के अतिरिक्त नैसर्गिक तत्वों में पुनःपरिवर्तित कर लेता है। उत्पादन के अगले चक्र में वर्धित पूंजी वर्धित उत्पाद प्रदान करती है। किंतु वैयक्तिक पूंजी के प्रसंग में जो कुछ होता है, वह समूचे तौर पर वार्पिक पुनरुत्पादन में भी लक्षित होना चाहिए, जैसे साधारण पुनरुत्पादन का विश्लेपण करने पर हम इसे होते देख चुके हैं, अर्थात वैयक्तिक पूंजी के प्रसंग में उसके उपयुक्त स्थायी संघटक अंशों का संचित होते द्रव्य में निरंतर अवक्षेपण समाज के वार्पिक पुनरुत्पादन में भी व्यक्त होता है। यदि कोई वैयक्तिक पूंजी ४००स +१००प वरावर है और वार्पिक वेशी मूल्य १०० के बराबर है, तो माल उत्पाद ४०°स + १००+१००वे के बरावर होगा। ये ६०० द्रव्य में परिवर्तित हो जाते हैं। इस द्रव्य से ४००स फिर स्थिर पूंजी के नैसर्गिक रूप में बदल जाते हैं , १००५ श्रम शक्ति में, और इसके अलावा - बशर्ते कि सारा वेशी मूल्य संचित हो रहा हो - उत्पादक पूंजी के नैसर्गिक तत्वों में रूपांतरण द्वारा १००वे अतिरिक्त स्थिर पूंजी में परिवर्तित हो जाते हैं। इस प्रसंग में यह मान लिया गया है कि : १) यह राशि नियत प्राविधिक परिस्थितियों में कार्यशील स्थिर पूंजी के प्रसार के लिए अथवा नये प्रौद्योगिक व्यवसाय की स्थापना के लिए पर्याप्त है। किंतु ऐसा भी हो सकता है कि वेशी मूल्य को द्रव्य में बदलना ही पड़े और इस द्रव्य को इस प्रक्रिया के पहले , अर्थात वास्तविक संचय , उत्पादन का प्रसार होने के पहले - कहीं अधिक समय तक अपसंचित रखना पड़े; २) विस्तारित पैमाने पर उत्पादन प्रक्रिया में यथार्थतः पहले ही विद्यमान है। कारण यह कि द्रव्य (द्रव्य रूप में अपसंचित वेशी मूल्य ) को उत्पादक पूंजी के तत्वों में बदलने के लिए यह आवश्यक है कि ये तत्व बाज़ार में मालों के रूप में खरीदे जा सकें। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे तैयार उत्पाद के रूप में न ख़रीदे जाकर आदेशानुसार बनाये जाते हैं। उनकी अदायगी तब तक नहीं की जाती, जब 57 यहां से अंत तक पांडुलिपि ८1- फे० ए०