पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४३६

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संचय तथा विस्तारित पैमाने पर पुनरुत्पादन एक रुप विशेप 1 किसी पूंजीवादी व्यय के विना निर्मित उनके वेशी उत्पाद की क्रमिक विक्री द्वारा:- आभासी अतिरिक्त द्रव्य पूंजी का निर्माण अतिरिक्त उत्पादित उत्पादन साधन I का द्रव्य रूप मात्र है। फलतः हमारे प्रसंग में आभासी अतिरिक्त पूंजी का उत्पादन (हम देखेंगे कि वह बिल्कुल दूसरे ढंग से भी निर्मित हो सकती है) स्वयं उत्पादन प्रक्रिया की एक परिघटना के अलावा, उत्पादक पूंजी के तत्वों के उत्पादन के अलावा और कुछ नहीं है। अतः अतिरिक्त आभासी द्रव्य पूंजी का परिचलन परिसर के नाना विंदुओं पर बड़े पैमाने पर उत्पादन वस्तुतः अतिरिक्त उत्पादक पूंजी के बहुविध उत्पादन का परिणाम और उसकी अभिव्यंजना मात्र है, स्वयं जिसका उदय प्रौद्योगिक पूंजीपति से अतिरिक्त द्रव्य व्यय की अपेक्षा नहीं करता। क , क', क", इत्यादि (I) द्वारा इस वस्तुतः अतिरिक्त उत्पादक पूंजी का आभासी द्रव्य पूंजी (अपसंचय ) में उनके वेशी उत्पाद की क्रमिक विक्री से , -- अतः मालों की अनुपूरक खरीद के विना बारंबार एकांगी विक्री से - क्रमिक रूपांतरण परिचलन से बारंबार द्रव्य की निकासी और तदनुरूप अपसंचय के निर्माण से संपन्न होता है। उस मामले को छोड़कर, जिसमें ग्राहक स्वर्ण उत्पादक होता है, इस अपसंचय का आशय किसी भी प्रकार बहुमूल्य धातुओं के रूप में अतिरिक्त संपदा नहीं होता, वरन पहले से परिचालित द्रव्य के कार्य में परिवर्तन ही होता है। कुछ समय पहले वह परिचलन माध्यम का कार्य कर रहा था, अब वह अपसंचय का , निर्माण की प्रक्रिया में वस्तुतः नई द्रव्य पूंजी का कार्य करता है। इस प्रकार अतिरिक्त द्रव्य पूंजी के निर्माण तथा वहुमूल्य धातुओं की देश में विद्यमान मात्रा का आपस में कोई भी नैमित्तिक संबंध नहीं है। इसलिए आगे यह नतीजा और निकलता है : किसी देश में पहले से कार्यशील उत्पादक पूंजी ( उसमें समाविष्ट श्रम शक्ति सहित , जो बेशी उत्पाद की उत्पादक है ) जितना ही ज्यादा होगी, उतना ही श्रम की उत्पादक शक्ति अधिक विकसित होगी और इस कारण उत्पादन साधनों के उत्पादन के द्रुत प्रसार के प्राविधिक साधन भी अधिक विकसित होंगे- अतः अपने मूल्य के लिहाज से और जिन उपयोग मूल्यों में वह व्यक्त होती है, उनकी मात्रा के लिहाज़ से भी , बेशी उत्पाद की मात्रा जितना ही अधिक होगी, उतना ही १) क, क', क", इत्यादि के पास वेशी उत्पाद के रूप में वस्तुतः अतिरिक्त उत्पादक पूंजी अधिक होगी, २) इस वेशी उत्पाद की द्रव्य में रूपांतरित माना और इसलिए क, क', क" के पास वस्तुतः अतिरिक्त द्रव्य पूंजी की मात्रा अधिक होगी। यह तथ्य कि, उदाहरण के लिए , फुलरटन सामान्य अर्थ में अत्युत्पादन की बात नहीं सुनना चाहते , बल्कि केवल पूंजी-आशय द्रव्य पूंजी से है- के अत्युत्पादन की बात ही सुनना चाहते हैं, फिर यही प्रकट करता है कि अच्छे से अच्छे पूंजीवादी अर्थशास्त्रियों को भी अपनी ही व्यवस्था की क्रियाविधि का कैसा अत्यल्प ज्ञान है। पूंजीपति क, क', क" (I) द्वारा प्रत्यक्षतः उत्पादित तथा हस्तगत वेशी उत्पाद जहां पूंजी संचय का, अर्थात विस्तारित पुनरुत्पादन का वास्तविक आधार है, यद्यपि जव तक वह ख, ख', ख", इत्यादि (I) के पास पहुंच नहीं जाता, तब तक वह यथार्थतः इस हैसियत में कार्य नहीं करता, वहां दूसरी तरफ़ वह अपनी द्रव्य की कोशस्थ अवस्था में - अपसंचय के तथा 1 ,